दुनिया में कोरोना से लड़ाई, हांगकांग की जनता आजादी के लिए सडक़ों पर उतरी

दुनिया में कोरोना से लड़ाई, हांगकांग की जनता आजादी के लिए सडक़ों पर उतरी

By आशीष सक्सेना

संघर्ष की आग से जीवट पैदा होता है। हांगकांग की जनता ने ये मिसाल कायम कर दी, जब दुनिया में लोग महामारी के खौफ से घरों में दुबकने को मजबूर हैं और ‘सामाजिक दूरी’ की माला जप रहे हैं।

हांगकांग की जनता सडक़ों पर उतर गई है और चीन की सरकार के वर्चस्व को आमने-सामने चुनौती दे रही है। आंसू गैस, गोली, गिरफ्तारी के बाद भी रुकने को तैयार नहीं है। आजाद सांसों को कीमत पर मुर्दा जिंदगी जीने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया है।

हांगकांग की जनता राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को अमल में लाने का विरोध कर रही है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर आवाज को दबाने का औजार बन जाएगा।

इस कानून को बनने का विरोध लंबे अरसे से हो रहा है, जिसमें चीनी सरकार और जनता के बीच लगातार संघर्ष चला है। इसी कड़ी में 24 मई को प्रदर्शनकारी फिर जुटे और एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया।

ऐसा नहीं है कि विश्व महामारी की जद में हांगकांग नहीं आया। यहां एक हजार से ज्यादा लोग चपेट में आए, लेकिन ज्यादातर को रिकवर कर लिया गया। इसके पीछे वह जीवट भी है, जो आजादी के लिए लडऩे वाली जनता में होता है।

भारत में भी कभी महामारियों के बीच संघर्ष हुए और विजय पाई गई। कॉलरा जब फैला और लाशों के ढेर लग गए, तो भारत की जनता उसी हाल में 1857 के संग्राम में उतरी।

इसी तरह 1918 के स्पेनिश फ्लू के समय भी मुंबई में मजदूरों की हड़ताल का इतिहास लिखा गया। इसी दौर में दुनियाभर में जहां करोड़ों लोग महामारी से मरे, वहीं श्रमिकों ने रूस में अपनी सत्ता को स्थापित करके कीर्तिमान गढ़े।

आजादी की तमाम लड़ाइयां महामारी के उस दौर में लड़ी गईं और क्रूर शासकों को चुनौती दी गई। हांगकांग की जनता उसी परंपरा को आगे बढ़ाने मेें फिलहाल अव्वल दर्ज हुई है।

assault on workers

कोविड-19 महामारी के बीच भारत समेत तकरीबन हर देश में जनविरोधी कानून अमल में लाने और आवाज दबाने की हर कोशिश में सरकारें जुटी हैं। भारत सरकार तो मजदूरों की तकलीफ को न खुद सुनने को तैयार है और न ही सुप्रीम कोर्ट को वक्त है।

फिलहाल, भारत सरकार इस मामले में सुनवाई पर मजदूरों के हालात को मीडिया की साजिश बता रही है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तो यहां तक कह दिया कि पत्रकार गिद्ध हैं और मजदूरों के साथ दुश्वारी की इक्का-दुक्का घटनाएं ही हुई हैं।

workers on the road barefoot

दो महीने से ज्यादा हो गए और गरीब श्रमिकों का जानलेवा सफर थम नहीं पा रहा, लेकिन दहलीज पार करके सरकार से दो टूक हक बात कहने की हिम्मत नहीं जाग रही है। जिनके पास जुबान है, उनमें से ज्यादातर इंटरनेट के खूंटे से बंधे हैं।

हालांकि, सरकार के गलत कदम का विरोध करने का इस बीच ये हासिल भी है कि उत्तरप्रदेश और राजस्थान सरकार ने काम के घंटे बारह करने का निर्णय वापस ले लिया। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जाने वालों को इजाजत लेने की अनिवार्यता को भी वापस ले लिया।

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ashish saxena