फुटपाथ दुकानदारों का दर्द का कब महसूस करेगी सरकार ?
अतिक्रमण हटाने के लिए दिल्ली नगर निगम की कार्यवाही की दिशा फुटपाथ दुकानदारों के खिलाफ है।
ये कहना है हॉकरों और रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों का जिनके मुताबिक फुटपाथ दुकानदारों की (आजीविका का संरक्षण और पथ विक्रय का विनियमन) अधिनियम 2014 कानून बनने के आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी वे अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।
स्वाभिमान रेहड़ी पटरी संस्था, दिल्ली प्रदेश के महासचिव अनिल बक्शी ने एक पत्र में कहा कि नागरिकों के पास रोजगार का अधिकार हो, देश में आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा हो, लेकिन आज आजादी के 74 वर्षों बाद भी फुटपाथ दुकानदारों के हित में कानून होने के बावजूद फुटपाथ दुकानदारों की स्थिति बहुत दयनीय है।
एक तरफ छोटे व्यवसायियों को पुलिस, नगर निगम, नगर पालिका परिषद , एवं संबंधित विभाग परेशान करती हैं दूसरी तरफ पुलिस परेशान करती है। उन्हें समाज एक अपराधी की नजर से देखता है एवं दिल्ली में मार्केट एसोसिएशन तो बड़े दुकानदार इनको देय दृष्टि से देखते हैं।
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दिल्ली नगर निगम अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई स्वागत योग्य कदम है किंतु इसको गलत तरीके से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि फुटपाथ दुकानदारों के हितों में बने कानून का भी पालन होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)6 के तहत इन दुकानदारों को व्यवस्थित करने का समय आ गया है और उसके जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिनकी वजह से इनके हितों में बने कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा।
उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती और गरीबों पर कार्रवाई की जाती है क्योंकि यह दूध देने वाली गाय है और रिश्वत सबको चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद 19(1)6 के अधीन भारत के प्रत्येक नागरिक के वृत्ती, व्यापार, व्यवसाय, एवं कारोबार करने का मूल अधिकार प्रदान किया जाता है, कोई भी व्यक्ति फुटपाथ पर अपनी आजीविका कमा सकता है।
उसे इस अधिकार से यह कहकर वंचित नहीं किया जा सकता की फुटपाथ केवल आवागमन के लिए काम में लिया जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 से 32 तक भारत के नागरिकों को उनके मौलिक अधिकार दिए गए हैं यह मौलिक अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकार हैं जो किसी भी नागरिक के विकास के लिए आवश्यक हैं।
उन्होंने कहा कि पथ विक्रेता (आजीविका का संरक्षण वह विक्रय विनियमन) अधिनियम 2014 जो कानून बहुत संघर्ष एवं अटल बिहारी वाजपेई के सपने का कानून जिन्होंने अपने भाषण में कहा था कि यह कोई चांद का टुकड़ा नहीं मांग रहे हैं यह अपना मौलिक अधिकार मांग रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार उनके सपने को साकार करने की जिम्मेदारी भविष्य की सरकार की है।
विडंबना है कि सरकार की नीतियों और कोरोना संकट की बड़ी मार इसी वर्ग पर पड़ी है। इस वर्ग के लिए लाई गई तमाम कल्याणकारी योजनाओं से देश के फुटपाथ दुकानदारों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है
स्वनीधि आत्मनिर्भर योजना जो इनके लिए शुरू की गई उससे भी इनको एक बड़ी राहत मिली थी।
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इनके लिए सर्वे का काम शुरू किया गया था जो पिछले दो वर्षों में 20 फीसदी भी नहीं हुआ। यह दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम की इच्छा शक्ति को दर्शाता है क्योंकि यह दूध देने वाली गाय हैं और कोई नहीं चाहता कि ये व्यवस्थित हों।
इस समय फुटपाथ दुकानदार में सबसे ज्यादा पीड़ा में गुजर रहे हैं। कोई भी व्यक्ति फुटपाथ पर रेहड़ी, ठेला, अपनी मर्जी से मर्जी से नहीं लगाता समय और परिस्थिति यो से मजबूर होकर रोटी का संघर्ष करते हुए नागरिक इस व्यवसाय में आता है।
किसी भी व्यक्ति को सड़क पर बरसात , भयंकर गर्मी , सर्दी, वैल्यू में एवं लू में सड़क पर बैठने का शौक नहीं है।
उन्होंने सवाल उठाया कि इनके हितों में बने कानून होने के बावजूद भी सरकारी अमला इन को अवैध घोषित करता है क्या कारण है ? फुटपाथ दुकानदारों की आवाज को एवं इनके दर्द को कब सुनेगी सरकार?
दिल्ली में लगभग पाँच लाख रेहड़ी, पटरी, खोमचा, फेरी, एवं साप्ताहिक बाजार फुटपाथ दुकानदार अपना व्यवसाय सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर चलाते हैं।
एक छोटी पूंजी के अंदर वह अपना व्यवसाय शुरू करके अपने परिवारों का पालन पोषण करते हुए जनता तक जीवन उपयोगी वस्तुओं को पहुंचाने का अति महत्वपूर्ण काम भी फुटपाथ दुकानदारों द्वारा किया जाता है। साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था में भी यह महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
इनकी सेवाओं की सरकार को अनदेखी नहीं करनी चाहिए जबकि इन को बढ़ावा देना चाहिए।
महिला के विरुद्ध यौन हिंसा के संदर्भ में बनी जस्टिस वर्मा कमिटी ने सलाह दी थी कि फुटपाथों को महिलाओं और समुदाय के लोगों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए सड़क विक्रेताओं को बढ़ावा देना चाहिए इसको समय-समय पर हमारे देश की सबसे ऊंची अदालत उच्चतम न्यायालय ने भी मानता दी है देश की बेरोजगारी की समस्या को भी हल करने में यह अहम भूमिका निभाते हैं।
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