अब मनरेगा में भुगतान का हिसाब किताब जातिवार करने की सलाह, SC/ST के कल्याण खाते में जोड़ने की कोशिश
वित्त मंत्रालय ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के वेतन भुगतान को जाति श्रेणियों में विभाजित करने की सलाह दी है।
ग्रामीण विकास सचिव एन.एन. सिन्हा के मुताबिक इससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए बजटीय खर्च से होने वाले लाभों का आकलन करने और उन्हें उजागर करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि अगर इस प्रक्रिया को सही तरीके से अपनाया जाता है तो इससे मजदूरी भुगतान में किसी भी तरह की देरी नहीं आएगी और नाही लाभार्थियों के लिए कोई बदलाव होगा।
उन्होंने आगे बताया कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इसके पीछे मनरेगा को सिर्फ एससी और एसटी वाली आबादी पर लागू करने की कोई योजना है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस साल दो मार्च को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे मनरेगा के तहत किए जाने वाले मजदूरी के भुगतान को विभिन्न श्रेणियों-अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य वर्ग को अलग-अलग खांचे में दर्ज करें।
मजदूरों के वकील ने यह भय जताया कि इससे भुगतान में बेवजह की देरी होगी और विभिन्न दिक्कतें शुरू हो जाएंगी। साथ ही इससे योजना की स्कीम फंडिंग में कमी आ सकती है।
सिन्हा ने यह भी बताया, ”तर्क बहुत सरल था। ऐसा नहीं है कि एससी और एसटी को किए गए भुगतान की रिपोर्ट मनरेगा वेबसाइट पर नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर, बजटीय खर्च के संदर्भ में, लोगों के पास यह जटिल जानकारी नहीं है कि बजट से एससी और एसटी समुदाय को कितना लाभ मिल रहा है।”
उनके अनुसार, ”जब लोग कार्यक्रम के तहत बजट का आकलन करते हैं तब वे इन जटिक बारीकियों को छोड़ देते हैं। इसलिए वित्त मंत्रालय ने सलाह दी कि हमें एससी और एसटी के आधार पर भी बजट का प्रावधान करना चाहिए। ”
सचिव ने कहा, ”बदलाव को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है। फील्ड स्तर के लोगों के लिए उन्हें कई फंड ट्रांसफर ऑर्डर करने की आवश्यकता नहीं है। यहां एक फंड ट्रांसफर ऑर्डर होता है जिसे तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है। यह उस समुदाय पर निर्भर करता है जिससे परिवार संबंधित है। फिर पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जाता है। इसमें लाभार्थियों और फील्ड ऑफिसर्स के लिए किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं है।”
हालांकि इसे लेकर विरोध भी किया जा रहा है। माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भेजे एक पत्र में केंद्र की ओर से राज्यों को भेजे गए उस परामर्श के पीछे की मंशा को लेकर सवाल खड़े किए, जिसमें कहा गया है कि मनरेगा के तहत अनुसूचित जाति-जनजाति व अन्य के लिए मजदूरी के भुगतान को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाए।
(साभार-द हिंदू)
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