EXCLUSIVE ये है कोरोना की ‘कुंडली’, तानाशाह जैसी करता है हरकत, बता रहे हैं मशहूर वैज्ञानिक
By आशीष सक्सेना
कोरोना वायरस की नई नस्ल कोविड-19 अब देशभर में दूरदराज तक फैलने की ओर है। इसका विस्तार और संक्रमण की खबरों से दहशत है। दहशत उस चीज से वैसे भी ज्यादा होती है, जिसको देख न सकें या जिसके बारे में पता ही न हो।
अब मजदूर वर्ग का तो आसरा भारत सरकार भी नहीं बन रही तो अच्छा हो कि वे अपने लिए पैदा किए गए ओझल दुश्मन को पहचान लें और तोप बंदूक नहीं है तो डंडा-लाठी का तो इंतजाम कर लें।
वर्कर्स यूनिटी ने इस सिलसिले में बात की दुनिया के चुनिंदा 20 वैज्ञानिकों में शुमार भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान में महामारी विभाग के अध्यक्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. भोजराज सिंह से।
उनको वायरस-बैक्टीरिया की घनी जानकारी है, लेकिन इससे पहले संस्थान के निदेशक से परमीशन लेना पड़ी, तब बात हुई।
बात फोन पर ही की, क्योंकि मिलने-जुलने से ये वायरस इधर से उधर हो जाता है। उनसे जो बात हुई, उसको अपने तरीके से बता रहे हैं।
- दद के लिए सरकार ने जारी किया हेल्पलाइन नंबर, रोगियों की संख्या
- कोरोना वायरस संक्रमण के किस चरण में है भारत? इटली की चिट्ठी पढ़कर खुद तय करिए
कोविड 19 कितना ख़तरनाक़
पहले तो ये गलतफहमी दूर कर लें कि चीनियों ने चमगादड़ का सूप पी लिया इसलिए ये फैल गया।
चमगादड़ में मिलने वाला कोरोना वायरस और मौजूदा कोविड-19 अलग-अलग हैं। हां, कुत्ते में भी वायरस का मिलना ज्यादा खतरनाक संकेत है। अगर ये पशुजन्य हुआ और कुत्तों में भी फैला तो ज्यादा समस्या हो जाएगी।
बहरहाल, नया कोरोना वायरस बहुत तगड़ा नहीं है, इसकी वजह से लोग उतने नहीं मरते, जितने इससे पहले मिले इबोला वायरस से मरने का रिकॉर्ड है।
इबोला में मृत्यु दर 100 में 35 थी लेकिन कोरोना में यह दर अधिकतम 10 प्रतिशत है लेकिन, कोरोना दूसरे कई मामलों में बहुत खतरनाक है।
कैसे? वैज्ञानिक भाषा में कहें तो कुछ वायरस होते हैं डीएनए वाले और कुछ होते हैं आरआरएनए वायरस। ये कोशिका में घुसने के बाद उसकी मशीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं और केंद्र में पहुंचकर उसी से परेशानी पैदा करवाते हैं, खुद नहीं करते।
जैसे पूंजीपति लोग खुद तो कोई भाषण नहीं देते, लेकिन वे सरकार से वही काम करवाते हैं, जो वे चाहते हैं, क्योंकि उनका ही असल में कब्जा होता है।
जैसे किसी देश के प्रधानमंत्री से कोई भी नियम कानून अपने मुनाफे के लिए बनवा लिया जाता है।
- इस नाजुक मौके पर राष्ट्र प्रधानमंत्री से क्या सुनने की उम्मीद कर रहा था?
- एक मज़दूर की चिट्ठीः 13 हज़ार में 13 घंटे खटना पड़ता है, निकाल देने की धमकी अलग
कैसे करता है ये काम
लेकिन कोरोना पॉजिटिव सेंस आरएनए वायरस है, जो कोशिका में घुसने के बाद खुद ही अपने जैसी फोटोकॉपी बनाने लगता है, जैसे ‘रोबोट’ पिक्चर में चिक्की रोबोट विलेन बनकर खुद की तरह रोबोट तैयार करने लगता है।
ऐसे ही ये वायरस खुद ही हुकुम चलाता है और कोशिका की पूरी मशीनरी को ठेंगे पर रखता है। एकदम फासीवादी तानाशाह हिटलर टाइप, कि दूसरे के देश में घुसे और अपनी मनमर्जी करके खूनखराबा चालू कर दे।
पहले से इसके परिवार का कोई वायरस कोशिका में मौजूद होने पर ये नए जीन वाले मजबूत वायरस बन जाते हैं।
जब कोशिका में कोरोना की बेलगाम सरकार चलती है तो कोशिका में सूजन आती है और फिर कोशिका फट जाती है, रिसाव होने लगता है।
इस वजह से फेफड़े काम नहीं कर पाते और सांस लेने में बहुत परेशानी हो जाती है। सांस ही कोई न ले तो क्या होगा, ये सब जानते हैं।
फिर भी, ज्यादा चिंता की बात ये नहीं है। इसका इन्फेक्शन 14 प्रतिशत लोगों को ही पता चल पाता है। एक प्रतिशत ही बीमारी पकड़ते हैं और उनमें से छह प्रतिशत लोग मर सकते हैं।
- इनकम टैक्स के 180 ठेका कर्मचारियों की बड़ी जीत, हाईकोर्ट ने बहाल करने का दिया आदेश
- गुजरात के 10 दलित मज़दूरों ने पिया ज़हर, 62 दिनों से थे हड़ताल पर
कमज़ोरों पर तगड़ा हमला करता है
वो भी तब, अगर उनके अंदर पहले से कोई बीमारी है और शरीर कमजोर या बूढ़ा है। बीस-तीस प्रतिशत को तो बुखार भी नहीं आता और इसमें नाक नहीं बहती। गला सूखा सा लगता है, खराश महसूस होती है।
जिसकी उम्र कम है और शरीर से तंदरुस्त है, दिल, गुर्दा या ऐसी कोई बीमारी नहीं है, उसके लिए ज्यादा चिंता की बात नहीं होती।
लेकिन ये वायरस दूसरों में फैलता तेजी से है। किसी तंदरुस्त को संक्रमण हुआ तो उसे पता भी नहीं चलेगा या दस-पंद्रह दिन में पता चलेगा, लेकिन ये दूसरे में फैलने के लिए अपनी आबादी तीन दिन में ही तैयार कर लेता है।
किसी के छूने से ऐसे नहीं फैलता, लेकिन अंदर का वायरस छींकने, खांसने के छींटे के साथ हाथ में आया और फिर वो हाथ छूए तो दूसरे में पहुंच जाएगा।
इसी वजह से बार-बार हाथ धोने, हाथ नाक-मुंह पर न ले जाने और दूसरों से हाथ न मिलाने या मिलने की बात डॉक्टर-वैज्ञानिक कहते हैं। इस तरह से दूसरे वायरस और बैक्टीरिया भी पहुंचते हैं।
फिर दिक्कत कहां पर है? दिक्कत ये है कि अभी तक जिन देशों में ये वायरस फैला है, वहां पर 80 प्रतिशत तक लोग संक्रमित हुए हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि भारत में भी ऐसा हो सकता है।
- इस महा विपदा में मोदी ने पल्ला झाड़ लिया, ख़त्म हो जाएंगी 2.5 करोड़ नौकरियां
- भूख गद्दार है, लफ़्ज़ गद्दार हैं, सच किसी दूसरे मुल्क का कोई जासूस है
100 करोड़ को कर सकता है संक्रमित
मतलब 100 करोड़ लोग चपेट में आ सकते हैं। कुल 130 करोड़ का एक प्रतिशत गंभीर रूप से संक्रमित हुए तो एक करोड़ 30 लाख आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) की जरूरत होगी, जहां गंभीर रोगी रखे जाते हैं।
जबकि इस समय देश में छह-सवा छह लाख ही आईसीयू हैं। यानी सवा करोड़ गंभीर रोगियों के लिए भी इंतजाम नहीं है।
सरकार ने मजदूरों के कंधे पर हाथ रखा होता तो इतनी मुसीबत नहीं आती। बीमारी तो अमीरों के जरिए शुरू हुई, क्योंकि वे ही हवा में सफर करते हैं और यहां लेकर पहुंचे।
अब जनता कर्फ्यू या दूसरे-तीसरे तरीके से दहशत फैली है और मजदूरों का काम भी छिन रहा है तो वे क्या करें।
वे मजबूर है कि घर वालों, बीवी-बच्चों के साथ रहें और दम टूटे तो अपनी चौखट के अंदर हों। ट्रेन-बसों में भरकर गांव पहुंच रहे हैं।
इस सफर में एक ही संक्रमित व्यक्ति घर पहुंचने से पहले पूरी बोगी को संक्रमित कर सकता है और रास्ते में खानपान के लेनदेन में अन्य जगहों पर भी भेज सकता है।
निजी सुरक्षा उद्योग की संस्था कैप्सी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजी है 85 लाख सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी पर संकट आ गया है। ये भी वही हैं जो गांव से जाकर शहरों में पहरा देते हैं।
- सू लिज्ही की कविताएंः ‘मज़दूरी पर्दों में छुपी है, जैसे नौजवान मज़दूर अपने दिल में दफ्न रखते हैं मोहब्बत’
- सू लिज्ही की कविताएंः ‘मालूम पड़ता है, एक मुर्दा अपने ताबूत का ढक्कन हटा रहा है’
मज़दूर क्या करें
मजदूर उन गांवों में लौट रहे हैं, जहां न रोटी का बंदोबस्त कर पाते हैं और न बुखार की दवा मिल पाती है। झोलाछाप कहे जाने वाले चिकित्सक ही उनकी सेहत के रखवाले हैं।
इस पर वैज्ञानिक महोदय की सलाह ये है कि ऐसे लोग उसी तरह घर में दाखिल होने से पहले शरीर और सामान की सफाई करें, जैसे मुर्दा फूंककर आने वाले कभी किया करते थे।
नहा-धोकर, बैग का सामान भी जितना संभव हो धो-मांजकर घर में ले जाएं।
शरीर ठीक है तो कोई दवा से ज्यादा खानपान ठीक रखें और विटामिन सी ज्यादा लेने के लिए नीबू, आंवला, त्रिफला आदि का सेवन करें।
मुसीबत जरूर है, लेकिन सौ साल पहले 1918 में स्पेनिश फ्लू से लाखों लोग तब मर गए थे, जब देश की आबादी तीस करोड़ ही थी। तब दुनिया में दस करोड़ लोग मरे थे।
जब महात्मा गांधी भी नहीं बच पाए थे वायरस से
उस फ्लू से महात्मा गांधी भी नहीं बच पाए। इसके बावजूद देश में आजादी का आंदोलन तेज हुआ, दो साल बाद ही असहयोग आंदोलन भी हुआ, तमाम इतिहास रचा गया।
उस समय भी मजदूरों के ढेरों ऐतिहासिक आंदोलन हुए और तमाम हक हासिल हुए। अब भी डरने की जगह एकजुट होकर खड़े होने की जरूरत है।
उस समय भी जनता ने अपने नेटवर्क से खुद को बचाया और शासक अंग्रेज पहाड़ों में भाग गए थे।
अब के शासक भी खुद को महफूज कर रहे हैं और आमजन से टोटके के सहारे जिंदा रहने की नसीहत बेशर्मी से दे रहे हैं।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)