पंजाब खेतिहर मजदूरों ने घेरा CM मान का घर: मांगे पूरी नहीं होने पर ऐक्शन की दी चेतावनी
पुंजाब के खेतिहर मजदूरों ने शुक्रवार को बड़ी संख्या में इकट्ठा हो कर अपनी मांगों पर जोर डालने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान का संगरूर निवास घेरा।
क्रांतिकारी पेंडु मजदूर यूनियन (KPMU), जमीन प्राप्ति संघर्ष कमिटी (ZPSC), पंजाब खेत मजदूर यूनियन और पुंजाब मजदूर यूनियन (आजाद) के सांझा मजदूर मोर्चे ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार मांगे पूरी करने में नाकाम रहती है, तब मोर्चा आगे की कार्यवाही की घोषणा करेगा।
कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन खत्म होने के बाद किसान-मजदूर एकता का अंतर्विरोध फिर से उभर कर सामने आ रहा है।
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मजदूरों की मुख्य मांगें हैं कि धान बोआई की मजदूरी दर 6000 रुपए प्रति एकड़ तय की जाए और दलितों को मिलने वाली एक-तिहाई पंचायती जमीन की डमी नीलामी पर शिकंजा कसा जाए।
KPMU नेता परगट सिंह कालाझार और भगवंत सिंह सामाओ ने कोठी के सामने जमा हुए खेतिहर मजदूरों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जब महंगाई चरम पर थी, तब धान की बोआई और मजदूरी में वृद्धि समय की मांग थी।
उन्होंने कहा ऐसे समय में जब श्रम बढ़ रहा है और श्रम का सही मूल्य नहीं मिल रहा है, तब श्रमिकों का संगठित होना जरूरी हो गया है।
खेतिहर मजदूर अपनी गाय-बकरियां बेचने पर मजबूर
मजदूर नेताओं का कहना था कि सरकार ने किसानों को 500 रूपर प्रति क्विंटल मुआवजा देने की घोषणा की है, जो कि ये दर्शाता है कि पंजाब सरकार खुद इस बात को स्वीकार कर रही है की इस बार गेंहू और पुआल की पैदावार कम हुई है।
मजदूर नेताओं ने कहा कि इस प्राकृतिक आपदा ने मजदूरों पर भी प्रहार किया है जिसके कारण गांवों में मजदूरों को भूसा या गेहूं नहीं मिला है और वह अपने गाय-बकरियों को बेचने पर मजबूर हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार ने सीधे बोआई करने वालों को 1500 रुपये प्रति एकड़ देने की घोषणा की है। लेकिन सरकार ने खोए हुए रोजगार का दूसरा साधन या विकल्प के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार मजदूर विरोधी है।
गांव के बाहुबली मनमाने ढंग से मजदूरी दर तय करने के लिए प्रस्ताव पारित कर रहे हैं, जिसका उल्लंघन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा यह भारतीय संविधान के तहत एक अपराध है। इन दोषियों के खिलाफ पंजाब में SC/ST ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।
क्या हैं मजदूरों की और मांगें?
नेताओं ने मांग की है कि पंचायत की एक-तिहाई जमीन दलित मजदूरों को क्षमता के अनुसार कम दर पर दी जाए और बाकी दो भाग भूमिहीन-गरीब-छोटे किसानों को दिया जाए।
भूमि सीमांकन अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और सीमा से अधिक भूमि भूमिहीन मजदूरों-किसानों में बांटी जानी चाहिए।
भूमिहीन मजदूरों को नजूल की जमीन का मालिकाना हक दिया जाना चाहिए और मकान बनाने के लिए 10 मरले का प्लॉट और 5 लाख रुपये का आबंटन किया जाना चाहिए।
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उनकी मांग है कि सरकार द्वारा साल भर रोजगार दिया जाना चाहिए, महंगाई के हिसाब से मजदूरी बढ़ाई जानी चाहिए, भूमिहीन दलितों के सरकारी व गैर-सरकारी कर्ज माफ करने चाहिए और सहकारी समितियों में सदस्यों की बिना शर्त भर्ती और ब्याज और सब्सिडी के तहत कर्ज मिलना चाहिए।
वृद्धावस्था, विधवा, विकलांगता पेंशन कम से कम 5000 रुपए होनी चाहिए और वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा महिलाओं के लिए 55 साल और पुरुषों के लिए 58 वर्ष होनी चाहिए।
नेताओं ने दलितों पर अत्याचार बंद करने, श्रम कानूनों में संशोधन को निरस्त करने और इस मुद्दे को हल करने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के लिए दबाव बनाया।
नेताओं ने मांग की कि मुख्यमंत्री भगवंत मान बैठक बुलाकर इन मांगों पर चर्चा करें।
नेताओं ने आगे कहा कि पंचायत की एक तिहाई जमीन पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा और फिर जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा.
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