पॉवर प्रोजेक्टों का खामियाज़ा भुगत रहा है उत्तराखंड
By मनमीत
चमोली में ऋषिगंगा नदी में आए प्रलय से सकड़ों मजदूर लापता हैं। 35 का शव मिल सका है। करीब 197 मजदूरों को टनल से निकलने की कोशिशें जारी हैं।
इस भयावह आपदा को कवर करने हम घटनास्थल को रवाना हुए।
तपोवन में लोग गहरे सदमे में दिखे। उन्होंने बताया की कहां-कहां पर बांध के कर्मचारी फंसे गए थे और वो उन्हें मरता हुये बस देखते रहे और वो कुछ नहीं कर सके। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि कोई कुछ सोच भी नहीं पाया।
तपोवन से लगभग दस किमी आगे रैणी गांव है। वहां पहुंचे तो सडक किनारे रोते बिलखते लोग दिखे। कोई अपने भाई के लिये वहां आया था तो कई पत्नी अपने पति के लिये। कई बुजुर्ग पिता अपने जवान बेटे की तलाश में एक ओर पथराई आंखों के साथ जेसीबी से हटते मलबे को उदासी से देख रहा था।
नंदप्रयाग के पास स्थित घाट गांव से एक युवक अपने छोटे भाई को तलाशने आया था। उसने बताया कि उसके छोटे भाई ने कल सुबह ही फोन किया था कि मैं आठ फरवरी को घर आउंगा। उसकी पांच साल की बेटी मिष्ठी इस इंतजार में है कि पापा उसके लिये कुछ न कुछ लायेंगे। अब मैं घर जाकर क्या बोलूं। ये बोल कर वो फूट फूट कर रोने लगा।
रैणी गांव का ही मनजीत अपने घर में इकलौता कमाने वाला था। वो भी बांध में ही काम करता था। उसके पिता विकलांग है और भाई मानसिक विकलांग। सबकी जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी। अब वो ही नहीं रहा। उसकी मां उसे तलाशने आई हुई थी। बस इतना ही बोली की अभी वो बीस साल का था। दुनिया भी नहीं देखी थी उसने।
एक तरफ रैणी गांव की बुजुर्ग महिलायें वहां पहुंचे नेताओं पर गुस्सा थी। हम उनके पास पहुंचे तो बोली कि यहां जो आफत आई है, वो डायनामाइड विस्फोट से हुआ है। हम अपने घर के काम के लिये एक लकडी भी जंगल से उठा लें तो चालान काट देते हैं और बांध के कारण पूरा इलाका तहस नहस कर दिया है।
सडक के किनारे पुस्ते पर कमर के सहारा लिए, अपनी लाठी पकड़े बैठे 86 साल के बुजुर्ग भगवान सिंह राणा बताते हैं कि हमारे घर में जब बच्चा पैदा होता है तो हम उसे पालते पोसते हैं। उसे सयाना करते हैं और फिर वो सामाज के लिये कुछ करने लायक होता है। इसी तरह ग्लेशियर से निकली जल धारा एक बच्चे की तरह होती है। उसे थोड़ा तो खुले आसमान में सांस लेने दो। वो ग्लेशियर की प्रसव पीड़ा से निकली नहीं की उसे सीधे टनलों में डाल दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने भी जब माना है कि नदियों में जीवन होता हैं तो फिर से बाल हत्या क्यों की जाती है। उस शिशु की जो मां है न ग्लेशियर। वो कब तक ये सहन करती। उसने ही ये रोद्र रूप दिखाया है। लेकिन जिसके कारण ये सब हुआ है। वो तो एयर कंडीशन ऑफिस में बैठा है। भुगत तो हम लोग रहे हैं। जो इस प्रकति को पूजते है। बुजुर्ग रोने लगे और बस इतना ही बोले कि, एक माँ के प्रसव पीड़ा को ये ठेकेदार क्या समझेंगे बेटे।
उधर, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान परी मुस्तैदी से मलबा हटाने का काम कर रहे है। बडी समस्या एक और भी थी। वो ये थी कि रैणी गांव में जो पुल बहा था, उसके चलते नीति घाटी के तीस गांवा जिसमें मुख्य रूप से लाता, सुराई टोटा, सुखी, भला, टोलमा, थाती, लांग, झेलम, झुम्मा, द्रोणागिरी, मलारी आदि गांव का संपर्क पूरी तरह से देश से कट गया था।
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