देशव्यापी कर्फ्यू बना काल, दिहाड़ी मज़दूरों को डर- कोरोना से पहले हम भूख से मर जाएंगे
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कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पीएम मोदी ने 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन का ऐलान किया। ऐसे में जिंदगी का पहिया रुक सा गया है। गरीब, दिहाड़ी मजदूर और बेसहारा लोग खाने को मोहताज हैं।
पूरी तरह से लॉकडाउन से पहले कई लोग ट्रेनों और बसों के जरिए अपने गांवों पहुंच गए, इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया है लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने घर नहीं जा सके।
राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों में दिहाड़ी मजदूर पैदल ही अपने घरों की तरफ चल निकले हैं।
दिल्ली में लस्सी का स्टाल लगाने वाले मोहम्मद सबीर का कहना है कि हाल ही में उन्होंने दो लोगों को काम पर रखा था कि गर्मी के चलते बिक्री होगी लेकिन कोरोना वायरस के चलते सब बिगड़ता नजर आ रहा है। कोरोना वायरस से पहले हम लोग भूख से मर जाएंगे।
90% असंगठित क्षेत्र में
बांदा जिले के रहने वाले रमेश कुमार बताते हैं कि वह दिन के 600 रुपए कमाते हैं और पांच लोगों का उनका परिवार है, कुछ दिन में उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं होगा। वो कहते हैं कि उन्हें कोरोना वायरस के खतरे का पता तो है लेकिन वह अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, भारत का कम से कम 90 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इनमें सुरक्षा गार्ड, सफाईकर्मी, रिक्शा चालक, फल सब्जी विक्रेता, कचरा बीनने वाले लोग शामिल हैं।
इसके अलावा अधिकांश के पास पेंशन, बीमार अवकाश, सशुल्क अवकाश या किसी भी प्रकार का बीमा नहीं है। इतना ही नहीं कई लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। ये लोग अपनी जरूरतों के लिए नकदी पर ही निर्भर हैं।
दिल्ली में एक एयरलाइन के लिए टैक्सी चलाने वाले जोगिंदर चौधरी का कहना है कि सरकार को मेरे जैसे लोगों को मदद करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, “मैं लॉकडाउन के महत्व को समझता हूं। कोरोनावायरस खतरनाक है और हमें खुद को बचाने की जरूरत है। लेकिन मैं मदद नहीं कर सकता लेकिन सोचता हूं कि अगर लॉकडाउन हफ्तों तक जारी रहता है तो मैं अपने परिवार को कैसे पालूंगा।”
कर्फ्यू की जानकारी नहीं
इलाहाबाद में रिक्शा चलाने वाले किशन लाल बताते हैं कि उनके पास चार दिनों से पैसे नहीं हैं। वह कहते हैं कि सुना है कि सरकार लोगों की मदद के लिए पैसे देगी लेकिन कब और कैसे यह नहीं पता।
किशन के दोस्त अली हसन एक दुकान में क्लीनर का काम करते हैं। वह बताते हैं कि दो दिन से दुकानें बंद हैं और उन्हें पैसे नहीं मिले हैं।
उनका कहना है कि उनको अपना परिवार चलाना है और खाना खिलाना है यह कैसे होगा उन्हें नहीं मालूम।
पेशे से मोची का काम करने वाले एक शख्स का कहना है कि उसे यह तक नहीं पता कि लोगों की आवाजाही क्यों रुक गई है, कर्फ्यू नजर आता है लेकिन यह क्यों है उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
हालांकि उत्तर प्रदेश, दक्षिण में केरल और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित कई राज्य सरकारों ने श्रमिकों के खातों में पैसे ट्रांसफर करने का वादा किया है। मोदी सरकार ने भी लॉकडाउन से प्रभावित दिहाड़ी मजूदरों की मदद की बात कही है।
बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार की सुबह तक देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 649 हो गई है जबकि इसके चलते 13 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
वहीं, दुनियाभर में कोरोना से क़रीब 22 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है। स्पेन में अबतक सबसे अधिक 7,503 लोग मरे हैं।
चीन में मरने वालों की संख्या 3,647 है। ईरान में 2,077 और फ्रांस अब तक 1,331 लोगों की मौत हो गई है।
लेकिन बीमारी का इस समय सबसे बड़ा सेंटर अमेरिका बन गया हैं जहां एक दिन में ही 14,000 कोरोना पॉज़िटिव मामलों की पुष्टि हुई है।
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(बीबीसी से साभार, कहानी का हिंदी रुपांतरण, नवीन राय ने किया। अंग्रेज़ी के मूल लेख को यहां पढ़ें।)
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