उत्तरप्रदेश में प्रवासी मजदूरों के प्रवेश पर रोक, आम स्वास्थ्य सेवाएं ठप- नज़रिया
By राजेश सचान
उत्तर प्रदेश सरकार ने कल राज्य की सीमा में ट्रक, दो पहिया वाहन या पैदल किसी भी प्रवासी व्यक्ति को प्रवेश न करने देने का आदेश जारी किया है। अभी तक योगी सरकार राज्य के प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें कर रही थी, अब अचानक उन्हें बार्डर पर रोक देने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया गया।
कभी बताया जाता है कि बार्डर पर 200 बसे प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के लिए लगाई गई हैं तो उन्हें बार्डर पर पैदल या अन्य साधनों से पहुंच रहे मजदूरों को बसों से उनके घरों को भेजने का आदेश जारी करना चाहिए था। हालात यह है कि मजदूरों के साथ तो पूरे देश में बर्बरता जारी ही है। बल्कि उनके मददगारों और पत्रकारों तक को निशाना बनाया जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत तमाम वैश्विक संस्थाएं और विशेषज्ञ वायरस के लम्बे वक्त के लिए यहां तक कि हमेशा बने रहने की आशंका वयक्त करते हुए दीर्घकालीन योजना पर अमल करने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन भारत में जिस तरह के लॉकडाउन को लागू किया गया और खासकर प्रवासी मजदूरों के मामले को हैंडल किया गया, इससे न सिर्फ उन्हें बेइंतहा यातनाओं से गुजरना पड़ रहा है बल्कि संक्रमण रोकने के लिए लागू किये गए लाकडाऊन जैसे कदम का प्रयोजन ही एक हद तक विफल हो गया।
इसके पीछे प्लानिंग के अभाव के साथ साथ मजदूरों के प्रति सरकार की उपेक्षा और किया गया क्रूर बर्ताव भी बड़ी वजह है। अभी तो प्रवासी मजदूरों के दर्दनाक और विचलित करने वाले वायरल हो रहे मामलों और दुर्घटनाओं में हो रही मौंतों की खबरें आ रही हैं।
लेकिन चिंताजनक पहलू यह भी उभर रहा है कि भविष्य में महामारी के और फैलने के साथ ही सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से कोविड-19 मरीजों के लिए आरक्षित हो जाएंगी और ऐसी स्थिति में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर इलाज के लिए निर्भर गरीबों की बीमारियों से बड़े पैमाने पर मौतें हो सकती हैं।
देश में पहले ही भुखमरी-बीमारी-कुपोषण से पिछड़े इलाकों में बड़े पैमाने पर मौंते होती हैं। मौजूदा हालात में महामारी के चलते होने वाली मौंतों से भी ज्यादा मौंते अन्य बीमारियों व भुखमरी से हो सकती हैं। जाहिरा तौर पर इसमें बहुसंख्यक आबादी गरीबों की ही होगी। जिन सरकारों ने लॉकडाउन के बाद घर लाने जैसी न्यूनतम जवाबदेही को भी पूरा नहीं किया, उनसे और ज्यादा उम्मीद क्या की जा सकती है।
जो पैकेज जारी किया गया है वह अगर ईमानदारी से लागू भी किया गया तो भी गरीबों के हालात में खास फर्क नहीं पड़ेगा। अभी ही सीएमईआई ने अपने सर्वे में बताया है कि अप्रैल महीने में 20-30 आयु वर्ग के युवाओं को 2.70 करोड़ नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। आने वाले वक्त में हालात और बदतर होंगे। लेकिन सरकार से किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
दरअसल, कोविड-19 महामारी के विकट आपदा के दरम्यान भी सरकार देश व जनता की कीमत पर भी कारपोरेट हितों के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि जब महामारी में पब्लिक सेक्टर कोरोना वारियर्स की भूमिका निभा रहा है और कारपोरेट व निजी क्षेत्र संकट के इस दौर में आगे आने के बजाय मुनाफाखोरी व लूट की जुगत में है।
बावजूद इसके सरकार अभी भी बिजली, कोयला आदि सेक्टर में निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगी है। प्रवासी मजदूर हो, ग्रामीण अथवा औद्योगिक मजदूर-कर्मचारी चौतरफा हमला हो रहा है। आने वाले वक्त में हमले और तेज हो सकते हैं, तानाशाही भी थोपने की कोशिश होगी।
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