कैसे भाजपा सरकारों ने बिजली को निजी हाथों तक पहुंचाया : बिजली संशोधन बिल-2020 ,भाग-2
By एस. वी. सिंह
बिजली विभाग में निजीकरण का कालक्रम
उत्पादन, हस्तांतरण और वितरण; बिजली विभाग के ये तीन प्रमुख खण्ड हैं। बिजली हमारे दैनिक जीवन की सबसे अहम ज़रूरतों में से एक है जो हर व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है। इस विभाग का निजीकरण बाक़ी महक़मों से पहले शुरू हो गया था।
बिजली विभाग का पुनर्गठन (निजीकरण)
वर्ष | सुधार (निजीकरण) |
1975 से पहले | तीनों विभाग इकट्ठे थे और कुछ शहरों को छोड़कर सरकारी थे। उत्पादन, हस्तांतरण और वितरण का काम राज्य बिजली बोर्ड और बिजली विभाग किया करता था। |
1989 | हस्तांतरण (ट्रांसमिशन) विभाग को केन्द्रीय उत्पादन एजेंसी से अलग कर दिया गया। विद्युत हस्तांतरण के लिए भारत का निकाय (पॉवर ग्रिड) का गठन किया गया। |
90 दशक के शुरू में | विद्युत उत्पादन विभाग को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया। |
1996-1998 | कुछ राज्यों (ओडिशा, हरियाणा) ने अपने राज्यों के राज्य बिजली बोर्डों का पुनर्गठन प्रारंभ किया। पुनर्गठन का अर्थ है कि उत्पादन, हस्तांतरण और वितरण गतिविधियों को अलग अलग करना और उत्पादन तथा वितरण का निजीकरण शुरू करना। |
1998 | विद्युत नियमन आयोग कानून, 1998 – केंद्र तथा राज्यों में नियमन आयोग गठित किए गए। |
2003 | बिजली कानून, 2003 – उत्पादन से नियंत्रण हटाना, निजी क्षेत्र के लिए खोल देना, समानांतर लाइसेंस जारी करना, विद्युत नियमन आयोगों को और शक्ति प्रदान करना, राज्य शासित बिजली बोर्डों के पुनर्गठन की मंजूरी देना,क्रॉस सब्सिडी (अलग अलग विभाग जैसे उद्योग, कृषि,घरेलु और खपत के अनुसार बिजली की अलग दरें) को समाप्त करने की व्यवस्था करना |
2007 | 2003 के बिजली क़ानून को संशोधित किया गया तथा क्रॉस सब्सिडी को समाप्त करने की बजाय कम करना किया गया। |
(स्रोत: ऊर्जा मंत्रालय: विद्युत संशोधन क़ानून, 2014)
इसके बाद 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने क्या किया, वो इस तरह से है:
विद्युत संशोधन क़ानून, 2014
मोदी सरकार जिस विशिष्ट एजेंडे के तहत सत्ता में आई थी उसे लागू करने में उन्होंने कोई वक़्त बर्बाद नहीं किया।
मौजूदा ऐतिहासिक किसान आन्दोलन से सम्बद्ध क़ानून उनके एजेंडे में सबसे ऊपर थे। मई 2014 में सत्ता संभाली और अगस्त 2014 में ही कृषि क़ानून बनाने की दिशा में शांताकुमार समिति का गठन कर दिया गया।
दूसरी तरफ़ बिजली क़ानून, 2003 जो भाजपा शासन के ही प्रथम संस्करण, वाजपेयी काल में लाया गया था और जो ख़ुद हर तरह से निजीकरण की छूट देता है,क्रॉस सब्सिडी मतलब अलग-अलग क्षेत्र जैसे उद्योग, कृषि और घरेलु उपभोग के लिए अलग-अलग बिजली दरें समाप्त कर डालने तथा कम बिजली उपभोग को कम दर और अधिक उपभोग को ज्यादा दर पर बिजली आपूर्ति को समाप्त करने की छूट दे चुका है, उसे और संशोधित करने के लिए दिसम्बर 2014 में ही एक बिल संसद में प्रस्तुत कर दिया गया।
उस वक़्त तक चूँकि संसदीय मान्यताएं ध्वस्त नहीं हुई थीं इसलिए उसे ‘विधि विधान’ से ही लाया गया।
संसद में ये बिल 19.12.2014 को प्रस्तुत हुआ, 22.12.2014 को सम्बद्ध संसदीय समिति को बहस के लिए दिया गया जिसमें विपक्ष के सदस्य भी होते हैं तथा संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट 07.05.2015 को सौंपी। इस संशोधन के 5 बिन्दू इस तरह हैं।
1: बिजली कानून,2003 में संशोधन किया जाए, विद्युत वितरण और आपूर्ति व्यवसाय को अलग किया जाए, इस व्यवसाय में अनेक निजी कंपनियों को व्यवसाय करने की छूट दी जाए।
2: विद्युत आपूर्ति लाइसेंसधारक कंपनी ही बिजली की आपूर्ति करे। विद्युत वितरण लाइसेंस धारक कंपनी बिजली का वितरण करे और आपूर्ति कंपनी को बिजली उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे।
3: राज्य विद्युत नियमन आयोग आपूर्ति के लाइसेंस प्रदान करे। उपभोक्ता किसी भी कंपनी से बिजली खरीदने के लिए स्वतन्त्र हो।
4: अगर आपूर्ति लाइसेंसधारक, निलंबित कर दिया जाता है और वो लाइसेंस धारक नहीं रहता तो बिजली की आपूर्ति ‘अन्तिम हालात के प्रदाता’ (Provider of Last Resort,POLR) द्वारा की जाए जिसकी नियुक्ति राज्य विद्युत नियमन आयोग द्वारा की जाए।
5: राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीति बनाई जाए और कम से कम 10% बिजली उत्पादन अक्षय ऊर्जा के ज़रिए हो।
क्रमश:
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