अब रेल मंत्रालय के 15 स्टेडियमों को बेचने की कार्यवाही शुरू, ‘ख़रीद फ़रोख़्त’ में ‘पंच प्यारों’ के बाजी मारने के संकेत
By रमा शंकर सिंह
ये लीजिये जिस बात को मैं पिछले कुछ दिनों से कह रहा था उसका प्रमाण हाज़िर है। भारत सरकार का रेलमंत्रालय अपने 15 खेल स्टेडियमों को व्यावसायिक इस्तेमाल यानी बेचने की ओर बढ़ चुका है।
होना चाहिये था कि इन स्टेडियमों को और अधिक सुसज्जित कर बेहतर खेल सुविधाओं के साथ अगले ओलंपिक की तैयारी हेतु संकल्पित किया जाता पर अब सरकार का ध्यान खेलों पर तभी जायेगा जबकि निजी प्रयासों से अगली ओलंपिक टीम रवाना होगी और प्रधानमंत्री का उनको संबोधन प्रसारित होगा ।
यदि एक भी ज़्यादा पदक अर्थात 8 मैडल भी तीन साल बाद मिल गये तो वाहवाही लूटनें में क्यों कसर रखी जायेगी ?
चुनाव जीतने में ओलंपिक खिलाड़ी थोड़े ही काम आते हैं , पैसा काम आता है जिसके लिये स्टेडियम बिक्री हो रहे हैं और आपको कभी पता भी न चलेगा कि किस ख़रीदने वाले ने कितने करोड़ रुपये के चुनावी बांड किसे दे दिये ?
इस ख़रीद फ़रोख़्त पर नज़र रखिये और देखिये कि कैसे घूम फिर कर वे ही पंच प्यारे इन्हें ख़रीदते है !
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