लॉकडाउन में केरल के 80% परिवारों को जनधन खाते में एक नया पैसा नहीं मिला, सर्वे का खुलासा

लॉकडाउन में केरल के 80% परिवारों को जनधन खाते में एक नया पैसा नहीं मिला, सर्वे का खुलासा

By सुरजीत दास, सोनी टी.एल.

केरल भारत के अन्य राज्यों से ही नहीं बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों की तुलना में COVID-19 चुनौती से अधिक कुशलता से लड़ रहा है। केरल केवल भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के समक्ष महामारी से निपटने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

केरल की सफलता न केवल बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य संरचना, प्रभावी विकेंद्रीकरण, सामुदायिक भागीदारी और योजना की कुशल प्रक्रिया पर निर्भर है, बल्कि केंद्र से वांम राजनीतिक गठबंधन (वाम लोकतांत्रिक मोर्चा ) के गरीब-मानवीय दृष्टिकोण पर भी निर्भर है।

इस तथ्य पर प्रकाश डालना महत्वपूर्ण है कि कोरोना वायरस संक्रमण को सफलतापूर्वक नीचे ले जाने के बावजूद, केरलवासी COVID-19 लॉकडाउन के कारण समान रूप से आमदनी के नुकसान, कर्ज के बोझ तले दबने और आजीविका की अनिश्चितता से परेशान थे।

हमने केरल में जमीनी स्तर की वास्तविकता को समझने के लिए जुलाई के महीने में 480 परिवारों से 2056 लोगों तक टेलीफोन के माध्यम से  पहुंचने का प्रयास किया है।

हमारा सैम्पल निश्चित रूप से केरल की पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, हालांकि यह टेलीफोनिक सर्वेक्षण हमें कुछ हद तक स्थिति को समझने में मदद करता है।

हमारे सैम्पल में 59% परिवारों ने बताया है कि लॉकडाउन के कारण उनके कर्ज़ में वृद्धि हुई है। 85% परिवारों की आय कम हो गई है और 60% परिवारों के लिए अप्रैल, मई और जून के महीनों में उनकी आय पूर्व-लॉकडाउन आय की तुलना में आधे से भी कम रह गई है।

इनमें 80% से अधिक परिवारों को जन-धन खाते में कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है और 95% से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमकेकेवाई) की घोषणा के 3 महीने से अधिक समय के बाद भी रसोई गैस का मुफ्त सिलेंडर नहीं मिला है।

kerala during lockdown

25% परिवारों की आय 1875 रु. से भी कम

70% रेस्पॉन्डेंट एक सार्वभौमिक रोजगार गारंटी योजना चाहते हैं लेकिन उनमें से केवल 10% के पास ही जॉब-कार्ड है। रोजगार के अवसर और नकदी हस्तांतरण दो महत्वपूर्ण मांगें हैं जो जमीनी स्तर से सबसे प्रमुख रूप से सामने आ रही हैं।

सरकार को इस अभूतपूर्व संकट के दौरान इन पर ध्यान देना चाहिए।

हमारे सैम्पल में 135 महिला और 345 पुरुष रेस्पॉन्डेंट थे जिनकी की आयु 13 वर्ष से 35 वर्ष के बीच थी। 90 रेस्पॉन्डेंट स्कूल-ड्रॉपआउट थे, 153 रेस्पॉन्डेंट ने 10वीं तक पढ़ाई की, 97 रेस्पॉन्डेंट ने 12वीं की पढ़ाई पूरी की, 86 स्नातक, 30 लोग पेशेवर योग्यता के साथ और 24 रेस्पॉन्डेंट पोस्ट-ग्रेजुएशन और इसके बाद की योग्यता के साथ थे।

हमारे में सैम्पल 50 परिवार मुस्लिम, 89 ईसाई, 334 हिंदू और 7 परिवार अन्य पृष्ठभूमि से थे। 5 परिवार अनुसूचित जनजाति (ST), 56 अनुसूचित जाति (SC), 258 अन्य पिछड़ी जाति (OBC) और बाकी 159 घर अन्य जाति के पृष्ठभूमि से थे।

रेस्पॉन्डेंट में मिस्त्री, लेखाकार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ऑटोरिक्शा चालक, सरकारी कर्मचारी, निजी क्षेत्र के कर्मचारी, व्यवसायी, बढ़ई, कुली, दैनिक वेतन भोगी, ड्राइवर, बिजली, किसान, मछुआरे, शिक्षक, घर बनाने वाले, होटल कर्मचारियों, घरेलू सहायक, कारखाने के कर्मचारियों, प्रबंधकों, नर्सों, हाउस पेंटिंग श्रमिकों, दुकान के चौकीदार, सेल्स गर्ल्स-बॉयज, दर्जी, ताड़ी टेपर्स, मंदिर कर्मचारियों, वेल्डर और सब्जी विक्रेताओं आदि सहित अन्य विविध व्यावसायिक पृष्ठभूमि से थे।

हमारे सैम्पल में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि के 8 प्रवासी परिवार भी थे तथा दुबई, कुवैत, बहरीन, यूएई, ओमान, रियाद, लेबनान और मस्कट से 9 एनआरआई परिवार थे।

इन 480 घरों की औसत मासिक आय लॉकडाउन से पहले लगभग 20,500 रु थी। हमारे सैम्पल में एक-चौथाई परिवारों की प्रति व्यक्ति मासिक आय 1875 रु से नीचे थी, जबकि कि एक-चौथाई परिवारों की 1875 रु-3750 रु के बीच में थी, एक-चौथाई परिवारों के लिए 3750 रु से 6000 रु तक थी और बाकी के एक-चौथाई परिवारों के लिए प्रति व्यक्ति मासिक आय 6000 रु से लेकर 80,000 रु. से ऊपर थी।

कमाई आधी हुई

लॉकडाउन के कारण इन परिवारों की औसत मासिक आय लगभग आधी हो गई है। 480 में से केवल 72 (15%) परिवारों की ही आय अप्रैल, मई और जून के महीनों के दौरान पूर्व-लॉकडाउन आय स्तर पर बरकरार रह पायी।

लॉकडाउन के दौरान 60 से अधिक परिवारों ने सूचित किया कि उनकी आय पूरी तरह से समाप्त हो गयी है और 287 परिवारों (60%) के लिए लॉकडाउन के कारण मासिक आय या तो आधी या आधे से भी कम हो गई है।

480 में से 280 (59%) रेस्पॉन्डेंट ने लॉकडाउन के कारण अपने परिवारों की कर्ज़ में वृद्धि की सूचना दी है और अन्य अपनी पिछली बचत के साथ प्रबंधन कर सके।

लगभग 70% रेस्पॉन्डेंट की राय शहरी रोजगार गारंटी योजना के लिए है और 30% ने कहा है कि वे निश्चित नहीं हैं।

यहां यह उल्लेखनीय है कि केरल राज्य में पहले से ही शहरी रोजगार गारंटी योजना है जिसे अय्यंकाली शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम कहा जाता है और इसके साथ ही मनरेगा (ग्रामीण क्षेत्रों के लिए) है।

हालांकि, हमारे सैम्पल  में 10% से कम रेस्पॉन्डेंट ने  रोजगार गारंटी योजना के जॉब-कार्ड होने की सूचना है, लेकिन उनमें से 70% शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से इसकी मांग कर रहे हैं। इसलिए, यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार को अधिक ध्यान देने की जरुरत है।

जहां तक मार्च के महीने में केंद्र सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के घोषणा की बात है तो प्रत्येक परिवारों को मुफ्त राशन, मुफ्त गैस सिलेंडर और जन-धन खातों में 500 रुपये प्रतिमाह मिलने की बात की गयी थी।

सरकार से 7,500 रु प्रति माह मुआवज़े की मांग बढ़ी

केरल में कुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के कारण हमारे सैम्पल में 97% परिवारों को लॉकडाउन के दौरान मुफ्त राशन मिला है।

हालांकि हमारे सैम्पल में मात्र 17% रेस्पॉन्डेंट ने नकद हस्तांतरण प्राप्त करने की सूचना दी है और 4% से कम परिवारों को अप्रैल, मई और जून के महीनों के दौरान मुफ्त रसोई गैस के सिलेंडर मिले हैं।

इसलिए, सरकार को उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से खाद्यान्न वितरण के अलावा पहले से घोषित योजनाओं के कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यता है।

कुल 480 में से 120 परिवारों (25%) के परिवार में COVID-19 के अलावा कुछ और बीमारियों के मरीज़ थे, और उनमें से 50% से अधिक को केरल में लॉकडाउन के कारण उनके उपचार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।

एक तिहाई से अधिक रेस्पॉन्डेंट ने कहा है कि लॉकडाउन के दौरान घर पर बैठना विभिन्न कारणों से उनके लिए बिल्कुल भी आरामदायक नहीं था। लगभग 80% रेस्पॉन्डेंट को अनुमान है कि आने वाले छह महीनों में उनकी औसत मासिक आय प्री-लॉकडाउन आय की तुलना में कम हो जाएगी।

इसलिए, लोगों के दिमाग में रोज़गार के लिए अत्यधिक असुरक्षा और आय की संवेदनशीलता बनी हुई है। अतः सरकार को उन्हें विश्वास दिलाने के लिए कुछ आश्वासन देना चाहिए। ज़्यादातर रेस्पॉन्डेंट ने इस कठिन समय के दौरान केरल राज्य सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की है।

हालांकि, गैर-आवासीय केरलवासियों के आने के बाद हाल के दिनों में स्थिति पहले की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।

जमीनी स्तर से मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं। साफ़ है कि अधिकांश लोग प्रवासी (एनआरआई) सहित  रोजगार के अधिक अवसर सृजित करने का आग्रह कर रहे हैं।

गैर-प्रत्यक्ष कर दाता परिवारों को वित्तीय सहायता और 7,500 रु प्रति माह कम से कम रोज़गार हानि मुआवजा सबसे प्रमुख सुझावों में से एक है।

आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को विनियमित करना विशेष रूप से पेट्रोल उत्पादों की प्रमुख मांगों में से एक है। बिजली का बिल माफ करने की भी प्रमुख मांग है।

लॉकडाउन के दौरान ईएमआई का भुगतान करना एक वास्तविक समस्या है (कम या बिना आय के) और मौजूदा संकट के दौरान ब्याज मुक्त ऋण के प्रावधान की मांग है।

आबादी के गरीब वर्ग के जीवन और आजीविका की रक्षा करने का सुझाव है लेकिन यह केवल गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों तक ही सीमित न हो तथा समाज में अधिक समानता लाने की मांग है।

उम्मीद है कि सरकार के नीति निर्माता इन सभी मुद्दों पर ध्यान देंगे और जल्द से जल्द समाधान करने का प्रयास करेंगे।

[सुरजीत दास जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के आर्थिक अध्ययन और नियोजन केंद्र में सहायक प्रोफेसर हैं और सोनी टी.एल. श्री सी.अच्युत मेनन गवर्नमेंट कॉलेज तृश्शूर, केरल में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। इंग्लिश से हिंदी में अनुवाद पूनम पाल ने किया है जो  सीईएसपी-जेएनयू में पीएचडी शोधार्थी हैं।]

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