सीवर में हुई सफाई मजदूर की मौत के जिम्मेदार ठेकेदार, अधिकारी पर हो कड़ा एक्शन: यूनियन की मांग
चन्नई शहर के जल और सिवरेज बोर्ड मजदूर यूनियन ने ठेका सफाई मजदूर नेल्सन की मौत के लिए जिम्मेदार ठेकेदार और अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग की है।
The Hindu की खबर के मुताबिक 26 साल के नेल्सन की मंगलवार को माधावरम में सीवर लाइन साफ करते वक्त जहरीली गैस से दम घुट कर मौत हो गई थी।
Chennai Metropolitan Water Supply and Sewerage Board (CMWSSB) ने मंगलवार को नेल्सन के परिवार के लिए 15 लाख रुपए की मदद राशि देने का ऐलान किया था।
एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक नेल्सन सीवर लाइन में ब्लॉकेज या रुकावट की जांच कर रहा था जब गलती से मैन होल में गिर गया।
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उसका साथी मजदूर रवि, 35, गंभीर हालत में Government Stanley Hospital में भर्ती है।
CMWSSB मजदूर यूनियन (CITU से संबंधित) के अध्यक्ष और पूर्व मदुरावोयल MLA, जी भीम राव ने कहा कि राज्य सरकार को मुआवजे की राशि बढ़ा कर कम से कम 25 लाख रुपए करनी चाहिए।
साथ ही साथ सीवरों की संचालन और मेनटेनेंस पर नजर रखने के लिए एक कमिटी का गठन किया जाना चाहिए।
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Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013 के तहत प्रावधानों पर गौर करते हुए राव ने कहा कि सीवर में काम करने वाले मजदूरों को दूसरे रोजगार का विकल्प मुहैया कराया जाना चाहिए और ये कि सीवरों की सफाई के लिए सिर्फ मशीनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
ऐसे हादसों की रोकथाम के लिए सही गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए जिससे संबंधित अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जा सके।
साथ ही यूनियन ने मांग की है कि ठेकाकर्मियों की नौकरी Metrowater के साथ उन्हें जोड़ कर पक्की की जानी चाहिए।
कानून में विरोधाभास
ज्ञात हो कि सीवर साफ करने के लिए सफाई मजदूरों का “इस्तेमाल” 2013 में बने कानून के तहत प्रतिबंधित है।
लेकिन कानून में यह विरोधाभास भी है कि “अत्यधिक जरूरत” पड़ने पर, पर्याप्त सुरक्षा उपकरण के साथ सफाई मजदूरों से काम लिया जा सकता है।
बाकी देशों में सीवर साफ करने के लिए मजदूरों को सर से लेकर पैर तक पूरी तरह से ढके हुए आधुनिक सूट दिए जाते हैं जिससे उनके स्वास्थ पर कोई भी असर ना पड़े।
लेकिन दुनिया की सबसे किफायती सैटेलाइट बनाने वाले हमारे देश में अरबों का व्यापार करने वाले शहरों की सीवरों की सफाई के लिए मुंसिपालिटी मजदूरों को रबर के दस्ताने या जूते भी मुहैया नहीं करा पाती है।
रोजगार के अभाव में पीढ़ी दर पीढ़ी वे गटर में उतरने को मजबूर हैं और जहरीली गैस से उनकी मौत एक रोजमर्रा की घटना बन कर रह गई है।
कानून, शासन और समाज की असंवेदनशीलता इसी से झलकती है कि आए दिन हो रही मौतों पर ना कोई जनाक्रोश दिखता है और ना ही व्यापक स्तर पर कोई चर्चा होती है।
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