दिल्ली के विधायकों का वेतन हुआ दोगुना, लेकिन मजदूर को न्यूनतम भत्ता भी नसीब नहीं
दिल्ली सरकार के मंत्री और MLA का वेतन जल्द ही लगभग दोगुना होने वाला है।
दिल्ली विधानसभा में स्पीकर, डिप्टीस्पीकर, विपक्ष के नेता, मंत्री और MLA के वेतन, अलाउअन्स में 66 फीसदी बढ़ोतरी के लिए सोमवार को पांच बिल पारित किए गए।
अब तक दिल्ली में एक MLA का वेतन 54,000 रुपए था, जिसे बढ़ाकर 90,000 रुपए कर दिया गया है।
केजरीवाल सरकार ने डेढ़ महीने पहले न्यूनतम मजदूरी दर लगभग 500 रुपए तक बढ़ाई थी।
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लेकिन हाल ही में दिल्ली में WPC के एक सर्वे से पता चला है कि 46 फीसदी मजदूरों को 5000 से 9000 रुपए तक मिलता है।
यह अकुशल मजदूरों के लिए निर्धारित भत्ता 16,506 रुपए का भी सिर्फ एक-तिहाई से लेकर आधे हिस्से के बीच ही है।
इस बीच नेता दस हज़ार करोड़ का जहाज़, बीस हज़ार करोड़ का दफ़्तर, पंद्रह करोड़ की कार, दस लाख का सूट, छ: लाख की घड़ी, तीन लाख का चश्मा और डेढ़ लाख का पेन लेकर भाषण देते हैं की वह लोकसेवा कर रहे हैं।
ये गौरतलब है कि जिस राज्य में MLA का वेतन कम है, वहां मजदूरों की दिहाड़ी बाकियों की तुलना में ज्यादा है।
किस राज्य में है कितना वेतन?
तेलंगाना राज्य के MLA को भारत में सबसे ज्यादा, 2.5 लाख रुपए वेतन मिलता है, जबकि दिल्ली की तुलना में (635 रुपए) वहां न्यूनतम मजदूरी 400 रुपए के आस पास है।
दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जहां MLA का मासिक वेतन 2.32 लाख रुपए है। इसके मुकाबले राज्य में न्यूनतम मजदूरी दर 400 रुपए के आस पास है।
दूसरी तरफ केरल में MLA का वेतन 70,000 रुपए है और राज्य में न्यूनतम मजदूरी दर 670 रुपए के करीब है।
उत्तर प्रदेश में MLA का वेतन 1.87 लाख रुपए है जबकि न्यूनतम मजदूरी मात्र 366 रुपए है।
दिल्ली और केरल के MLA
केरल में न्यूनतम मजदूरी सबसे ज्यादा
दिसम्बर 2021 की Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा दैनिक मजदूरी केरल में 706.5 रुपये थी, इसके बाद जम्मू-कश्मीर में 501.1 रुपये और तमिलनाडु में 432.2 रुपये था।
जबकि देश का औसत 309.9 रुपये था, गुजरात के खेतिहर मजदूर को सिर्फ 213.1 रुपये और महाराष्ट्र को 2020-21 के लिए प्रति दिन 267.7 रुपये मिलते थे। पंजाब में यह 357 रुपये और हरियाणा में 384.8 रुपये था।
एक तरफ जहां महंगाई और मुद्रास्फीति से मजदूरों की हालत खस्ता है, वहीं आए दिन हर दूसरे राज्य में MLA की खरीद फरोख्त चलती है।
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असहाय जनता के प्रतिनिधि नेताओं का दोगलापन और बिकाऊ चरित्र जगजाहिर है। इस लोकतंत्र में जनता का एकमात्र हक — वोट, वो जिस नेता और पार्टी को देते हैं, वह कुछ समय बाद राज्य की राजनैतिक स्थिरता के चिथड़े उड़ाते हुए पैसों के लालच में “अपहरण” हो कर रिज़ॉर्ट और होटलों में बंद हो जाते हैं।
कुछ दिनों बाद नई सरकार में मंत्रालय या किसी आधिकारिक पद पर आ कर चौतरफा भ्रष्टाचार कर फिर से जनता का पैसा लूटते हैं।
जनता का हित करने से इनकी जेबों का वजन कम होने लगेगा, जो कि उन्हें नागवारा है।
क्या किसी सूरत-ए-हाल में यह प्रतिनिधि कभी जनता के हित में काम करेंगे?
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