कैसे THDC की 13.4 KM लम्बी सुरंग का मलबा डंप करने के लिए चमोली प्रशासन ने सरपंच से मिलकर रची हेलंग में खेल मैदान बनाने की रची साजिश?
By मुनीष कुमार
गंगा नदी असंख्य धाराओं और नदियों से मिलकर बनी है। इसी मां गंगा व उसकी सहायक नदियों पर आज एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों जल विद्युत परियोजनाएं बनाकर, उसके साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
हिम गिलेशियरों से उद्गमित नदियों पर लग रहीं इन जल विद्युत परियोजनाओं को देखकर ऐसा लगता हैं कि इन परियोजनाओं को लगाने वाली कम्पनियां व सरकारें इस देश की हैं ही नहीं, बल्कि ये किसी दूसरे लुटेरे मुल्क की सरकारें हैं जिन्हें इस देश के जल-जंगल-जमीन व पर्यावरण से कोई लगाव नहीं है,वे बस इनका दोहन करना चाहती हैं और इन्हें लूट लेना चाहती हैं।
2013 की केदार आपदा से भी देश की इन सरकारों ने कोई सबक नहीं लिया। 2013 की आपदा को विकराल बनाने में जलविद्युत कम्पनियों द्वारा खोदी गयी सुरंगों एवं उसमें से निकले मलवे को नदियों के किनारे डम्प किए जाने ने बड़ी भूमिका अदा की थी।
चमौली जिले में हेलंग गांव के नजदीक गंगा की सहायक नदी अलकनंदा पर बनने वाले पावर प्रोजक्ट में लम्बी-लम्बी सुरंगे खोदकर कर पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाई जा रही है। इन सुरंगों को खोदने से निकले मलवे को हेलंग गांव में अलकनंदा नदी के किनारे डम्प किया जा रहा है।
उच्च हिमालयी क्षेत्र के गिलेशियर से निकलने वाली अलकनंदा में जिस दिन तेज बहाव से पानी आएगा, उस दिन वह अपने साथ न केवल इस मलवे को बहाकर ले जाएगा बल्कि जलविद्युत कम्पनियों द्वारा निर्मित सुरंगों से हो रही पानी की निकासी भी बंद कर देगा, जो कि स्थानीय लोगों के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी भयानक-तबाही बरबादी को जन्म देने वाली होगी।
विष्णुगाड़-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना के नाम से बनने वाली 444 मेगावाट की ये जल-विद्युत परियोजना भारत व उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त उपक्रम टिहरी हाइड्रो पावर डेवलपमेंट कोरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (टी.एच.डी.सी) का संयुक्त उपक्रम है।
ग्ंागा की सहायक नदी अलकनंदा नदी पर निर्माणाधीन इस जलविद्युत परियोजना की कुल अनुमानित लागत 4397.80 करोड़ रुपये बतायी जा रही है। 141 हैक्टेअर भूमि पर बन रहे इस इस पावर प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए सरकार ने विश्व बैंक से 29 वर्षाें के लिए 448 मिलियन डालर (लगभग 3600 करोड़ रु) का कर्ज लिया हुया है।
इस परियोजना के एक बड़े हिस्से को बनाने का ठेका मुम्बई की निजी कम्पनी हिंदुस्तान कंस्ट्रक्सन कम्पनी (भ्ब्ब्) को 1597 करोड़ रुपये में दिया गया है। बीएचईएल को भी लगभग 440 करोड़ रुपयों का ठेका इसमें मिला हुया है।
इस परियोजना से एक दर्जन से भी अधिक गांव प्रभावित हो रहे हैं। इस परियोजना के लिए हाट गांव को पूरी तरह से विस्थापित किया जा रहा है। हाट गांव के निवासियों का इसी स्थान पर लक्ष्मी नारायण का एक प्राचीन मंदिर भी है।
जिसके बारे में मान्यता है कि इस मंदिर को 8 वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने बनवाया था। हाट गांव के निवासियों के विरोध को सरकार ने सख्ती के साथ कुचल दिया और जेसीबी लगाकर उनके घर ढहा दिये।
स्थानीय ग्रामीणों ने टी.एच.डी.सी पर अनियमितताओं के गम्भीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि कौशल्याकोट के पास कम्पनी ने जो स्टोन क्रेशर लगाया है वह अनुमति से अधिक क्षमता वाला है।
विस्थापित लोगों को मुआवजा भी कम्पनी ने काफी कम दिया है तथा स्थानीय लोगों को वायदे के अनुसार नौकरियां भी नहीं दी गयी हैं। 15 जुलाई की घटना का वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन व टी.एच.डी.सी द्वारा उन्हें मामले को दबाने के लिए धमकाया जा रहा है।
ग्रामीणों पर 24 जुलाई के हेलंग प्रदर्शन शामिल नहीं होने के लिए भी दबाव बनाया गया है। उच्च हिमालयी क्षेत्र के इस पावर प्रोजेक्ट का अधिकांश हिस्सा भूमिगत निर्माण की श्रेणी में आता है।
जिसमें पहाड़ों को खोदकर 4 सुरंगें बनायी जा रही हैं। जिसमें 13.4 किलोमीटर लम्बी व 8.8 मीटर वृताकार व्यास वाली सबसे लम्बी सुरंग (हेड रेस टनल)है जो कि हेलंग गांव के पास से डाम क्षेत्र से बनायी जा रही है। जिसके द्वारा अलकनंदा का पानी हाट गांव के पास बन रहे पावर हाउस तक पहुंचाया जाएगा।
हेलंग गांव के पास ही 65 मीटर ऊंचे डाम का निर्माण कर एक जलाशय भी बनाया जा रहा जा रहा है। हेलंग गांव के लोगों को श्ंाका है कि जलाशय बनने के बाद उनका गांव भी डूब क्षेत्र में आ सकता है।
65 मीटर ऊंचाई वाले डाम का निर्माण करने हेतु अलकनंदा की धारा के साथ छेड़छाड़ की गयी है। अलकनंदा नदी के जल प्रवाह को मोड़ने के लिए 10.5 मीटर वृताकार व्यास की एक 500 मीटर लम्बी सुरंग का निर्माण किया गया है।
इन सुरंगों को खोदने के लिए किए जा रहे विस्फोट से उच्च हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ कांप रहे हैं। भूमिगत पावर हाउस व 3 ट्रांसफारमर हाल आदि के लिए किए जा रहे भूमिगत निर्माण व सुरंगों को खोदे जाने के कारण भारी मात्रा में मलवा (डनबापदह) निकल रहा है।
उच्च हिमालयी क्षेत्र में निकल रहे इस मलवे को डम्प करने के लिए एच.टी.डी.सी ने अपनी कार्य योजना में 5 स्थानों चिन्हित किया है जो कि बड़ी मात्रा में निकल रहे मलवे को डम्प करने के लिए नाकाफी हैं।
हेलंग गांव के समीप बन रहे 65 मीटर ऊंचाई वाले डाम क्षेत्र से खोदी जा रही 13.4 किमी लम्बी सुरंग से निकल रहे मलवे को समीप के कौशल्याकोट गांव के नजदीक के एक स्थान पर डाला जा रहा है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि ये स्थान मलवे से पूरी तरह से भर चुका है।
अब इस मलवे को डालने के लिए अगल-बगल में ही कोई स्थान चाहिए। यदि इस मलवे को कहीं दूर डाला जाएगा तो उससे कम्पनी का खर्च बढ़ जाएगा इसलिए एच.टी.डी.सी के अधिकारियों ने चमौली जिले के प्रशासन व हेलंग गांव के सरपंच के साथ मिलकर रातों-रात हेलंग गांव के गौचर में खेल का मैदान बनाने की कहानी रच डाली।
जोशीमठ के उपजिलाधिकारी ने भी 23 मई 2022 को त्वरित कार्यवाही करते हुए अनापत्ति पत्र भी जारी कर दिया तथा गांव में रायशुमारी कराए बगैर ही लिख दिया कि इस पर ग्रामीणों की सहमति भी है।
उत्तराखंड सरकार के वेब पोर्टल भूलेख डाट गाॅव डाट यूके पर लाॅग इन करने पर उपजिलाधिकारी के पत्र में जिस भूमि का खसरा संख्या 445 का उल्लेख किया गया है, वह कही भी मौजूद नहीं मिली। ये भूमि किसकी है ये अभी भी रहस्य ही बना हुया है।
7 जून, 2022 को को अचानक कुछ लोगों ने हेलंग गांव के हरे-भरे इस गौचर में पेड़ काटने का काम शुरु कर दिया गया। इसकी भनक लगने पर हेलंग गांव के कुछ लोग मौके पर पहंुच गये तथा पेड़ों को काटने का विरोध किया। एक बहादुर किशोरी दीपशिखा ने पेड़ काटने की वीडियो बनाकर उसे वायरल कर दिया।
अपने गौचर व पर्यावरण को बर्बादी से बचाने के लिए 57 वर्षीय विधवा मंदोदरी देवी ने हर स्तर पर पेड़ों को काटकर ग्रामीणों के गौचर पर मलवा डम्प किए जाने पर आपत्ति व्यक्त की। इसी कारण विधवा मंदोदरी देवी प्रशासन व एच.टी.डी.सी के अधिकारियों की आंख की किरकिरी बनने लगीं।
हेलंग गांव का गौचर एक ढालदार पहाड़ है, जिस जगह को देखकर चैथी क्लास का बच्चा भी बता सकता है कि इतने ढालदार खेत पर खेल मैदान बनाया जा पाना सम्भव नहीं है। तेज बारिश आने पर इस पर डाला गया मलवा अलकनंदा नदी में बह जाएगा।
15 जुलाई को नित्य प्रतिदिन की तरह ही मंदोदरी देवी व उसके परिवार के लोग घास लने अपने परम्परागत गौचर पर गये हुए थे। जब वे लोग घास के गट्ठर लेकर लौट रहे थे तो उत्तराखंड की ‘मित्र पुलिस’ व सीआईएसएफ के कर्मचारियों ने अपने अधिकारियों के हुक्म का पालन करते हुए, उन्हें रोक लिया। उनके साथ न केवल बदसलूकी की बलिक उनकी घास भी छीन ली।
इतना ही नहीं 3 महिलाओं समेत 4 लोगों व एक बच्चे को नजदीकी थाने में गैरकानूनी हिरासत में रखकर उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया। लगभग 6 घंटे बाद उनके परिजनों से 250 रु प्रति व्यक्ति की दर से कुल 1000 रुपये जुर्माना वसूलने के बाद उन्हें छोड़ा गया।
मंदोदरी देवी समेत उनके परिवार के 4 सदस्यों व एक छोटे दूध मुंहे बच्चे के साथ हुयी इस घटना का वाडियोे जैसे ही लोगों तक पहुंचा, इससे उत्तराखंड व देश के कौने-कौने से लोगों ने मंदोदरी देवी के उत्पीड़न के खिलाफ मुखर होकर इस घटना की भत्र्सना शुरु कर दी।
इस घटना के विरोध में 24 जुलाई को उत्तराखंड के जनवादी वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं व स्थानीय ग्रामीणों ने हेलंग गांव के गौचर से एच.टी.डी.सी के परियोजना स्थल तक जुलूस निकालकर पहुंचे तथा एच.टी.डी.सी के गेट के आगे बैठकर धरना दिया।
इस सभा में हेलंग एकजुटता मंच के तहत आंदोलन को आगे बढ़ाने की घोषणा की गयी तथा 5 सूत्रीय मांगों को लेकर 1 अगस्त को जिला मुख्यालयों एवं तहसीलों पर धरना व ज्ञापन देने का आह्वान किया गया।
(लेखक समाजवादी लोक मंच के संयोजक हैं। पहली फोटोः हेलंग गांव का गौचर, हाट गांव के घरों को जेसीबी द्वारा तोड़ा जा रहा है।)
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