जब कोरोना से जूझ रहे थे प्रोफ़ेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय ने नौकरी से निकाल दिया

जब कोरोना से जूझ रहे थे प्रोफ़ेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय ने नौकरी से निकाल दिया

जिस समय दिल्ली में कोरोना महामारी का विस्फ़ोट हुआ और घर घर लोग बीमार थे, दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों को नौकरी से निकाल दिया गया जिनमें पांच कोरोना की बीमारी से जूझ रहे थे।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) ने 27 मई को विवेकानंद कॉलेज में हुई इस बिना नोटिस छंटनी के विरोध में एक दिन की हड़ताल की।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, निकाले गए असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों में से एक ने कहा कि इन 12 में से सात आरक्षित श्रेणियों (चार ओबीसी और तीन एससी) के थे, और उनमें से ज्यादातर अपने परिवारों में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे।

न्यूज क्लिक वेबसाइट के अनुसार, DUTA के अध्यक्ष राजीव रे का कहना है कि कार्यवाहक प्राचार्य डॉ नीना हिंदराजोग ने किसी भी तर्क को सुनने से इनकार कर दिया है और कॉलेज को अपनी जागीर के रूप में चला रही हैं।

इससे पहले, अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों ने भी इस कदम के खिलाफ कुलपति पीसी जोशी को पत्र लिखा था।

कई कॉलेजों से ख़बर आ रही है कि कार्य भार की कमी के बहाने एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को निकाला जा रहा है, इसके लिए यूनिवर्सिटी कॉलेजों से सूची मांग रही है।

जिन 12 असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों को निकाला गया, उसका कारण बी कार्यभार में कमी बताया गया है और 30 अप्रैल से इनके कांट्रैक्ट को रिन्यू नहीं किया गया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में 4,500 एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को नियुक्त करता है जिन्हें 4-4 महीने के नियमित अंतराल पर पुनर्नियुक्त की जाती है। इन एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स का कहना है कि उनकी काम करने की स्थिति शोषणकारी बनी हुई है। यहां तक ​​कि कई शिक्षक जो गर्भवती थीं, उन्हें बिना किसी प्रसूति अवकाश के सेवा करने के लिए मजबूर किया जाता है।

न्यूज़ क्लिक के अनुसार, नाम न छापने का अनुरोध करने वाले एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स  में से एक ने बताया कि उन्हें निकाला जाना उनके और परिवार के लिए तबाही जैसा है।

उन्होंने कहा, “डीयू में एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स का भविष्य इतना डंवाडोल होता है कि अधिकांश लोग शादी नहीं करते हैं और जो शादी कर लेते हैं वो अपने बच्चे पैदा करने का विचार स्थगित कर देते हैं। मैंने आठ साल तक कॉलेज की सेवा की और उम्मीद की कि यह अंधेरे समय में हमारे साथ खड़ा रहेगा। इस फैसले ने मेरी रातों की नींद हराम और अकथनीय मानसिक पीड़ा दी है। महामारी के बीच हमें कौन नौकरी देगा? इसने आठ महीने की गर्भवती शिक्षिका की भी परवाह नहीं की, जो एक साथ कोरोनोवायरस से जूझ रही थी।”

“ऐसी ही स्थिति पहले भी सामने आई थी जब प्रशासन ने एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को हटा दिया था। ऐसी हर कार्यवाही पर उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा तब जाकर लोगों की नौकरी बची।”

डूटा के प्रेसिडेंट राजिब रे ने कहा कि यह मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा 5 दिसंबर के पत्र का घोर उल्लंघन है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को उनके पदों से नहीं हटाया जाएगा। जब लोगों को अपनी नौकरी की आवश्यकता होती है तो वे इसे कैसे कर सकते हैं?”

उन्होंने कहा कि कॉलेज प्रशासन ने भी भारी बहुमत इसपर सहमति जताई थी। यूनियन की मांग है कि हिना नंदराजोग को कार्यवाहक प्रधानाचार्य के पद से तुरंत हटा दिया जाए क्योंकि उन्होंने पहले ही 5 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है और दिल्ली विश्वविद्यालय के नियमों का यह उल्लंघन है, जिसमें 5 साल से अधिक समय तक काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

राजिब रे ने कहा है कि “12 शिक्षक पिछले कई वर्षों से इस कॉलेज में पढ़ा रहे हैं। इन 12 में सबसे लंबे समय तक सेवारत एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर 2014 से ही पढ़ा रहे हैं और अन्य 2016 और 2018 से पढ़ा रहे हैं। यह बहुत शर्म की बात है कि कार्यवाहक प्रधानाचार्य ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के समय ऐसे एडहॉक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स की आजीविका छीन ली है, जब ये शिक्षक और उनके परिवार सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ”

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Workers Unity Team

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