चमोली की बाढ़ में दो पॉवर प्रोजेक्टों में काम करने वाले 150 मज़दूरों समेत 200 लापता
उत्तराखंड में चमोली जिले में झील के फट जाने से आई बाढ़ में हुई भारी तबाही से 150 मज़दूरों समेत 200 लोग बह गए हैं और उनका अभी तक पता नहीं चल पाया है।
कई रिपोर्टों के अनुसार, तपोवन डैम भी टूट गया है और यहां काम करने वाले मज़दूर और कर्मचारी लापता हैं। अबतक 10 लोगों कि मौत की ख़बर या चुकी है। सैकड़ों जानवर और लोगों के असियाने बह गए हैं।
चमोली ज़िले के रेणी गांव के पास निर्माणाधीन एनटीपीसी लिमिटेड की ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो चुकी है।
ऋषि गंगा नदी की राह में ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट है, इस पावर प्रोजेक्ट को अत्यधिक क्षति पहुंची है। इस से ज़्यादा गम्भीर बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के लगभग 50 मजदूर लापता बताए जा रहे हैं।
ऋषि गंगा नदी आगे चलकर धौलीगंगा में मिल जाती है। धौलीगंगा पर तपोवन पॉवर प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा था। इस प्रोजेक्ट के भी 100 लोग लापता बताए जा रहे हैं। अभी तक 3 लाशें बरामद हुई हैं।
बीबीसी के अनुसार, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि उत्तराखंड में अब तक 11 शव बरामद किए गए हैं जबकि 203 लोगों की तलाश की जा रही है।
उन्होंने कहा, ” बचाव कार्य ज़ोरों से चल रहा है और हम और अधिक लोगों की जान बचाने की उम्मीद कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, बचाव दलों ने अब तक 11 शव बरामद किए हैं।”
कितने लोग लापता हैं इसकी संख्या को लेकर अलग अलग दावे हैं।
आईटीबीपी के डीआईजी अपर्णा कुमार का कहना है कि बड़ी टनल को 70-80 मीटर खोला गया है, जेसीबी से मलबा निकाल रहे हैं। यहां कल से 30-40 कर्मी फंसे हुए हैं। आईटीबीपी, उत्तराखंड पुलिस, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और सेना यहां संयुक्त ऑपरेशन कर रही है। क़रीब 153 लोग लापता हैं।
स्थानीय लोग अपने इलाके में ऐसे डैम के निर्माण का विरोध करते रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरणीय दृष्टि से भी इन बांधों का निर्माण उचित नहीं है।
भूस्खलन के कारण झील फटने से अलकनंदा की सहायक नदी, धौली गंगा नदी का जल स्तर कई मीटर तक बढ़ गया है और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस घटना ने रेणी से धौलीगंगा , विष्णुप्रयाग , जोशीमठ पीपलकोटी, चमोली, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग से देव प्रयाग, होते हुए हरिद्वार तक इस नदी के किनारे रहने वाले लोगों में दहशत पैदा कर दी।
पीपलकोटी के आनंद पाल कहते हैं कि गनीमत है ये घटना प्रातः 8:00 से 8:30 बजे के लगभग हुई, अगर रात में हुई होती तो शायद मौतों की संख्या बहुत ज्यादा होती।
पर्यावरणविद और यहां की जनता ने कहना प्रारंभ कर दिया था कि यह पॉवर प्रोजेक्ट यहां के पर्यावरण के लिए और यहां के जनजीवन के लिए बहुत ही खतरनाक है लेकिन आज तक भी सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।
ग्लेशियरिस्ट डॉक्टर डी. पी. डोभाल (सेवानिवृत) का कहना है कि हो सकता है हिमस्खलन के कारण यह घटना हुई हो क्योंकि जो मलबा वीडियो में दिख रहा है उसमें मिट्टी की मात्रा बहुत है जो हिमस्खलन में पाई जाती है परंतु अभी यह एक अनुमान ही है।
उत्तराखंड में 5 बड़े हादसे
- रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में 16 जून 2013 की आपदा पूरी मानव जाति को झकझोर गई थी। इसमें 4500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और कई लापता हो गए थे।
- उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील में अगस्त 2019 में बारिश से उफनाए नालों की वजह से करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और 18 लोगों की जान गई थी।
- साल 2019 में उत्तरकाशी आराकोट में आए आपदा से लगभग 70 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। कई इलाकों में कनेक्टिविटी से लेकर जलसंकट तक गहरा गया था।
- साल 2020 में पिथौरागढ़ में बड़ा हादसा हुआ था जब चैसर गांव में एक मकान ढह गया। घटना सुबह हुई इसलिए बचने का मौका तक नही मिल पाया था।
- उत्तरकाशी में ही 1991 में आए भूकंप की वजह से यहां की चट्टानें कमजोर हो गई थीं, जिसके बाद ज्यादा बारिश के कारण चट्टानें जगह-जगह से दरक गई थीं।
(मेहनतकश से इनपुट के साथ)
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)