लॉकडाउन के चलते गंभीर मानवीय संकट की तरफ बांग्लादेश, हजारों प्रवासी मजदूर हुए असहाय

लॉकडाउन के चलते गंभीर मानवीय संकट की तरफ बांग्लादेश, हजारों प्रवासी मजदूर हुए असहाय

भारत में एक एक कर अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो रही है। लेकिन इस बीच दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां डेल्टा वेरिंएट के चलते कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी देखने को मिल रही है। पड़ोसी देश बांग्लादेश भी उनमें शुमार है।

बांग्लादेश में संक्रमण के मामलों में वृद्धि हो रही है और अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ रही है। देश में 1 जुलाई से कड़ा लॉकडाउन लागू किया जा रहा है।

इस लॉकडाउन का कड़ाई से पालन कराने के लिए सरकार सैनिक, अर्द्धसैनिक सीमा बल के अधिकारियों और दंगा नियंत्रण पुलिस की तैनाती कर रही है। यह लॉकडाउन शुरुआत में एक सप्ताह तक के लिए है।

प्रतिबंधों को फिर से लागू करने का फैसला करने के बाद हजारों प्रवासी श्रमिकों को वापस पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

अधिकारियों का कहना है कि कि सीमा क्षेत्रों में संक्रमण के मामलों में तेजी आने से  बांग्लादेश के अंदरूनी इलाकों में भी संक्रमण का प्रसार हो रहा है और डेल्टा स्वरूप की वजह से मामलों में वृद्धि से 16 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कई तरह के संकट पैदा हो सकते हैं।

वर्तमान में देश में प्रतिदिन करीब 5,000 कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें से दो-तिहाई नए वायरस ढाका स्थित स्वतंत्र संस्थान इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायोरियल डिजीज के अनुसार डेल्टा वैरिएंड के पाए गए।

27 जून को यहाँ 119 लोगों की कोरोना संक्रमण की वजह से मौत हुई।

जॉन हॉप्किंस के कोरोना डैशबोर्ड के मुताबिक एक दिन में इससे पहले इतनी मौतें बांग्लादेश में पहले कभी नहीं हुई थी।

कोरोनोवायरस मामलों में वृद्धि के आधार पर लॉकडाउन को सख्त किया जा सकता है। निश्चित तौर पर यह अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकता है।

यहां तक कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सख्त लॉकडाउन लागू करने के प्रभाव पर बल दिया है। उनका साफ कहना है कि बांग्लादेश जैसे देश में खतरनाक होगा जहां लाखों लोग गरीबी रेखा के नीचे अपनी जिंदगी गुजारते हैं। लॉकडाउन की संभावना में गंभीर मानवीय संकट हो सकते हैं।

बता दें कि अप्रैल के मध्य में कार्यों और लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध को उन मामलों और मौत की संख्या को देखते हुए लगाया गया था जो तीन महीने पहले अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे।  लेकिन बाद में मई महीने में संक्रमण की दर में गिरावट आई लेकिन एक बार फिर देश में गंभीर स्थिति पैदा हो गई है।

इससे पहले, नेशनल टेक्निकल एडवायजरी कमेटी ने चेतावनी दी थी कि वायरस के संचरण को रोकने के लिए मजबूत तंत्र के बिना बांग्लादेश में स्वास्थ्य प्रणाली “अधिक जोखिम में थी”।

हालांकि स्थानीय मीडिया ने रिपोर्ट किया कि प्रवासी श्रमिक शहर से अपने गांवों तक जाने के लिए रिक्शा और एम्बुलेंस का सहारा ले रहे हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हजारों प्रवासी श्रमिक राष्ट्रीय राजधानी में फंसे रहने के बाद ट्रकों, तिपहिया वाहनों, लोगों को ले जाने वाले वाहनों से गए और मोटरबाइक से भी सैंकड़ों लोग गए।

लॉकडाउन की मार से बचने के लिए मजदूर जल्द से जल्द राजधानी ढाका छोड़ना चाहते हैं।

उनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान हमारे पास काम नहीं होता। काम नहीं करेंगे तो किराया कैसे चुकाएंगे? पेट कैसे पालेंगे? इसलिए हम सब कुछ बांधकर गांव लौट रहे हैं। क्योंकि लॉकडाउन में शहर छोड़ने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

एक हफ्ते में 5 लाख से ज्यादा मजदूर ढाका छोड़ चुके हैं।

इस बीच कपड़ा श्रमिकों को सूचना दी गई है कि 4.5 मिलियन लोगों को रोजगार देने वाला ये उद्योग लॉकडाउन के बीच अपना संचालन जारी रखेगा।

शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने कपड़ा उद्योगों को अपने श्रमिकों के लिए अपने खुद के परिवहन की व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया। सार्वजनिक परिवहन या तो आंशिक रूप से या पूरी तरह से बंद रहेगा।

लेकिन पहले भी लॉकडाउन का मार झेल चुके मजदूर ऐसे वक्त में अपने घरों की तरफ जाना ही बेहतर समझ रहे हैं।

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Amit Singh

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