कारपोरेट के हाथों देश की बिजली बेच देने का मसौदा है : विद्युत संशोधन अधिनियम-2020:भाग -4

कारपोरेट के हाथों देश की बिजली बेच देने का मसौदा है : विद्युत संशोधन अधिनियम-2020:भाग -4

By एस. वी. सिंह

विद्युत संशोधन बिल, 2020

ये वही बिल है जिसे किसानों को कम से कम क़ीमत चुकाकर शांत कराने की विफल कवायद में 30 दिसम्बर को छठे दौर की वार्ता में सरकार ने वापस लेने अथवा इसके प्रावधान किसानों पर लागू ना करने की घोषणा की।

हालाँकि, ये नहीं भूलना चाहिए कि लिखित में कुछ भी नहीं बताया गया इससे वास्तव में स्थिति क्या है, अभी स्पष्ट नहीं है।

1975 से शुरू हुई निजीकरण की प्रक्रिया ने 1991 के बाद गति पकड़ी और अब 2014 में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद से गति टॉपगियर में है।

फिलहाल काफ़ी हद तक बिजली का काम निजी कंपनियां ही कर रही हैं, इसलिए ये गटर गंगा अब हमेशा के लिए यहीं रुकी रहेगी या पीछे खिसकेगी इसकी संभावना नहीं है।

मगरमच्छ जैसी बड़ी कंपनियाँ बुर्जुआ सरकारों से काम कराना अच्छी तरह जानती हैं। इसलिए इस बिल के प्रावधानों को जानना, समझना उतना ही ज़रूरी है जितना 30 दिसम्बर के पहले था।

इस बिल से सरकार चाहती क्या है?

 1 . बिजली के सारे बटन केंद्र के पास रहें: राज्यों के अधिकार कम करते जाना और सभी महत्वपूर्ण अधिकार केंद्र के हाथों में समेटते जाना, मोदी सरकार की कार्यप्रणाली की खासियत है। किसी इदारे को अपने वश में करने के लिए ज़रूरी है कि उसमें बड़े निर्णायक पदों पर अपने सेवकों को बैठाया जा सके। सब   तरफ यही हो रहा है।

एक दिलचस्प बदलाव देखिए;“निर्वाचन समितियों के अध्यक्ष अब उच्च न्यायलय के रिटायर्ड जज नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के कार्यरत जज होंगे”। सरकार समझ गई है कि कई जजों को रिटायर होने के तुरंत बाद अचानक दिव्य ज्ञान प्राप्त हो जाने की घातक बीमारी होती है।

कई बार वो निज़ाम के लिए अत्यंत असुविधाजनक प्रश्न उठा देते हैं। सेवारत व्यक्ति में ये आशंका नहीं होती। दूसरी तरफ़ सुप्रीम कोर्ट के जज, उच्च न्यायलय के जज की अपेक्षा केंद्र को ज्यादा ‘सुविधाजनक’ रहते ही हैं। राष्ट्रीय लोड प्रेषण केंद्र (NLDC) के मध्यम से बिजली के पांचों क्षेत्रीय प्रभाग; उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिणी, पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी केंद्र के सीधे नियंत्रण में आ जाने वाले हैं।

2 .ग़रीबों को दी जाने वाली सब्सिडी ख़त्म करो: जब भी ‘सब्सिडी’ शब्द बोला जाता है, ऐसा आभास उत्पन्न किया जाता है मानो सब्सिडी सिर्फ़ ग़रीब लोगों को ही दी जाती हैं। बड़े कॉर्पोरेट शार्क सबसे ज्यादा सब्सिडी/ सरकारी माल हजम करते हैं जैसे क़र्ज़ माफ़ी (6 साल के कार्यकाल में मोदी सरकार सरमाएदारों के लगभग 10 लाख करोड़ के क़र्ज़ माफ़ कर चुकी है) ब्याज, कर, जुर्माना में माफ़ी आदि।

इसमें विशालकाय सरकारी धन खर्च होने से सरकारी खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ता। गरीबों को दी जाने वाली किसी भी सब्सिडी से सरकारी ख़जाने के पेट में असहनीय दर्द होने लगता है। “नोट किया जाए, भारत सरकार देश के कुल 56 मंत्रालयों से सम्बद्ध 419 योजनाओं में सब्सिडी को ‘सीधे खाते में पैसा ट्रान्सफर’ (DIRECT BENEFIT SCHEME) द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपये की बचत कर चुकी है विद्वान बिजली मंत्री जी ने ये उदगार किए तो अपनी कार्यकुशलता प्रस्थापित करने के लिए थे लेकिन इससे एक कड़वी सच्चाई बाहर बिखर गई।

ये 1.70 लाख करोड़ की ‘बचत ग़रीबों की जेब काट कर ही हुई ना, सर? आप समझ सकते हैं कि सब्सिडी, वस्तु की क़ीमत से हटाकर नक़द खाते में अर्पित करने की जब भी बात होती है, जो हर रोज़ हो रही है, वो दरअसल, आम गरीबों को सब्सिडी से वंचित करने की ही बात होती है।

3 .बिजली का भाव उसकी लागत तथा बाजारू शक्तियां तय करेंगी: इस जुमले का सरल भाषा में मतलब है कि बिजली कई गुना तक महंगी होगी। निजीकरण का मतलब सर्वथा और सदैव दाम बढ़ना होता है, कृपया नोट किया जाए। “ऐसा अनुमान है कि ‘डिस्कॉम’ (मतलब बिजली आपूर्ति करने वाली निजी कंपनी) से सरकार को कुल 1.4 लाख करोड़ रुपये की सरकारी वसूली बाक़ी है और वो इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि राज्यों ने बिजली के दाम नहीं बढाए” ऊर्जा मंत्री ऐसा बोलकर दरअसल राज्यों को हड़का रहे हैं कि तुम लोग कितने निकम्मे हो, बिजली के दाम भी जल्दी से नहीं बढ़ाते और जिससे डिस्कॉम को घाटा झेलना पड़ रहा है।

जिन कंपनियों ने मुनाफ़ा कमाने के लिए ही जन्म लिया है, उन्हें आप लोगों की वज़ह से घाटा उठाना पड़ता है। दीवार पर और कितने मोटे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए? बिजली के जो बिल इस वक़्त देश के उपभोक्ता भर रहे हैं उनमें बहुत भारी सब्सिडी है जिसे दूर कर बिलों को ‘दुरुस्त’ करने के लिए सरकार बेचैन थी लेकिन बीच में किसान अड़ गए।

बिजली मंत्री, आम आदमी की कमर तोड़ने वाली बिजली दर वृद्धि को कितनी चतुराई से उचित ठहरा रहे हैं, देखिए;‘बिजली वितरण व आपूर्ति कंपनियों को सरकार को कुल 2.26 लाख करोड़ रुपये देने बक़ाया हैं। इन कंपनियों ने ये पैसा बैंकों से क़र्ज़ ले रखा है। इनकी आमदनी नहीं बढ़ी तो बैंक के क़र्ज़ डूब जाएँगे, बैंक डूब जाएँगे, देश की अर्थ व्यवस्था ढह जाएगी’

4  .‘क्रॉस सब्सिडी’ हटाकर व्यापार करने की सरलता (Ease of doing business): इन चार शब्दों, ‘व्यापार करने की सरलता’ ने आजकल हर तरफ़ आतंक बरपाया हुआ है। इसी ‘सरलता’ का नाम लेकर मज़दूरों के उनके खून कि क़ीमत पर अर्जित सारे अधिकार छीन लिए गए और उन्हें ‘लेबर कोड’ के नाम पर ठगा जा चुका है।

इस जुमले का मतलब है, सरमाएदारों जो चाहें उन्हें वो करने की छूट। इस बिल में इसके निशाने पर है ‘क्रॉस सब्सिडी’। क्रॉस सब्सिडी का मतलब है, उपभोग के उद्देश्य तथा उपभोग की मात्रा के अनुसार बिजली की दरों का तय किया जाना। जैसे, उद्योग को मंहगी, खेती को सस्ती या मुफ़्त; व्यवसाय के लिए मंहगी, घरेलु उपभोग के लिए सस्ती, उसी तरह कम यूनिट खपत पर कम दर और ज्यादा यूनिटों पर बढ़ी हुई दर।

राष्ट्रवादी सरकार ये ‘भेदभाव’ समाप्त करना चाहती है। किसान, दरअसल, डबल सब्सिडी का ‘आनंद’ ले रहे बताए जा रहे हैं; खेत में ट्यूब वेल पर भी कम रेट या मुफ़्त और घर में भी कम रेट। प्रस्तावित क्रॉस सब्सिडी हटने से किसानों की कमर में जो भी पदार्थ बचा है वो भी सूख जाने वाला था। इसलिए किसान, बेवजह, तपे हुए नहीं हैं; साँस से अंगार नाहक ही नहीं उगल रहे।

सरकार को अपने मंसूबों में पीछे धकेलने के लिए उन्हें उदार ह्रदय से बधाई बनती ही है। हमारे देश की बुर्जुआ सरकारों ने एक पैंतरे में निपुणता हासिल की हुई है। लोगों को एक झटके में हलाल मत करो विद्रोह का खतरा है, धीरे धीरे काटो तो सहते चले जाएँगे।

मेंढक को खौलते पानी में डालो तो या तो वो कूदकर बाहर आ जाएगा या फिर मर जाएगा लेकिन यदि वही खौलता पानी उसके ऊपर धीरे धीरे डालो तो वो दर्द सह लेगा और फिर दर्द सहने का आदि हो जाएगा। सरकार का मक़सद था कि वर्त्तमान में सब्सिडी 50% है जिसे घटकर पहले 20% पर लाया जाए बाक़ी 20% अगले झटके में।

5 .विद्युत अनुबंध प्रवर्तन अधिकार (Electricity Contract Enforcement Authority): देसी भाषा में इसका मतलब है बिजली का बिल ना भरने वालों को सबक सिखाना, इसके लिए ढांचागत और कानूनी बदलाव लाना। ‘केन्द्रीय विद्युत नियमन आयोग तथा ‘राज्य विद्युत नियमन आयोग के अधिकारों को विस्तृत करना।

उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक सशक्त आयोग गठित करना जिसे हुक्म ना मानने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही के सभी अधिकार दिए जाना।

6 .अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal एप्टेल): विवादित मुद्दों को जल्दी निबटाने के लिए सदस्यों कि संख्या बढ़ाकर 7 करना। इन्हें अदालत के समान अधिकार तथा अदालत की अवमानना वाले दण्डित करने वाले अधिकार भी दिया जाना, रिसीवर नियुक्त करना, अनुबंध का पालन ना करने वालों की संपत्तियां जब्त करना,कुर्की करना, बेच डालना ये सब दिया जाना शामिल है।

ये प्रावधान वितरण लाइसेंस धारक के साथ साथ उपभोक्ताओं पर भी लागू होने हैं। इनमें सिविल के साथ ही आपराधिक दण्ड दिए जाने का भी प्रावधान है।बिजली कानून, 2003की धारा 142 तथा 146 में संशोधन कर सज़ा की अवधि बढाना बल्कि उसे आपराधिक कृत्य मानना भी शामिल है। धारा 146 में बिजली आपूर्ति में बाधा पहुँचाने पर आपराधिक मुक़दमे दायर करने के प्रावधान किए जा रहे हैं जिनका दुरूपयोग आन्दोलनकारियों के विरुद्ध किए जाने की तीव्र आशंका है।

निजी कंपनियों लिए खुशखबरी है कि वे पुरे देश में विद्युत आपूर्ति का ठेका लेकर फिर दूसरी कंपनियों को काम बाँट सकते हैं।

7. निजी कंपनियों को अपने नाम पर ठेका लेकर दूसरी छोटी कंपनियों को ठेका देने कि छूट प्रदान करना: प्रस्तावित बिल द्वारा देश के अडानियों-अम्बानियों के लिए सबसे बड़ी ‘सुविधा’ ये दी जाने वाली थी कि एक लाइसेंस धारक बिजली आपूर्ति का अनुबंध जितने मर्ज़ी शहरों में कर सकता है और फिर वो इस काम का अनुबंध छोटी कंपनियों देने के लिए सक्षम होगा।

मतलब अडानी ने जैसे देशभर के हवाई अड्डों के ठेके ले लिए हैं,बिल्कुल उसी तरह, इस बिल के लागू होने के बाद वो सारे देश के जितनी मर्ज़ी शहरों में चाहे बिजली आपूर्ति के अनुबंध सरकार से कर सकता है और वो फिर उसी काम को अलग अलग दूसरी कंपनियों को आबंटित करने का भी अधिकारी होगा। बड़े कॉर्पोरेट मगरमच्छों के इतने अच्छे दिन अभी तक कभी नहीं आए।

8 .बिजली का निर्यात करने के लिए आवश्यक फेरबदल का प्रावधान किया जा रहा है।

क्रमश: 

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Abhinav Kumar

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