तीसरे दिन 1000 घरों को तोड़ा, खोरी गांव मज़दूर आवास संघर्ष समिति ने लगाया मारपीट का आरोप
जिस दिन संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ कमेटी ने फरीदाबाद के खोरी गांव में चल रही तोड़ फोड़ की कार्यवाही पर कड़ा बयान दर्ज कराया उसी दिन यहां फरीदाबाद नगर निगम के बुलडोज़रों ने 1000 घरों को ढहा दिया।
मजदूर आवास संघर्ष समिति खोरी गांव ने एक बयान जारी कर ये दावा किया है। बयान में कहा गया है कि 16 जुलाई को लगातार तीसरे दिन भी फरीदाबाद नगर निगम ने खोरी गांव के निवासियों का घर उजाड़ने का काम जारी रखा और प्रशासन ने लगभग 1000 और घरों को उजाड़ दिया गया।
समिति ने पुलिस प्रशासन पर अंधाधुन बल प्रयोग, निवासियों के साथ मारपीट और डराने धमकाने का आरोप लगाया है।
शुक्रवार को एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें सादी वर्दी में एक पुलिस अधिकारी ने स्थानीय युवक पर घातक हमला बोल दिया जिससे वो दीवार से टकरा कर बेहोश हो गया। इसे उठाने के लिए स्थानीय लोगों में से दो पहुंचे। वीडियो वायरल होने के बाद फरीदाबाद प्रशासन की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना शुरू हो गई है।
बता दें कि 14 जुलाई से भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में करीब एक लाख की आबादी वाले खोरी गांव में घरों को बड़े पैमाने पर ढहाया जा रहा है। समिति के अनुसार, पहले दिन क़रीब 300 जबकि दूसरे दिन 1700 घर ज़मींदोज़ कर दिए गए।
खोरी गांव के मज़दूर परिवारों के मानवाधिकारो की रक्षा करने के लिए समिति ने संयुक्त राष्ट्र संघ को दिनांक 30 जून को एक चिट्ठी लिख कर गुहार लगाई थी।
16 जुलाई 2021 को संयुक्त राष्ट्र संघ के स्पेशल रिपोर्टियर फॉर एडिक्वेट हाउसिंग बालाकृष्णनन राजगोपाल ने जिनेवा स्थित भारतीय दूतावास के प्रमुख को पत्र लिखकर इस कार्यवाही की निंदा की है और तत्काल इस पर रोक लगाने को कहा है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी के समय बिना पुनर्वास के 10,000 परिवारों के 1,00,000 लोग, जिसमें 20,000 बच्चे एवं 5000 गर्भवती एवं धात्री महिलाएं शामिल हैं, को खोरी गांव से बेदखल किया जा रहा है। अब मजदूर परिवार कहां जायेंगे?
यूएन एक्सपर्ट ने भारत सरकार से अपील की है कि वो इतने बड़े पैमाने पर की जा रही बेदखली पर तत्काल रोक लगाए। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह भी कहा है की खनन की वजह से जंगल पहले से ही नष्ट हो चुका था, और 1992 में इसे जंगल का दर्जा दिया गया जबकि उस समय वहां जंगल था ही नहीं।
आवास संघर्ष समिति का कहना है कि नगर निगम के द्वारा राजहंस होटल में प्रशासन द्वारा पुनर्वास के लिए शिविर लगाने की सूचना आई है वहीं दूसरी ओर प्रशासन के बुलडोजर लोगों के आशियाने पर कहर बरपा रहे हैं।
समिति ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा है कि, ‘लोगों के घर का सामान खुले आसमान में पड़ा है। लोगों के सर पर छत नहीं है और उनके छोटे छोटे बच्चे हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में लोग राजहंस होटल में जाकर कैसे आवेदन करेंगे? सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि शिविर तक आमजन की पहुंच सुनिश्चित हो।’
बयान के अनुसार, जहां एक ओर खोरी गांव के निवासियों पर पुलिस प्रशासन द्वारा मुकदमे लगाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नगर निगम द्वारा उनके आशियाने को तोड़ा जा रहा है। पुलिस और प्रशासन की एक के बाद एक कड़ी कार्रवाई के बाद लाचार मजदूरों के न खाने का पता है ना रहने का, जहां एक ओर भूख से बच्चे खुले आसमान में बिलबिला रहे हैं वहीं दूसरी ओर बारिश मैं सरकार ने तिरपाल की व्यवस्था भी नहीं की है।
समिति ने कहा है कि जहां तोड़फोड़ हुई है वहीं पर शिविर का आयोजन होता तो शायद लोग आश्रय एवं पुनर्वास के लिए आवेदन देते। प्रशासन बिल्कुल नहीं चाहता है कि बेदखल परिवारों को राहत मिले। पुलिस लगातार खोरी के मजदूर परिवारों के साथ मारपीट कर रही है। कल्पना नाम की महिला को मारपीट करके पुलिस संरक्षण में रखा गया था, उसके मासूम छोटे बच्चो को पड़ोसी संभाल रहे हैं। हालांकि कल्पना के साथ 2 अन्य महिलाओं को 16 जुलाई को जमानत मिली है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)