लॉकडाउन में भारतीय बाज़ार को पूरी तरह अमरीकी कंपनियों के हवाले करने की योजना, व्यापारियों में आक्रोश
By मुनीष कुमार
20 अप्रैल के बाद से अमेरिकी कम्पनी अमेजाॅन, फ्लिपकार्ट समेत सभी ई-कामर्स कम्पनियां मोबाइल फ़ोन, टीवी, लैपटाप व स्टेशनरी जैसे उत्पाद बेचेंगे और इस लाॅक डाउन के दौरान देश के खुदरा व्यवसायी अपने घरों में बैठकर मख्खी उड़ाएंगे।
भारत सरकार के गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा 16 अप्रैल को जारी संशोधित गाईडलाईन के मुताबिक, 20 अप्रैल से मोबाइल फोन, टीवी, लैपटाप व स्टैशनरी जैसे उत्पाद भी ई-कामर्स कम्पनियों के मंच पर बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे।
ई-कामर्स कम्पनियां अपने उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए अपनी डिलीवरी वाहन भी सड़कों पर चला सकेंगी। पर इसके लिए उन्हें अनुमति लेनी होगी।
इससे पूर्व भारत सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना में सरकार ने ई-कामर्स कम्पनियों को खाने का सामान, दवाईयां और चिकित्सा उपकरण जैसी ज़रूरी वस्तुओं को ही ई-कामर्स प्लेटफार्म पर बेचने की अनुमति दी थी।
गृह मंत्रालय की 16 अप्रैल की इस संशोधित अधिसूचना के बाद से देश के खुदरा व्यापारियों में आक्रोश पैदा हो गया है।
‘‘फ़ेडरेशन आफ़ आल इंडिया व्यापार मंडल’’ ने देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर इसका विरोध किया है तथा ग्रीन जोन में व्यापार करने की अनुमति दिये जाने की मांग की है।
फ़ेडरेशन ने अपने पत्र में कहा है कि यह बड़ा खेद का विषय है कि सरकार द्वारा अपने घरेलू खुदरा व्यापारियों के हितों को अनदेखा कर विदेशी स्वामित्व वाली ई-कामर्स कम्पनियों को ऑनलाइन के माध्यम से बिक्री करने की अनुमति प्रदान कर दी गई है।
व्यापारियों के संगठन का कहना है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती के चलते और फिर कोरोना के उपरान्त लाॅक डाउन व व्यापार बंद में वेतन, बिजली व अन्य खर्च वहन करने के कारण वे पहले से ही संकटग्रस्त थे और सरकार के इस कदम से उनकी हालत और अधिक खराब हो जाएगी।
सरकार का यह कदम अमेरिकी कम्पनी अमेजाॅन, फ्लिपकार्ट के लिए मुंह मांगी मुराद जैसा ही है। देश में सालाना 1 हजार अरब डालर (76 लाख करोड़ रु.) से भी अधिक का खुदरा बाजार है।
अमेजाॅन व फ्लिपकार्ट की नजर इस बाजार पर अपना अधिपत्य स्थापित करने की है। इन दोनो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मिलाकर वार्षिक व्यापार 800 अरब डालर का है। फ्लिपकार्ट पर वाॅल मार्ट का स्वामित्व है।
वाॅल मार्ट के 27 मुल्कों में 11 हजार से भी अधिक स्टोर हैं, जोकि 56 अलग-अलग नामों से चलते हैं।
वाॅलमार्ट का 2019-20 में वार्षिक टर्न ओवर 523 अरब डालर (40 लाख करोड़ रु.) का था, जो कि भारत के वर्तमान बजट 30 लाख करोड़ से भी बहुत ज्यादा है। वाॅलमाॅर्ट के भारत में होल-सेल स्टोर भी है।
वाॅलमार्ट व अमेजाॅन को भारत में अभी खुदरा व्यापार की अनुमति नहीं है। इसी कारण वह आनलाइन व्यापार के माध्यम से अपना आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश कर रही है।
कोरोना महामारी को ये अमेरिकी भीमकाय कम्पनियां एक अनुकूल अवसर के रुप में देख रही हैं। और उन्हीं के दबाब में आकर मोदी सरकार ने संशोधित गाइडलाईन जारी करके उन्हें लाॅकडाउन के बीच ऑनलाईन माल बेचने व अपने वाहनों से डिलीवरी देने की अनुमति प्रदान की है।
ताकि वह इस लाॅक डाउन के कारण मिले खाली मैदान में वे अपने नुकीले डैने भारत के खुदरा बाजार में और अंदर तक गढ़ा सकें।
14 अप्रैल को देश के खुदरा व्यवसायी उम्मीद कर रहे थे कि प्रधानमंत्री मादी जी अपने संबोधन में लाॅक डाउन की मार झेल रहे खुदरा व्यवसायियों के लिए किसी वित्तीय पैकेज की घोषणा करेंगे।
परन्तु मोदीजी ने राहत पैकेज देने की जगह दो दिन बाद ही मरते हुए को और मारने का काम किया है।
कोरोना से बचने के नाम पर जनता से कहा जा रहा है कि वह लाॅक डाउन का सख्ती से पालन करे और जनता कर भी रही है।
खुदरा व्यापारी सामान बेचेगा तो कोरोना फैलेगा और यदि अमेजाॅन फ्लिपकार्ट की गाड़ी देश भर में घर-घर जाकर सामान डिलीवर करेगी तो क्या उससे कोरोना नहीं फैलेगा।
यह हास्यास्पद तर्क किसी के गले उतरने वाला नहीं है। यदि ये कम्पनियां कोरोना प्रूफ होती तो अमेरिका में कोई भी व्यक्ति कोरोना से नहीे मरता।
कोरोना महामारी के समय सरकार के हाथ में असीमित ताकत आ गयी है।
देश की जनता के सभी जनवादी अधिकार लगभग समाप्त प्रायः है। इसी का फायदा उठाकर सरकार जनविरोधी व देश को बरबाद करने वाले फैसले लागू कर रही है।
मोदी सरकार ने पहले चरण के लाॅक डाउन में देश में खासतौर पर मजदूरों को तबाह व बरबाद किया। अब 14 अप्रैल के बाद के दूसरे चरण के लाॅक डाउन में उसने खुदरा व्यवसायियों पर हमला बोला है।
जब मजदूरों पर हमला बोला जा रहा था तो देश के दूसरे वर्गों व तबकों के लोगों का सरकार के दमन को कहीं मौन तो कहीं खुला सर्मथन था। अब खुदरा व्यापारियों पर हमला बोला जा रहा है। परन्तु लोग अब भी चुप हैं। यह चुप्पी देश के लिए बेहद ख़तरनाकड है।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उत्तराखंड में समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं।)
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