कोरोनाः पूरी दुनिया में मेडिकल सुविधाओं को निजी हाथों से छीन लेने की मांग तेज़
By मुकेश असीम
20 हजार करोड़ का खर्च स्वीकृत हो गया है क्योंकि प्रधानमंत्री जी को नया बंगला, सांसदों को नया संसद भवन और अफसरों को नए दफ्तर की ख़्वाहिश है!
लेकिन सभी मरीजों के लिए निःशुल्क टेस्ट टैक्सपेयर के पैसे की बरबादी है। जबकि डॉक्टरों के लिए मास्क, सुरक्षा वस्त्र, सैनिटाइज़र, वेंटिलेटर, आइसोलेशन वार्ड, टेस्ट किट देने पर चुप्पी पसरी है।
और इसमें साथ दे रहा है गोदी मीडिया। नफरत के साथ उसकी मूर्खता भी चरम पर है। सब चैनल पर मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ त्रेहान कोरोना पर लेक्चर झाड़ रहे हैं।
त्रेहन, देवी शेट्टी जैसे लोग अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं पर इन्होंने मुनाफ़े वाले निजी अस्पताल चलाये हैं, पब्लिक हेल्थ के क्षेत्र में कुछ नहीं किया।
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मुनाफ़ाखोरी और अंधविश्वास
उन पर कई मरीज़ों ने बंधक बनाकर पैसा उगाहने और केस बिगाड़कर मरीज़ों के परिजनों को लूटने के भी आरोप लगे हैं।
ऊपर से रामदेव, जग्गी, श्री श्री जैसे आध्यात्मिक लोगों को चैनलों पर ‘ज्ञान’ परोसने के लिए बुलाया जा रहा है।
इन ‘मुनाफ़ाख़ोरों और ठगों’ की बजाय संक्रामक रोगों के डॉक्टर, कम्यूनिटी मेडिसिन विशेषज्ञ और पब्लिक हेल्थकेयर के जानकारों को चैनल वाले क्यों नहीं बुला रहे हैं? मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही का भेद खुल जाएगा इसलिए?
यही वक़्त है जब पूरे देश की स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों से छीन लेना चाहिए और सबके इलाज़ को पूरी तरह फ्री कर देना चाहिए।
कोरोना वायरस के हमले के बाद ऐसी मांग यूरोप, अमेरिका से लेकर पूरी दुनिया में उठने लगी है।
‘मुक्त’ पूंजीवादी बाजार व्यवस्था के चौधरी अमरीका में न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रू कुओमो ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप से पूरी मेडिकल आपूर्ति चेन के राष्ट्रीयकरण की माँग की है।
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अमरीका में उठी मांग
इसके साथ ही रक्षा उत्पादन कानून के अंतर्गत कंपनियों को अनिवार्य तौर पर मास्क, सुरक्षा वस्त्र, मेडिकल उपकरण बनाने का आदेश देने को भी कहा है।
कुओमो ने फौज को भी कहा है कि वो फौरी जरूरत के लिए अस्पतालों का निर्माण करे।
कुओमो बर्नी सैंडर्स की श्रेणी का ‘समाजवादी’ भी नहीं है बल्कि वाल स्ट्रीट के वित्तीय पूँजीपतियों का भरोसेमंद आदमी रहा है।
पर उसके सामने भी स्थिति स्पष्ट है कि नियोजित सामाजिक उत्पादन आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बल पर ही बीमारी के संकट से निपटा जा सकता है।
फिर अमरीका-यूरोप में यह कहने वाला कुओमो अकेला नहीं है, समाजवाद-वामपंथ के कट्टर विरोधी, निजी संपत्ति आधारित पूंजीवाद के मुनाफा कमाने के सख्त समर्थक बहुत सारे लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्ण राष्ट्रीयकरण की माँग करते पाया जा सकता है, स्पेन सरकार ने तो यह कर भी दिया है।
भारत सरकार को क्या करना चाहिए?
साफ है कि संकट के कारण ही सही पर खुद ‘विकसित’ पूंजीवादी देशों में भी नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के सर्वनाशी चरित्र को लोग समझ रहे हैं।
पर भारत में अभी भी सरकार निजी पूँजीपतियों के मुनाफ़ों को बढ़ाने में लगी है जबकि जरूरत है कि सभी अस्पतालों और लैब सहित समस्त मेडिकल सेवाओं/उद्योगों को सार्वजनिक नियंत्रण में लेकर सभी के लिए समान सार्वजनिक निशुल्क स्वास्थ्य सेवा का इंतजाम किया जाये।
इसके लिए स्टेडियमों, होटलों, क्लबों, बैंक्वेट हाल, आदि में अस्थायी अस्पताल व क्वारंटाइन सेंटर बनाए जायें।
इन्हें चलाने के लिए देश में मौजूद हर डॉक्टर, नर्स व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को भी काम में शामिल किया जाये।
चाहे वे कहीं नौकरी करते हों या निजी प्रैक्टिस करते हों, या फौज-पुलिस, प्रशासनिक सेवा में हों।
साथ ही जिन भी उपकरणों – मास्क, हज़मत सूट, टेस्टिंग किट, वेंटिलेटर, ऑक्सिजन सिलिंडर की जरूरत हो, उन्हें बनाने की क्षमता वाले उद्योगों को आदेश देकर उनका उत्पादन शुरू कराया जाये।
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