कोविड-19 वर्कर्स के वेतन से अधिकारी कर रहे मौज – दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह राष्ट्रीय राजधानी में तीनों नगर निगमों के सभी गैर-जरूरी, विवेकाधीन खर्चों को रोकना चाहता है, जिसमें पार्षदों और वरिष्ठ अधिकारियों के “लॉर्ड्स की तरह रहने वाले” के भत्तों को शामिल किया गया है, ताकि COVID-19 फ्रंट लाइन कर्मियों, डॉक्टरों, नर्सों और सफाई कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का भुगतान किया जा सके ।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि मौजूदा COVID-19 महामारी के दौरान डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ सहित स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन के भुगतान और वरिष्ठ अधिकारियों के भत्तों की तरह अन्य विवेकाधीन खर्चों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अदालत ने कहा कि वह तीनों निगमों के सभी गैर-जरूरी खर्चों और वरिष्ठ अधिकारियों के भत्तों को रोकना चाहती है ताकि उन पैसे का इस्तेमाल मौजूदा महामारी के दौरान अग्रिम पंक्ति के कामगारों के वेतन और पेंशन का भुगतान करने के लिए किया जा सके।
शीर्ष पर बैठे लोग लॉर्ड्स की तरह जीवन जी रहे हैं । वर्ग 3 और 4 श्रमिकों को वेतन का भुगतान क्यों नहीं हो रहा अदालत ने आगे कहा कि धन की कमी वेतन और पेंशन का भुगतान न करने का बहाना नहीं हो सकता।
कोर्ट ने कहा कि काम के बदले उचित और समय पर वेतन का मिलना संविधान के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार है।
पीठ ने निगमों से कहा की क्यों न धन की अनुपलब्धता को एक बहाना के रूप में स्वीकार किया जाए।
पीठ ने निगमों को दिए गए ऋणों में से हस्तांतरित राशि में से कटौती के दिल्ली सरकार के फैसले पर भी अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार ने भारतीय रिर्जव बैंक के नियमों को ताक पर रख कर यह कटौती की हैं।
यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा पैनडेमिक के दौरान ऋण को वापस लेने और खातों को एनपीए घोषित करने पर रोक लगा दी थी।
दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील सत्यकम ने अदालत से आग्रह किया कि कटौती को उचित क्यों ठहराया जाए, इस बारे में अपना पक्ष रखने के लिए उन्हें समय दिया जाए ।
इसके बाद पीठ ने दिल्ली सरकार को 21 जनवरी तक का समय देते हुए यह स्पष्ट करने के लिए दिया कि जब सभी को किसी तरह का वित्तीय नुकसान हुआ है तो मौजूदा महामारी के दौरान कटौती क्यों नहीं रोकी गई।
अदालत तीनों निगमों के शिक्षकों, डॉक्टरों और सफाई कर्मियों सहित सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का भुगतान न करने का दावा करने वाले कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
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