विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग 2
By आशीष सक्सेना
माइक्रो बायोलॉजिस्ट डॉ.बीआर सिंह के रिसर्च पेपर में 81 देशों के आंकड़ों से ये पता लगाने की कोशिश की गई कि वहां बीसीजी का टीका लग रहा है या नहीं। टीका लगने या न लगने से कोरोना संक्रमण से बचाव की कितनी संभावना है!
इसके अलावा कोरोना संक्रमण और शिक्षा का स्तर, कोरोना संक्रमण और आबादी का घनत्व, कोरोना संक्रमण और दुनिया के उन देशों में रहने वाले किस उम्र के कितने लोग हैं, कोरोना संक्रमण और धार्मिक गतिविधियां, कोरोना संक्रमण और अंतरराष्ट्रीय यात्राएं कितनी हुईं।
डॉ.बीआर सिंह ने बताया कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित अमेरिका, इटली और स्पेन में बीसीजी का टीका लगाया ही नहीं जाता। इसका कारण ये भी है कि इस टीके की जरूरत वहां समझी जाती है, जहां टीबी के रोग की संभावना ज्यादा हो।
टीबी का संबंध अशिक्षा और गरीबी से ज्यादा है, जो कि विकसित देशों में नहीं है, इसलिए वे बीसीजी का टीका नहीं लगवाते। जबकि भारत जैसे देशों में ये अनिवार्य टीका है, जो न सिर्फ टीबी से बल्कि कई वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों से लडऩे में प्रतिरोधकता पैदा करता है।
शायद यही वजह है कि इसको ‘जादुई पुडिय़ाÓ तक का खिताब हासिल है। इसी तरह भारत मलेरिया की महामारी से दशकों से जूझता आया है, जिसके चलते क्लोरोक्वीन दवा को चरणबद्ध तरीके से देने या फिर महामारी के समय बड़ी आबादी को देने का काम होता ही रहा है। शरीर की रोग प्रतिरोधकता के लिए ये कवच का काम कर रहे हैं।
जबकि संक्रमण से जूझ रहे देशों में प्राथमिक कवच तो रहा ही नहीं है और दूसरे को तब इस्तेमाल किया जा रहा है, जब वहां लोग बड़ी तादाद में मर रहे हैं।
इसके अलावा ये सामने आया है कि संक्रमण युवा आबादी में ज्यादा फैला है, लेकिन उनकी जान को कोई खतरा नहीं रहा, या फिर ये मामूली ही है।
इस तथ्य को परखा जाए तो खतरे की जद में भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा है ही नहीं, भले ही उनको संक्रमण हो जाए। लगभग 35 करोड़ आबादी तो यहां 15 से 24 आयु वर्ग के लोगों की है। खतरे की शुरुआत 60 वर्ष के ऊपर के लोगों को है, वो भी तब ज्यादा, अगर वे रोगग्रस्त हैं।
हमने एक काल्पनिक सवाल किया, कि अगर दुनिया की पूरी सात अरब आबादी संक्रमित हो जाए तो क्या होगा? इस पर उनका जवाब था कि पहली बात तो ये कि सिर्फ एक प्रतिशत लोगों को ही पता चलेगा कि उनको संक्रमण हुआ है, उनके अंदर लक्षण भी नहीं होंगे।
फिलहाल तक भी सामान्य तौर पर उन्हीं की जांच हो रही है, जिनके अंदर लक्षण हैं या विदेश यात्रा की हो। अगर दुनिया की एक प्रतिशत आबादी रोगी के तौर पर सामने आए तो मतलब है कि 70 करोड़ का इलाज करने की जरूरत होगी।
इसके अलावा दशमलव एक प्रतिशत की मौत की संभावना होगी यानी सात करोड़। इन सात करोड़ में भी 80 प्रतिशत बूढ़े व रोगग्रस्त होंगे। इसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि विश्व के अधिकांश लोगों की कोरोना संक्रमण से जान को खतरा नहीं है। अस्पताल तक पहुंचने वालों में भी अधिकांश बिना किसी विशेष दवा और वैक्सीन के ठीक हो रहे हैं, ये जगजाहिर है।
कोरोना से पहले कई विश्व महामारी हो चुकी है और उनकी वैक्सीन या दवा भी नहीं है, लेकिन अब उनका वायरस अतिरिक्त महामारी फैलाने की स्थिति में नहीं है। पिछली महामारी एचआईवी एड्स में साढ़े तीन करोड़ मर गए और आज भी उतनी ही संख्या में लोग इस वायरस के साथ जी रहे हैं।
क्रमश: जारी…..
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