क्या परमानेंट नौकरी को फिक्स टर्म में बदल सकती हैं निजी कंपनियां?

क्या परमानेंट नौकरी को फिक्स टर्म में बदल सकती हैं निजी कंपनियां?

बाकी देश भले ही महामारी, महंगाई, रोजगार, शिक्षा, सेहत के लिए दुबली हुई जा रही हो, लेकिन मोदी सरकार पहले कार्यकाल में शुरू किए अपने मिशन को जीजान से अंजाम तक पहुंचाने में जुटी है। जिस तय अवधि रोजगार यानी फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट का गजट मार्च 2018 में पास किया गया, अब उसे लागू किया जाएगा।

मजदूरों के तमाम विरोध के बावजूद नए श्रम कानूनों को अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अब ये बदलाव सबसे पहले उन्हें देखने को मिलेगा जो प्राइवेट कंपनियों में स्थायी होने के लाभ पा रहे हैं।

ऐसे कर्मचारियों या मजदूरों की स्थायी नौकरी को निश्चित अवधि के रोजगार में बदलने को नए श्रम कानूनों के तहत छूट दे दी गई है। भारत सरकार ने इस संबंध में सप्ताहभर पहले अधिसूचना जारी करके सेवा शर्तों को बदलने से रोकने वाला प्रावधान हटा दिया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, औद्योगिक संबंध कोड 2020 के तहत, फर्म अब सीधे श्रमिकों को काम पर रख सकती हैं, इसके लिए ठेकेदारों के जरिए मजदूर रखने के रास्ते को नहीं अपनाना होगा। अब श्रमिक सीधे कंपनी के नियंत्रण में होंगे और कंपनी को ठेकेदारों को ज्यादा भुगतान देने से छुट्टी मिल जाएगी।

श्रमिक इस तय अवधि के बाद किसी भी तरह की न मांग कर सकेंगे न ही अदालत से दरख्वास्त कर सकेंगे। हालांकि सरकार की ओर से ये कहा जा रहा है कि तय अवधि के रोजगार में स्थायी नौकरी जैसे लाभ मिलेंगे। इस मामले में ट्रेड यूनियनों का कहना है कि स्थायी होने की जगह एक समय अंतराल, जो परियोजना आधारित होगा, उससे मजदूर कोई भी आवाज उठाने की स्थिति में नहीं बचेंगे।

कंपनी की सेवा शर्तों के चलते रोजी-रोटी कभी भी हाथ से निकलने का खतरा मंडराता रहेगा। जबकि इससे पहले कर्मचारी को सेवा से हटाने से पहले नोटिस देने का प्रावधान था। बिना नोटिस नौकरी से हटाने या निकालने पर कर्मचारी को कोर्ट से न्याय पाने का भी अधिकार रहा है, जो कि अब नहीं होगा। नए श्रम कानून सिर्फ निजी कंपनियों के लिए वरदान होंगे, न कि मजदूरों के लिए राहत।

फिक्स टर्म के तहत प्राजेक्ट या आधार पर सप्ताह, महीने, साल, दो साल या ऐसे की किसी अंतराल के लिए नौकरी मिलेगी। ऐसे में स्थायी कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ ग्रेच्युटी, बोनस या अन्य भत्तों के लाभ नहीं मिल सकेंगे। जिन कंपनियों को स्थायी कर्मचारी सीमित संख्या में रखने की जरूरत होती है, वे भी अब ये संख्या को बहुत कम कर देंगे।

राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कर्मचारी सीनेट के अध्यक्ष हरप्रीत सलूजा का मानना है कि इस निर्णय से कर्मचारियों और उनके परिवारों के जीवन में गिरावट आने की संभावना है क्योंकि भारत में रोजगार की स्थिति पहले से ही काफी गंभीर है। सरकार को घोर पंूजीवाद का रुख अपनाने की जगह मजदूरों कर्मचारियों के सामने मौजूद संकट को देखना चाहिए।

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ashish saxena

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