हथियार की शॉपिंग करना बंद कीजिए प्रधानमंत्री जी, लाखों लोग भूख से मर जाएंगे – नज़रिया
कोरोना संकट के बीच ही इजरायल से 8.7 अरब रुपये ( 116 मिलियन डॉलर) के हथियार खरीदने का निर्णय क्या नैतिक और उचित कदम है?
संसद भवन व प्रधानमंत्री का बंगला (सेंट्रल विस्टा) के लिए – 20 हज़ार करोड़ रुपये जारी किए गए जबकि कोरोना महामारी से निपटने के लिए मेडिकल सेवाओं के लिए सिर्फ 15 हजार करोड़ रुपये जारी किए गए, आखिर क्यों?
भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, भारत ने 16, 479 हल्की मशीनगन आपूर्ति का आर्डर दिया। जिसकी कीमत 8.7 अरब रूपए है।
प्रधानमंत्री क्या ये हथियार खरीदना इतना जरूरी था। क्या इसे कुछ दिनों के लिए टाला नहीं जा सकता था। क्या इस रुपये का इस्तेमाल अस्पतालों के लिए जरूरी उपकरण, चिकित्सा कर्मियों के लिए जरूरी सुरक्षा के साधन और भुखमरी के कगार पर पहुंचने वाले करीब 30 करोड़ लोगों को भोजन एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बचा के नहीं रखना चाहिए?
अगर संकट दो-तीन महीने जारी रहा, जिसकी संभावना अधिक है, तो मध्यवर्ग का भी एक बडा हिस्सा आर्थिक संकट की चपेट में आ जायेगा।
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आपके पास तो सूचना होगी ही कि मई 30 हजार से अधिक लोग मई महीने तक कोरोना से मारे जा सकते हैं, लाखों नहीं करोड़ों लोगों के इसका शिकार होने की संभावना है। देश भयानक मानवीय और आर्थिक संकट से गुजर रहा है और यह संकट और भी गहरा हो सकता है।
ऐसे में हथियारों की खरीदारी का क्या तुक है? क्या चीन की तरह इस पैसे नए अस्पताल बनाने की घोषणा नहीं करनी चाहिए।
मैं तो कहता हूं कि ट्रम्प के साथ आप ने जो करीब 262.5 अरब रुपये (3.5 अरब डॉलर) के अमेरिकी हथियार खरीदने का करीब महीने भर पहले जो सौदा किया था। उसे रद्द कर देना चाहिए। इस पैसे का इस्तेमाल भी कोरोना से लड़ने के लिए करना चाहिए।
मेरा तो कहना है कि संसद का नया भवन बनाने के लिए जो 83 लाख डॉलर का बजट घोषित हुआ है।
उस काम को भी रोक देना चाहिए और उसका भी इस्तेमाल कोराना से लड़ने के लिए किया जान चाहिए।
अभी तक आप संसद के नए भवन के लिए आंवंटित धन का आधे हिस्से के बराबर ही कोरोना से लड़ने के लिए घोषित किया है। प्रधानमंत्री कम से कम 5 लाख करोड़ रुपए की ज़रूरत है।
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सांसदों की सांसद निधि भी रोक दीजिए। एक लाख करोड़ रुपये के बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट को भी रोक दीजिए।
आप ही ने तो अपने संबोधन में कहा है कि कोराना से लड़ना सबसे बड़ा कार्यभार है। तो अन्य गैर-जरूरी ( टाले जाने वाले कामों) पर धन खर्च करना बंद कीजिए।
सिर्फ जनता को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका प्रवचन मत दीजिए। प्रवचन का काम कथा वाचकों के लिए छोड़ दीजिए।
जिनका धंधा मीठी-मीठी सच्ची-झूठी बातें करके पैसा कमाना या नाम कमाना होता है। वे भक्तों को त्याग और संयम का प्रवचन देते हैं और हर तरह की सुख-सुविधाएं उठाते हैं।
आप प्रवचनकर्ता नहीं देश के प्रधानमंत्री हैं।
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