गुजरात सरकार ने छोटे कारखानों में ख़त्म किए श्रम क़ानून, 12 घंटे ड्यूटी अनिवार्य, कोर्ट में मिली चुनौती

गुजरात सरकार ने छोटे कारखानों में ख़त्म किए श्रम क़ानून, 12 घंटे ड्यूटी अनिवार्य, कोर्ट में मिली चुनौती

गुजरात सरकार द्वारा छोटे उद्योगों के लिए फ़ैक्ट्री ऐक्ट में बदलाव के अध्यादेश को गुजरात हाईकोर्ट में गुजरात मज़दूर सभा की ओर से दी गई चुनौती के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।

तीन जुलाई को गुजरात सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था और मज़दूर सभा ने सरकार की हड़बड़ी पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि उसे अगले विधानसभा सत्र तक इंतज़ार करना चाहिए था।

इस अध्यादेश की वैधता को कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया है कि इससे फ़ैक्ट्री ऐक्ट की धारा 2 (एम) और 85 को बदल दिया गया है। इन धाराओं में प्रावधान है कि बिजली से चलने वाले कारखाने में 10 से अधिक वर्कर हैं या बिना बिजली से चलने वाले कारखाने में 20 से अधिक वर्कर हैं तो उनकी जांच फ़ैक्ट्री इंस्पेक्टर से करना अनिवार्य होगा।

साथ ही ये कारखाने फ़ैक्ट्री ऐक्ट के दायरे में आएंगे और उनपर फ़ैक्ट्री एक्ट के सारे नियम लागू होंगे, जैसे वर्करों के हित, काम के हालात, प्लांट और मशीनरी की मरम्मत आदि।

लेकिन नए अध्यादेश के बाद अब बिजली वाले कारखाने में अगर 20 से कम वर्कर हैं तो उन्हें फ़ैक्ट्री ऐक्ट से छूट मिलेगी। इसी तरह बिना बिजली वाले कारखाने में अगर 40 से कम वर्कर हैं तो उन्हें किसी भी श्रम क़ानून से छूट रहेगी।

इसे चुनौती देने वाले ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट और वरिष्ठ अधिवक्ता अमरीश पटेल ने श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने का आरोप लगाया है।

इससे पहले मज़दूर सभा की ओर से वो राज्य में काम के घंटे की समय सीमा को आठ घंटे से 12 घंटे बढ़ाए जाने को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है।

गुजरात मजदूर सभा और ट्रेड यूनियन सेन्टर ऑफ इंडिया (टीयूसीआई) द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इस फैसले से गुजरात में मजदूरों को 12-12 घंटे काम करना अनिवार्य हो जाएगा।

अपनी याचिका में मज़दूर सभा ने काम के घंटे फिर से 8 तक सीमित करने की अपील की है।

फ़ैक्ट्री अधिनियम अंग्रेज़ों के ज़माने में 1922 में बना था, जिसमें 1934 और 1948 में संशोधन किया गया और उसके बाद भी मामूली बदलावों के साथ इसे ज्यों का त्यों रखा गया।

गुजरात महासभा का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट महेश भट्ट ने 1 जुलाई, 2020 को राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश को “पूर्णतया असंवैधानिक, मनमाना व भेदभावपूर्ण बताते हुए खारिज करने की अपील की है, क्योंकि यह भारत के संविधान को समाप्त कर रहा है।”

याचिका में कहा गया, “अध्यादेश कारखाने के श्रमिकों के बुनियादी मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किए गए औद्योगिक श्रमिकों के स्वास्थ्य और स्वच्छता और सुरक्षा उपायों के संबंध में बुनियादी मानदंडों के खिलाफ है।”

इसमें ये भी कहा गया है कि “यह भारत के संविधान द्वारा मूल मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”

गुजरात हाईकोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 3 सितम्बर को होनी है।

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Workers Unity Team