पंतनगर लेलैंड में संघर्ष के बाद डिप्लोमा मज़दूरों को मिला परमानेंट होने का ऑफ़र लेटर

पंतनगर लेलैंड में संघर्ष के बाद डिप्लोमा मज़दूरों को मिला परमानेंट होने का ऑफ़र लेटर

डिप्लोमा के नाम पर नौकरी देने और फिर निकाल देने के चलने के ख़िलाफ़ उत्तराखंड के पंतनगर सिडकुल क्षेत्र में अशोक लेलैंड कंपनी के मज़दूरों को सफलता मिली है।

देश की अग्रणी ऑटो कंपनी अशोक लीलैंड ऑटो कंपनी अशोक लेलैंड में डिप्लोमा देने के नाम पर परमानेंट किस्म के काम कराए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुआ तो 800 डिप्लोमाधारी मज़दूरों और प्रबंधन में समझौता हुआ।

समझौते के मुताबिक उन्हें दो साल की ट्रेनिंग और परमानेंट करने का ऑफ़र लेटर दिया गया।

सिडकुल में मज़दूर समस्याओं के लिए गठित प्रशासनिक कमेटी के समक्ष 10 मार्च को उच्च प्रबन्धन के साथ वार्ता के बाद बैच के अनुसार अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 तक 232 छात्र-छात्राओं को 2 साल के डिप्लोमा इंजीनियरिंग ट्रेनिंग (डीईटी) और फिर स्टाफ में स्थाई नियुक्ति का ऑफर लेटर जारी हो गया।

गौरतलब है कि एनटीटीएफ के तहत ‘आशीर्वाद’ योजना के अंतर्गत अशोक लेलैंड में डिप्लोमा के लिए छात्र-छात्राओं को 4-5 साल तक खटाने के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।

इस डिप्लोमा सर्टिफिकेट को अन्य कोई दूसरी कंपनी मान्यता नहीं देती है और इसे फर्जी करार देती है। इसी के खिलाफ लड़कों और लड़कियों में भारी गुस्सा था।

कंपनी का यह प्लांट उत्तराखंड के सेक्टर 12 सिडकुल पंतनगर उधम सिंह नगर में है, जो 2010 में बना।

इस प्लांट में स्थाई श्रमिक कोई भी नहीं है, बल्कि अलग-अलग वेंडर कंपनियों के श्रमिकों और डिप्लोमा करने वाले छात्र-श्रमिकों से ज्यादातर काम होता है।

उत्तराखंड तत्कालीन मुख्यमंत्री ने स्थानीय युवाओं के कथित रोजगार प्रशिक्षण के नाम पर एनटीटीएफ के तहत ‘आशीर्वाद’ योजना लागू की थी। इसी के तहत अशोक लेलैंड में 4 साल के डिप्लोमा कोर्स के तहत तमाम युवाओं की भर्ती की गई और उन्हें डिप्लोमा का प्रमाण पत्र देने के साथ ही साथ कंपनी में स्थाई नियुक्ति देने का आश्वासन दिया गया था।

डिप्लोमा छात्रों के अनुसार, पढ़ाई के दौरान उनसे प्लांट में पूरा काम कराया जाता है। सप्ताह में केवल एक दिन पढ़ाई के लिए कक्षाएं चलती है। यानी फोकट के मज़दूरों की तरह से इनसे काम कराया जाता है। कोरोना/लॉकडाउन के विकट दौर में भी प्लांट चलता रहा और इन डिप्लोमा छात्रों को प्लांट में ही रखा गया और उनसे काम कराया जाता रहा।

छात्रों ने यह भी बताया कि उन्हें प्रोत्साहन राशि के तौर पर पहले 2 सेमेस्टर के लिए 5500 रुपया दिया जाता है, जिसमें से ₹500 बस व कैंटीन के लिए काट दिया जाता है। छात्राओं से हॉस्टल का ₹1000 कटा जाता है। 2 सेमेस्टर के बाद ₹2000 की बढ़ोतरी होती है, जो प्रोत्साहन राशि अधिकतम ₹12000 तक की हो सकती है।

यह कोर्स वैसे तो 4 साल के लिए है लेकिन, 5 साल तक भी इसी तरीके से चलता रहता है। यही नहीं, छात्रों से मूल शैक्षणिक दस्तावेज कंपनी जमा करवा लेती है, ताकि ये नौजवान बीच में कहीं जाने न पाए।

शुरुआती दौर में यहां डिप्लोमा देने के बाद स्टाफ में उनकी स्थाई नियुक्ति हुई लेकिन वर्ष 2018 के बाद कंपनी ने यह प्रक्रिया रोक दी और 2021 की शुरुआत में स्पष्ट रूप से कह दिया कि उनके पास कोई रोजगार नहीं है।

छात्रों के अनुसार, कंपनी द्वारा दिए गए डिप्लोमा सर्टिफिकेट को अन्य कोई दूसरी कंपनी मान्यता नहीं देती है और इसे फर्जी करार देते हैं। इसी के खिलाफ छात्रों का गुस्सा फूटा था।

छात्रों ने बताया कि अब तक डिप्लोमा के 70 बैच पास हो चुके हैं, जिनमें सिर्फ 33 बैच के छात्रों को कंपनी ने स्थाई किया। जबकि वर्तमान में 162 छात्र-छात्राएँ डिप्लोमा लेकर घूम रहे हैं। न तो उन्हें कंपनी ले रही थी और ना ही दूसरी कंपनियां इसे मान्यता दे रही थी। 70 विद्यार्थियों का भी कोर्स पूरा होने वाला है।

9 फरवरी को फूट था गुस्सा

ऐसी स्थिति में 9 फरवरी को करीब 800 श्रमिक छात्र-छात्राएँ कंपनी गेट पर धरने पर बैठ गए, जिनके समर्थन में कई कांग्रेसी नेता और अन्य मज़दूर भी आए। उन पर पुलिस और प्रशासन का भी दबाव लगातार बढ़ता रहा। लेकिन वे अपने संघर्ष में डटे रहे।

छात्र-श्रमिकों ने बताया कि इस दौरान प्रशासन के साथ और प्रबंधन के साथ कई दौर की वार्ताएं होती रहीं, लेकिन तमाम लॉलीपॉप को छात्रों ने स्वीकार नहीं किया। अंततः 10 मार्च को जिले में श्रमिक समस्याओं के लिए गठित उच्च स्तरीय प्रशासनिक कमेटी के समक्ष वार्ता हुई, जिसमें कंपनी के सभी प्लांटों के मैन्युफैक्चरिंग हेड और कारपोरेट एचआर हेड का संशोधित प्रस्ताव आया। जिसके तहत अलग-अलग बैच के आधार पर अगले 1 साल में स्टाफ में स्थायीकरण करने की योजना प्रस्तुत हुई।

छात्र प्रतिनिधियों ने इसे स्वीकार नहीं किया। उनका कहना था कि समस्त श्रमिकों को स्टाफ की जगह एसोसिएट यानी श्रमिक श्रेणी में रखा जाए और वायदे के अनुसार सब की तत्काल स्थाई नियुक्ति की जाए। वार्ता में मौजूद कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधियों ने भी छात्र प्रतिनिधियों पर इसे ही स्वीकार कर लेने की बात की।

उधर प्रबंधन ने उपरोक्त के तहत 232 डिप्लोमधारियों को ऑफर लेटर जारी कर दिया। अंततः छात्र-छात्राओं ने प्रबंधन के उक्त प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

समझौते के बिंदु

छात्रों ने डिप्लोमा पूरा कर लिया है या पूरा होने वाला है उनको बैच के तहत शुरुआती 3 बैच के लोगों को 1 अप्रैल से 2 साल के डीईडी ट्रेनिंग पर रखा जाएगा और उसके बाद उनको स्थाई किया जाएगा। इसी क्रम में अगले 3 बैच को जुलाई 2020 में, उसके बाद के 6 बैच को अक्टूबर 2020 में 2 साल की ट्रेनिंग और फिर स्थाई किया जाएगा।

इसके अलावा वर्तमान जिनका डिप्लोमा अभी पूरा होने वाला है, ऐसे तीन बैच के 70 अन्य छात्र-छात्राओं को जनवरी 2022 में 2 साल की डीईडी ट्रेनिंग और उसके बाद स्थायीकरण किया जाएगा।

हालांकि यह लिखित समझौता नहीं है, लेकिन डिप्लोमा के 34वें बैच से लेकर 47वें बैच तक कुल 232 (162+70) को यह लाभ मिलेगा।

माफीनामा भरवाने से आक्रोश

इस ऑफर लेटर के साथ एक माफीनामा भी भरवाया जा रहा है, जिसमें आंदोलन के लिए माफी मांगने की बात की गई है। इसके अलावा प्रशासनिक कमेटी द्वारा कथित रूप से एक कोड आफ कंडक्ट भी बनाया गया है।

इस तरह से करीब एक माह के संघर्ष के बाद डिप्लोमा छात्र-छात्राओं ने एक आंशिक जीत हासिल की। हालांकि इन श्रमिक छात्र-छात्राओं की बड़ी आबादी इस समझौते से संतुष्ट नहीं है। कुछ को, जिन्हें तत्काल लाभ दिख रहा था, उनकी स्थिति ढुलमुल हो गई।

(मेहनतकश से साभार।)

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Workers Unity Team

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