क्या एटलस मालिकों के बीच झगड़े में तबाह हुए साइकिल गढ़ने वाले सैकड़ों कर्मचारी?

क्या एटलस मालिकों के बीच झगड़े में तबाह हुए साइकिल गढ़ने वाले सैकड़ों कर्मचारी?

By खुशबू सिंह

साइकिल निर्माता और आत्मनिर्भर भारत की 60 साल पुरानी कंपनी “एटलस” ने दशकों से काम कर रहे कर्मचारियों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया।

कंपनी ने गेट पर लगाए गए नोटिस में दावा किया गया है कि आर्थिक तंगी के कारण और कहीं से फंड ना मिलने पर कंपनी पर ताला लगाने और कर्मचारियों को ले ऑफ़ देने का फैसला लेना पड़ा।

कंपनी में काम कर रहे एक मज़दूर ने दावा किया कि तालाबंदी घाटे के कारण नहीं बल्कि मालिकान के झगड़े के कारण हुई है।

वर्कर्स यूनिटी को नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर इस मज़दूर ने बताया है, “कंपनी कभी भी घाटे में नहीं जा रही थी। साइकिल की मांग में हमेशा बढ़ोतरी ही हुई है। कंपनी के पास आर्डर पड़े हुए हैं, जिनकी अभी आपूर्ति भी नहीं हो पाई है। कंपनी घाटे में नहीं जा रही है। कंपनी के भाईयों के बीच कलह के कारण हमें बेरोजगार कर दिया गया और कंपनी को बंद कर दिया गया।”

उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद में एलटस की ये कंपनी 1989 से चल रही है, जबकि हरियाणा में ये छह दशक से है।

इससे पहले कंपनी की तरफ से मध्य प्रदेश के मालनपुर और हरियाणा के सोनीपत स्थित प्लांट को बंद किया जा चुका है। साहिबाबाद प्लांट में अभी ले ऑफ करने की बात कही जा रही है।

ले ऑफ यानी कंपनी के पास उत्पादन के लिए पैसा नहीं है, उस स्थिति में कंपनी कर्मचारियों की छंटनी करने की जगह अतिरिक्त काम न कराकर सिर्फ उनकी हाज़िरी लगाती है और बेसिक वेतन का आधा भुगतान करती है।

एटलस भारत की 60 साल पुरानी और दूसरी सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी है। इसकी स्थापना जानकी दास कापूर ने 1951 में हरियाणा से की थी।

यूनियन का क्या कहना है?

कंपनी में मज़दूर संगठन के जनरल सेक्रेटरी महेश सिंह का कहना है कि ‘एटलस का साहिबाबाद प्लांट हमेशा लाभ में रहा है। लॉकडाउन के पहले भी इस प्लांट ने 30-35 हजार का प्रोडक्शन किया था।’

महेश सिंह कहते हैं, “कंपनी की घाटे वाली बात पुरी तरह ग़लत है। कंपनी के तीन भाईयों के झगड़े के चलेत इस प्लांट को बंद करना पड़ा है और घाटे का हवाला देने के लिए बैलेंस शीट के साथ भी छेड़-छाड़ की गई है।”

उन्होंने दावा किया कि मालिकान की सरकार में इतनी पैठ है कि किसी प्लांट को बंद करने के लिए ये लोग सरकार से भी कोई अनुमति नहीं लेते हैं।

उन्होंने बताया कि ‘हांलाकि कंपनी प्रबंधन ने हमें आश्वासन दिया है कि सोनीपत प्लांट की ज़मीन को बेचकर साहिबाबाद प्लांट को फिर से शुरू किया जाएगा। पर ऐसा होना मुश्किल लग रहा है क्योंकि सोनीपत की ज़मीन पर केस चल रहा है और ऐसी ज़मीन का इतना जल्दी बिकना असंभव है।’

उन्होंने कहा कि ‘इस काम के लिए कंपनी प्रबंधन ने हमसे 18 जून तक का समय मांगा है। 18 जून के बाद हम रणनीति बनाएंगे कि हमे करना क्या है।’

कमरे का किराया देने के भी नहीं पैसे

यहां काम करने वाले राजेंद्र प्रसाद जयसवाल ने वर्कस यूनिटी को बताया कि वे पिछले 25 साल से एटलस में काम कर रहे हैं। किराए का कमरा लेकर पूरे परिवार के साथ साहिबाबाद में रहते हैं।

2200 रुपये कमरे का किराया देते हैं पर लॉकडाउन की वजह से 3 महीने से किराया नहीं दे पाए हैं।

मकान मालिक लगातार किराया देने का दबाव बढ़ाता जा रहा है। अगर कुछ दिन और नहीं दिया किराया तो घर से निकाल देगा।

वो कहते हैं, “हम लॉकडाउन में घर इस उम्मीद में नहीं गए की लॉकडाउन खत्म होने के बाद रोज़गार बना रहेगा। कंपनी एक जून को शुरू हुई फिर 3 जून को बंद हो गई। आशा करते हैं कि कंपनी जल्द ही शुरू हो जाए वरना हम सब सड़क पर आ जायेंगे और बच्चों का भविष्य खत्म हो जाएगा।”

एक और कर्मचारी कमलेश कुमार ने बताया कि वो वहां 20 साल से काम कर रहे हैं, “कंपनी में काम करते हुए कभी ऐसा लगा ही नहीं कि इस तरह से अचानक हम सब को बेरोजगार कर दिया जाएगा।”

उन्होंने बताया कि, ‘सीआईटीयू के जरिए पता चला है कि कंपनी 10-15 दिन में शुरू होने वाली हैं फंड का जुगाड़ हो गया है। अगर कंपनी फिर से चालू हो जाती है तो हम सब सड़क पर आने से बच जाएंगे।’

एटलस में स्थाई और ठेका कर्मचारियों को मिलाकर कुल 1300 के आस-पास कर्माचारी काम करते हैं। कई एसे मज़दूर हैं जो 20-25 साल से काम कर रहे हैं।

इन सभी कर्मचारियों को बिना नोटीस पीरियड के ले ऑफ़ दे दिया गया है।

कंपनी प्रबंधन का पक्ष

इस पूरे मसले पर हमने कंपनी प्रबंधन से संर्पक करने की कोशिश की है, पर उनसे अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। जैसे ही कंपनी प्रबंधन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है हम ख़बर अपडेट करेंगे।

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Workers Unity Team