होंडा के कैजुअल मज़दूरों को कितनी सैलरी मिलती है?

होंडा के कैजुअल मज़दूरों को कितनी सैलरी मिलती है?

हरियाणा में होंडा के मानेसर प्लांट में ढाई हज़ार कैजुअल मज़दूरों के आंदोलन का एक महीना पूरा हो गया है। पांच नवंबर को ये मज़दूर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे।

छह दिसम्बर, शुक्रवार को पूरे इलाक़े की ट्रेड यूनियनों होंडा कैजुअल मज़दूरों के समर्थन में मानेसर में एक विशाल सभा की।

तक़रीबन 1800 मज़दूर पांच नवंबर को प्लांट के अंदर ही धरने पर बैठ गए थे और मैनेजमेंट, लेबर अफ़सर और ट्रेड यूनियन काउंसिल के बीच हुई समझौते के बाद 14वें दिन बाहर निकले।

समझौता ये हुआ था कि अगर ये मज़दूर नरम रुख अपनाते हैं तो दो दिन के अंदर मैनेजमेंट कोई साकारात्मक फैसला करेगा लेकिन 19 नवंबर से ये सारे मज़दूर होंडा प्लांट के बाहर ही धरने पर बैठे हुए हैं।

कैजुअल मज़दूरों को प्लांट में वही काम करना पड़ता है जो परमानेंट मज़दूर करते हैं लेकिन सैलरी समेत उन्हें बाकी की सुविधाएं उनसे कमतर दी जाती हैं।

यहां तक कि प्रमुख लाईनों में कैजुअल मज़दूरों को लगाया जाता है और कई परमानेंट मज़दूरों ने स्वीकार किया कि बिना कैजुअल मज़दूरों के प्लांट को चलाना असंभव है।

शायद यही कारण है कि जब 19 नवंबर से गुड कंडक्ट बांड भर कर परमानेंट मज़दूर फिर से अपने काम पर लौेटे, उसके बाद से अबतक कंपनी अपना उत्पादन पूरी तरह नहीं शुरू कर पा रही है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपनी नौकरी के लिए जो कैजुअल मज़दूर इतना संघर्ष कर रहें हैं, उनको कितनी सैलरी मिलती है?

होंडा के एक मज़दूर ने वर्कर्स यूनिटी को फोन पर अपनी सैलरी से संबंधित कुछ अहम बातें बताईं।

कैजुअल के साथ दमन

मज़दूरों का कहना है कि कंपनी अब केवल उन मज़दूरों की भर्ती करेगी जो यहां 2009 से काम कर रहे हैं, और बाकी के सभी मज़दूरों को बाहर निकाल दिया जाएगा।

इसके बाद कंपनी अपने प्रोडक्शन लेवल को हाई दिखाकर 1 से 3 साल के कॉनट्रैक्ट पर मज़दूरों की भर्ती करेंगे और उनको 8 से 10 हजार तक वेतन देकर काम करवाया जाएगा।

मज़दूरों ने बताया कि यहां सालों से काम करने के बाद भी उनकी सैलरी को नहीं बढ़ाया गया, मौजूदा समय में उनकी सैलरी 14 से 18 हज़ार के बीच है और सब कुछ कटकर उनके हाथ में सिर्फ 14 हजार रुपये आते हैं।

वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक लाईव में एक मज़दूर ने बताया कि पिछले चार साल से कैजुअल वर्करों की सैलरी में कोई वृद्धि नहीं हुई है।

एक अन्य मज़दूर ने बताया कि पांच साल पहले परमानेंट करने के लिए टेस्ट हुआ था, लेकिन आजतक उसका रिजल्ट नहीं आया।

मज़दूरों का कहना है कि कंपनी मज़दूरों को साथ मनमाना रवैया अपना रही है, 3-4 महीनेे के ब्रेक के नाम पर मज़दूरों को नौकरी से छह महीने या साल भर पर निकाल दिया जाता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें सुविधाएं न देनी पड़ें, इसलिए बार-बार रिजवाइनिंग करवाई जाती है। इसी वजह से छह महीने पहले एक मज़दूर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

कैजुअल को भी ख़त्म करने की साजिश

मज़दूरों का आरोप है कि 10-10 साल से काम करने के पीछे परमानेंट होने की उम्मीद थी, लेकिन अब मैनेजमेंट कैजुअल वर्करों को भी निकालकर 10-10 हज़ार के फ़िक्स टर्म और नीम वर्कर रखने की योजना बना रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रबंधन कैजुअल मज़दूरों को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहता है, ताकि थोड़े बहुत कैजुअल मज़दूर बच जाए तो उन पर पूरी तरह से दवाब बनाए रख जा सके।

एक कैजुअल मज़दूर का कहना था कि ‘कंपनी के इस रवैये के खिलाफ परमानेंट मज़दूर खुलकर उनका साथ नहीं दे रहे हैं वरना इस हड़ताल को वे बाहर से नहीं बल्कि अंदर से समर्थन दे रहे होते।’

लेकिन बहुत से मज़दूरों का कहना है कि परमानेंट मज़दूरों की यूनियन के समर्थन के कारण ही कैजुअल मज़दूरों का एक सशक्त आंदोलन खड़ा हो पाया है और ये इलाक़ाई एकता क़ायम करने की ओर बढ़ रहा है।

सीटू के स्थानीय मज़दूर नेता सतवीर का कहना है कि आठ जनवरी को गुड़गांव से लेकर धारूहेड़ा तक का पूरा औद्योगिक इलाक़े में इस बार अभूतपूर्व हड़ताल होगी और सारे मज़दूरों में ऐतिहासिक एकता दिखेगी।

परमानेंट की सैलरी?

उन्होंने बताया कि कंपनी पहले भी मज़दूरों को 15-20 दिन के लिए ब्रेक दे देती थी तो फिर भी गुजारा कर लेते थे, लेकिन 3-4 महीनों के लिए काम न मिलने पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

वो कहते हैं, “तीन-चार महीने अगर हम घर बैठेंगे तो हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा, बच्चों की फिस से लेकर परिवार के खान-पीने से लेकर बुनियादी चीजों की पूर्ति के लिए हम किस का सहारा लेगें।”

“सैलरी होगी तभी घर का खर्च चल पाएगा और हम अपना गुजारा कर पाएंगे वरना हमारा गुजारा करना भी मुश्किल है।”

मज़दूरों का कहना है कि होंडा कंपनी में काम करते हुए उनको 10 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है पर आज भी उनको अपने सामने कोई भविष्य नजर नहीं आता।

वो अपनी परेशानी के बारे में आगे बताते हुए कहते है कि अब अगर वो किसी दूसरी कंपनी में जाकर काम करेंगे तो उनको कोई काम पर नहीं लेगा और अगर काम पर लेता भी है तो उनको 8 से 10 हजार तक के वेतन में 12-12 घंटे काम कराया जाएगा।

इसीलिए मज़दूर परमानेंट होने की मांग कर रहे हैं। परमानेंट मज़दूर को कंपनी सारी सुविधाएं देती है और कुछ मज़दूरों का दावा है कि परमानेंट मज़दूरों की सैलरी क़रीब 70 हज़ार रुपये है और दस दस साल तक काम करने के बाद वो परमानेंट होने के हक़दार हैं।

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Abhinav Kumar