विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग 4
By आशीष सक्सेना
काफी लोगों को याद होगा कि 70 के दशक में हांगकांग फ्लू से बहुत बड़ी आबादी संक्रमित हुई, पूरा का पूरा परिवार संक्रमित हो गया था और चाय-पानी तक के लिए लोगों को लेने की ताकत लगाना पड़ रही थी। लेकिन संक्रमणकाल समाप्त होते ही जिंदगी फिर अपनी पटरी पर दौडऩे लगी।
ये जानकारी देकर वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.बीआर सिंह ने कहा कि मेरा विश्वास है कि भारत की हालत इटली-अमेरिका जैसी नहीं होगी। कहा कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि इस स्थिति में लॉकडाउन करके अर्थव्यवस्था ठप कर लेना ठीक नहीं है।
इसकी जगह बुजुर्गों और गंभीर रोगियों को कोरंटीन करना चाहिए था। गंभीर स्थिति वाले लोगों को अस्पताल की सेवाएं दी जातीं, इससे अन्य सामान्य चिकित्सा सेवा भी बाधित नहीं होती।
फिलहाल, लोगों को सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करना ही जरूरी है। हालांकि अभी तक जांच किट ही विश्वसनीय नहीं हैं। हैरत की बात ये है कि वायरस की पहचान होने के तीन दिन बाद चीन ने इस किट को बना लिया, जिसको पर्याप्त जांच के चरणों से गुजरने का मौका भी नहीं लिया।
उसी किट के पैटर्न पर अब कई देशों में इसका उत्पादन हो रहा है। इसका नतीजा ये है कि इसकी जांच से पॉजिटिव और निगेटिव मरीज गलत हो सकते हैं। ये भी सामने आया है कि 100 पॉजिटिव मरीजों में 80 गलत पॉजिटिव आ सकते हैं। इसी तरह निगेटिव आने का मतलब भी ये नहीं है कि संदिग्ध व्यक्ति संक्रमित न हो।
क्रमश: जारी…..
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