महंगी डीजल और बिजली के बाद अब डीएपी के दामों में 300 रुपये की वृद्धि, किसान पर दोहरी मार

महंगी डीजल और बिजली के बाद अब डीएपी के दामों में 300 रुपये की वृद्धि, किसान पर दोहरी मार

पहले से ही महंगे ईंधन और बिजली दरों से परेशान किसानों पर खाद के मुल्यों में बढ़ोतरी से दोहरी मार पड़ी है। डीएपी के दाम में अचानक हुई वृद्धि ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।

निजी खाद कंपनियों ने 50 किग्रा के बैग की कीमत 300 रुपये बढ़ा दी है।  फिलहाल तक डीएपी के 50 किग्रा के एक बैग की कीमत 1200 रुपये थी।

निजी क्षेत्र की पारादीप फॉस्फेट लिमिटेड (पीपीएल) और गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स कॉर्पोरेशन (जीएसएफसी) ने इसका प्रिंट रेट 1500 रुपये कर दिया है।

पुराना स्टॉक उपलब्ध होने के कारण इफको ने अभी रेट नहीं बढ़ाए हैं। लेकिन उसके अधिकारियों का कहना है कि 31 मार्च के बाद उन्हें भी इस बाबत कोई निर्णय लेना पड़ेगा।

इफको के स्टेट मैनेजर अभिमन्यु राय ने बताया कि नया स्टॉक आने पर निर्णय लिया जाएगा। फिर भी इसका रेट अन्य कंपनियों के मुकाबले कम होगा।

कृषि विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, अभी यूपी के बाजार में 3.62 लाख मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध है। अधिकारियों का कहना है कि इसमें से बमुश्किल 20 हजार मीट्रिक टन डीएपी ही नए प्रिंट रेट की है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा माल महंगा होने से बढ़े डीएपी के दाम

उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस बाबत पूछे गये प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट की कीमत चढ़ने से यह परिस्थितियां पैदा हुई हैं। देश में इसकी उपलब्धता काफी कम है। इसलिए ये दोनों उत्पाद बाहर से मंगाए जाते हैं।

अब डीएपी की मुख्य मांग जून-जुलाई में खरीफ की फसलों की बोआई-रोपाई के दौरान होगी। इस समय गन्ना, मूंग, मेंथा और सब्जियों की फसलों में ही डीएपी की जरूरत है, जोकि बहुत अधिक नहीं होती है। इस कारण रेट बढ़ने पर भी किसी तरह का पैनिक नहीं फैल रहा है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डीएपी के बढ़ते दामों के बीच  सरकार को घेरते हुए कहा कि “इस सरकार ने किसानों पर दोहरी मार दी है। पहले ही किसानों को उनके फसलों के दाम नहीं मिल रहे और अब खाद के मुल्य में वृद्धि। किसानों को राहत देते हुए सरकार को मुल्य वृद्धि से छूट देनी चाहिए।”

एक किसान नेता ने कहा कि गेंहू का कटान चालू हो गया है और यूपी के प्रत्येक जिले में मात्र 51 क्रय केंद्र बनाएं गए हैं जोकि बेहद कम हैं। उस पर अब खाद के दाम में वृद्धि। सरकार किस आधार पर कहती है कि वो किसानों की हितैषी है।

प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट की कीमत चढ़ने से यह परिस्थितियां पैदा हुई हैं। देश में इसकी उपलब्धता काफी कम है। इसलिए ये दोनों उत्पाद बाहर से मंगाए जाते हैं।

अब डीएपी की मुख्य मांग जून-जुलाई में खरीफ की फसलों की बोआई-रोपाई के दौरान होगी। इस समय गन्ना, मूंग, मेंथा और सब्जियों की फसलों में ही डीएपी की जरूरत है, जोकि बहुत अधिक नहीं होती है।

इस कारण रेट बढ़ने पर भी किसी तरह का पैनिक नहीं फैल रहा है। पुराने स्टॉक से ही काम चल जा रहा है। यूपी में खरीफ सीजन में डीएपी की आपूर्ति का लक्ष्य औसतन 12 लाख मीट्रिक टन का रहता है। इसलिए खरीफ सीजन में बड़ी मात्रा में नए रेट की डीएपी इस्तेमाल करनी पड़ेगी।

(अमर उजाला की खबर से  इनपुट के साथ)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Abhinav Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.