केजरीवाल के घर पर पहुंचे दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक, छह महीने से रुका वेतन जारी करने की मांग
By अभिनव कुमार
पिछले 6 महीने से अधिक समय से वेतन न मिलने के कारण हड़ताल पर गये दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने 15 मार्च को वीसी ऑफिस से सीएम आवास तक ‘अधिकार रैली’ निकाली।
हजारों की संख्या में दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के बैनर तले सोमवार को वीसी ऑफिस से दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल के आवास तक पैदल मार्च निकाला।
मालूम हो कि दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित 12 कॉलेजों के शिक्षक पिछले 6 महीने से वेतन न मिलने की वजह से 11 मार्च से हड़ताल पर चले गये थे।
डूटा (दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) ने कहा कि विरोध कर रहे शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों ने दिल्ली सरकार द्वारा विश्वविद्यालय को सहायता के नाम पर संदिग्ध दस्तावेज के माध्यम से एनईपी(नई शिक्षा नीति) की शर्तों को लागू करना चाहती है।
शिक्षकों ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि ये लड़ाई सिर्फ हमारे वेतन की ही नहीं है बल्कि सरकार नई शिक्षा नीति (NEP) के द्वारा सरकारी सहायता प्राप्त इन शिक्षण संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के खिलाफ भी है। ये सरकार आने वाली नस्लों से पढ़ने-लिखने का अधिकार छीन लेना चाहती हैं।
डूटा की पूर्व प्रेसिडेंट नंदिरा नारायण के मुताबिक, एनईपी-2020 के प्रावधान ऐसे हैं जिसमें न शिक्षकों के वेतन का आश्वासन होगा और न ही उनके प्रमोशन का और साथ ही शिक्षकों के कार्यकारी परिषद का चुनाव भी नही कराया जायेगा। एक खास विचारधारा से जुड़े लोगों का पठन-पाठन से जुड़ी नीतियों को तय करने में भूमिका बढ़ा दी जायेगी।
रैली में शामिल छात्रों ने बताया कि “हम शिक्षकों की इन मांगों के साथ हैं। शिक्षकों के वेतन के साथ-साथ मसला हमारे फीस का भी है,आने वाली शिक्षा नीति के बाद हमारे फीस में भी बेतहाशा वृद्धि होगी। ये सरकार कॉलेज-यूनिवर्सिटी को कॉर्पोरेट के हाथों में देकर हम से हमारे शिक्षा का अधिकार छीन लेना चाहती है। ”
डूटा के प्रेसिडेंट राजीब रॉय ने बताया कि “सरकार शिक्षा को लेकर अपनी जिम्मेवारियों से भागना चाहती है। जनता को दुसरे मुद्दों में उलझा कर इन सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों का व्यावसायीकरण किया जा रहा है।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर क़रीबी नज़र रखने वाले एक पूर्व प्रोफ़ेसर ने दावा किया कि असल में दिल्ली सरकार के वित्त पोषित कॉलेजों ने यूनिवर्सिटी की मान्य फ़ीस से कई सौ गुना फ़ीस वसूली है और हरेक कॉलेज के फंड में करोड़ों रुपया आ गया है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार का कहना है कि कॉलेज प्रशासन इस पैसे का उपयोग टीचर्स और स्टाफ़ के वेतन के लिए करे।
जबकि कॉलेज का कहना है कि ये छात्रों के मद का पैसा है जिसे वेतन में नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। कुछ लोगों ने इस पर सवाल भी उठाए हैं कि जब फीस का पैसा छात्रों के मद के लिए है तो उसे अभी तक इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया और छात्रों की भलाई के लिए उनसे कई गुना क्यों फीस वसूली गई। (हालांकि वर्कर्स यूनिटी इस प्रोफ़ेसर के दावों का स्वतंत्र सत्यापन नहीं कर सकता। )
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