छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी गांव ‘गुड़ियापदर’ को मिला वन अधिकार

छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी गांव ‘गुड़ियापदर’ को मिला वन अधिकार

साल 2006 में वनाधिकार कानून लागू होने के 16 साल बाद कहीं जा कर छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के कांगेर घाटी में स्थित गाँव गुड़ियापदर के लोगों को सामुदायिक वन अधिकार का हक मिल पाया है।

बस्तरिया आदिवासी वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, उड़ीसा के सिमलीपाल नैशनल पार्क के बाद, कांगेर घाटी नैशनल पार्क पूरे देश का दूसरा ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जहां आदिवासियों को सामुदायिक वनाधिकार मिला है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार को गाँववालों से मिलकर उन्हें वनाधिकार कानून के तहत सर्टिफिकेट प्रदान  किया।

गुड़ियापदर 29 घरों का एक छोटा सा गाँव है जोकि जगदलपुर ब्लॉक के चितलगुर पंचायत में आता है। इस गाँव के सारे रहवासी कोया/गोंड जनजाति के हैं और इस गाँव का ढंग से सर्वेक्षण भी नहीं किया गया है।

सदियों से जंगल पर अधिकार से वंचित

आदिवासी क्षेत्रों में वनाधिकार हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। पहले अंग्रेजों ने, और आजादी के बाद भारत सरकार ने आदिवासियों को उनके संसाधनों के हक पर बंदिशें लगाई।

इसके तहत सदियों से उन जंगलों में रहने और उनके संरक्षण में सबसे अहम भूमिका अदा करने वाले आदिवासियों को ही उनके अधिकारों से वंचित रखा गया।

बस्तर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, अनुभव सोड़ी ने बताया कि आदिवासियों को दशकों से राष्ट्रीय उद्यानों में घुसने और खेती करने से मनाही, लघु वनोपज इकट्ठा करने से मनाही, इत्यादि यातनाओं का सामना करना पड़ा है।

होने वाले लाभ

गुड़ियापदर गाँव को राजस्व ग्राम का दर्जा नहीं दिया गया था और इस कारण वहाँ कोई ग्राम सभा नहीं थी।

स्कूल और आंगनबाड़ी तो दूर की बात है, संरक्षित जंगल होने का हवाला दे कर सरकार ना आज तक गाँव में बिजली पहुंचा पाई और ना सड़क।

हालांकि अब सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिलने के बाद अब वनाधिकार कानून की धारा 3.2 के आधार पर अब गाँव में सड़क, बिजली, स्कूल और आंगनबाड़ी का आधिकारिक तौर पर निर्माण शुरू हो सकेगा।

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Workers Unity Team

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