केंद्र सरकार पर मनरेगा मजदूरों का 6000 करोड़ रुपये बकाया, जंतर मंतर पर 3 दिन दिया धरना
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) मज़दूरों ने संघर्ष का बिगुल फूंका है। ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ के बैनर तले 2 से 4 अगस्त तक संसद भवन के नजदीक दिल्ली के जंतर-मंतर पर 15 राज्यों से आये सैकड़ों मनरेगा मजदूरों का 3 दिवसीय धरना चला।
मनरेगा में मजदूरों की प्रमुख मांग है कि लंबे समय से मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है तुरंत भुगतान कराया जाय, मजदूरी बढ़ायी जाय, मनरेगा के लिए बजट बढ़ाया जाय आदि।
मनरेगा के तहत काम करने वाले हजारों मजदूरों को मजदूरी नहीं मिली है। केंद्र सरकार पर मनरेगा मजदूरों का 6000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है। इसी के चलते अलग-अलग राज्यों के हजारों मनरेगा मजदूरों को जंतर मंतर की ओर रुख करना पड़ा।
देश भर के मनरेगा मजदूर तीन दिनों तक दिल्ली के जंतर मंतर पर डटे रहे और सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज़ बुलंद की।
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13 करोड़ सक्रिय मनरेगा मजदूर
उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में लगभग 13 करोड़ मनरेगा सक्रिय मजदूर हैं। अलग-अलग राज्यों में सरकार ने लगभग 200 से 250 रुपए तक मजदूरी तय की है। सरकार मनरेगा में बजट लगातार घटा रही है।
इस वर्ष मोदी सरकार ने 15,000 करोड़ बजटीय आंवटन कम कर दिया। पहले बजटीय आवंटन 97,034 करोड़ रुपए था जो अब 72,034 करोड़ रुपए ही है।
साथ ही ऐप के जरिए फोटो अपलोड कराने के नियम से भी मजदूर परेशान हैं। बहुत सारे इलाके में फोटो अपलोड न होने से मजदूरी कट जाने का आरोप है।
यही नहीं पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्र सरकार ने फंड ही नहीं दिया है। इसके चलते एक करोड़ से ज्यादा मजदूरों को सीधे तौर पर नुकसान हो रहा है।
बजट कटौती, फंड का भुगतान नहीं
सरकार पर 1 अगस्त, 2022 तक मजदूरी, सामग्री और प्रशासनिक खर्चों सहित 4,419 करोड़ रुपये बकाया हैं।
हालांकि नरेगा संघर्ष मोर्चा के अनुसार केंद्र सरकार पर मनरेगा मजदूरों का 6000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है।
विगत दिनों सरकार ने खुद माना है कि इस योजना के लिए तहत विभिन्न राज्यों को दिया जाने वाले करीब 7,257 करोड़ के फंड का अभी भुगतान नहीं हुआ है।
इन राज्यों में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है जिन्हें मनरेगा का पैसा नहीं मिला है।
न पूरा काम, बस मामूली दाम
मनरेगा एक ऐसी स्कीम है कि जो ग्रामीण परिवार को साल भर में 100 दिनों काम की गारंटी की बात करता है। लेकिन साल में 30-40 दिन से अधिक काम नहीं मिल पाता है।
साथ ही बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण कई जगह मजदूरों से काम करा कर मजदूरी नहीं दी जाता है या फिर फर्जी मजदूरों से काम दिखाकर उनका पैसा हड़प लिया जाता है।
गरीबी, बेरोजगारी और बेतहाशा बढ़ती महंगाई में भारी वृद्धि के कारण मनरेगा में काम की मांग बढ़ गयी है। कोविड पाबंदियों के बीच बड़े पैमाने पर मज़दूरों का अपने गाँव की ओर पलायन से मानरेगा में काम की माँग और बढ़ी।
ऐसे में मनरेगा योजना के तहत और काम और पूरे साल काम मुहैया कराने और सम्मानजनक न्यूनतम मज़दूर देने की जगह मोदी सरकार मनरेगा में लगातार बजट कम कर रही है।
लंबे समय तक यह मामूली मजदूरी भी बकाया रखने, भारी भ्रष्टाचार, गाँव से दूर काम और सुरक्षा के कोई प्रावधान न होने से मनरेगा मज़दूरों की स्थिति और भयावह हो गई है।
(मेहनतकश से साभार)
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