जुर्माना न देने पर अड़े हिमांशु कुमार, कहा- सुप्रीम कोर्ट में जज सत्ता से डर कर दे रहे हैं ऐसे फैसले

जुर्माना न देने पर अड़े हिमांशु कुमार, कहा- सुप्रीम कोर्ट में जज सत्ता से डर कर दे रहे हैं ऐसे फैसले

“हम जुर्माना नहीं देंगे, हम हंसते हंसते जेल जाएंगे। हम जेल भरेंगे और इनको बता देंगे कि भारत के लोग डरने वाले नहीं हैं। हम इस फासीवादी तानाशाह को गिरा कर मानेंगे।”

यह लफ्ज हैं मशहूर गांधीवादी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के, जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों के लिए इंसाफ मांगने पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।

सिलगेर आंदोलन पर रिपोर्ट के विमोचन और प्रेस कॉनफेरेंस के दौरान उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट कुछ डरे हुए जजों की मिल्कियत नहीं, बल्कि पूरे देश की मिल्कियत है।”

“यह हमारा कोर्ट है और इसलिए इस कोर्ट और लोकतंत्र को हम सब मिलकर बचाएंगे। किसी भी अन्यायपूर्ण फैसले को मानने का सवाल ही पैदा नहीं होता।”

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उन्होंने सवाल किया, “सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर कह रहा है कि हमारा केस झूठा है। जांच कारवाई है क्या? बिना जांच के क्या जज को रात में सपना आ गया कि केस झूठा है।”

सिलगेर के साथ साथ पूरे बस्तर के हालात पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाकों का भयंकर मिलिटराइजेशन वहां के प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए किया गया है।

उन्होंने कहा, “चूंकि मध्य भारत और खासकर बस्तर खनिज से परिपूर्ण है, इसलिए कॉर्पोरेटों की नजर उस पर लगातार गड़ी हुई है। देश में अगर सबसे ज्यादा पैरामिलिटरी कहीं है, तो वह आदिवासी इलाकों में है। वहां सैन्य बल आदिवासियों की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि खनिज पर कब्जा करने के लिए हैं।”

“इन काबिज संसाधनों को गरीबों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, बल्कि पूंजीपतियों की तिजोरियाँ भरने के लिए किया जाएगा।”

सरकार ने साल 2005 में लोगों के संवैधानिक अधिकारों को कुचलते हुए छतीसगढ़ में PESA कानून को दरकिनार कर दिया था।

PESA यानी कि Panchayat (Extension of the Scheduled Areas) Act, 1996 के तहत सरकार बिना ग्रामसभा की सहमति के आदिवासियों की एक इंच जमीन भी नहीं ले सकता है और ना ही कोई प्रोजेक्ट शुरू कर सकता है।

उन्होंने बताया कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई National Legal Services Authority of India (NALSA) के मेंबर थे।

इसके तहत वह जिला कलेक्टर के साथ आदिवासियों के गांवों में बैठक करते थे, जहां डीएम उन्हें कहते थे कि अपनी गरीबी को न्याय प्राप्ति में बाधा मत बनने देना। उनसे कहा जाता था कि अगर आदिवासियों के साथ नाइंसाफी हो, तो उन्हें कोर्ट लाया जाए जहां उन्हें मुफ़्त में वकील मुहैया कराया जाएगा।

उन्होंने बताया कि सलवा जुड़ुम के दौरान जलाए गए गांवों में से 40 गांव को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बसाने को कहा था। जब सरकार ने उन्हें नहीं बसाया तो इन्होंने मिलकर उन 40 गांवों को बसाया।

साल 2009 में सुकमा जिले के लेन्ड्रा गांव में हथियार से लैस सैन्य बलों को गांव जलाने से रोकने के लिए मानव शृंखला या ह्यूमन शील्ड बनाई थी। उस गांव को पहले चार बार जलाया जा चुका था लेकिन इसके बावजूद उसे फिर से बसाया गया।

उन्होंने कहा कि लेन्ड्रा के ही पास गोम्पाड़ में CRPF की कोबरा बटालियन ने 16 लोगों को गोलियों और तलवार से निर्मम हत्या कर दी थी।

उस वाकये में चोटिल सोड़ी शम्भो और बाकियों को इंसाफ दिलाने उन्हें दिल्ली लाया गया जहां उनके लिए पेटीशन फाइल की गई।

उन्होंने आरोप लगाया कि वाकये के समय दंतेवाड़ा के SP कमलेश मिश्रा, जो कि फिलहाल NIA में DIG हैं, ने यह कत्लेआम करवाया था। जांच में बचने की लिए मृत आदिवासियों की कब्र खुदवा कर उनके हाथ काट लिए गए ताकि फोरेंसिक जांच में यह पता ना लग पाए कि मृतकों ने गोली चलाई ही नहीं।

उन्होंने कहा कि उनकी हत्या की भी साजिश की गई थी, जिससे बचने के लिए वह उसी रात दंतेवाड़ा से निकल पड़े। सुप्रीम कोर्ट में शिकायत करने पर कोर्ट ने दंतेवाड़ा पुलिस को फटकार लगाई और उस गांव से दूर रहने का आदेश दिया।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस में सोड़ी शम्भो के साथ याचिककर्ताओं में से 6 आदिवासियों को किड्नैप कर लिया, जिसका विडिओ सबूत भी मौजूद है। पुलिस ने उन्हें दिल्ली ला कर कहलवा दिया कि बिना पहचान वाले वर्दीधारी लोगों ने हत्या की थी।

लेकिन इस बयान में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि हिमांशु कुमार ने झूठ कहा, या हत्याएं झूठी थीं या उन्हें बहका कर लाया गया था।

इस पर वे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फर्ज था कि यह जांच कारवाई जाए कि आखिर हत्यारे कौन हैं।

लेकिन इसके उलट सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले का मतलब यह समझ आता है कि न्यायपालिका कहना चाहती है जांच की कोई जरूरत नहीं है, आप निश्चित रूप से झूठ बोल रहे हैं।

इसलिए उनपर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया गया है। वह कहते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ के साथ भी बिल्कुल यही हुआ।

“सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि अब इंसाफ मांगना जुर्म है। अगर आप कोर्ट आएंगे तो हम आपको जेल में डाल देंगे। तो क्या सुप्रीम कोर्ट जुडीशीयल प्रोसेस को खत्म कर आत्महत्या करना चाहता है?”

उन्होंने कहा कि सिंगारम में 19 आदिवासियों की हत्या के केस में NHRC की रिपोर्ट कहती है कि झूठे उन्हें नक्सली बता कर मारा गया।

सारकेगुड़ा में मारे गए 17 आदिवासियों को न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में निर्दोष पाया गया।

साथ ही एडसमेटा कांड में न्यायिक आयोग की रिपोर्ट ने पुष्टि की कि मारे गए आठों आदिवासी निर्दोष थे।

सोनी सोरी पर माओवादी होने के जीतने आरोप लगाए गए, सारे मुकदमों में वह निर्दोष साबित हुईं।

NHRC की एक दूसरी रिपोर्ट बताती है कि सुरक्षा बलों ने 16 आदिवासी महिलाओं का बलात्कार किया, जिसका प्राइमा फेसी सबूत मौजूद है।

माठवाड़ा में 3 आदिवासियों की हत्या का केस वे कोर्ट लेकर गए जिसमें तीन पुलिसवालों को जेल हुति थी।

इसी साल मार्चा महीने में मोदी सरकार ने ना सिर्फ इस याचिका का विरोध किया था, बल्कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ झूठा साक्ष्य देने के लिए कार्यवाही की मांग करते हुए हलफनामा भी दायर किया था।

सरकार को चुनौती देते हुए वे कहते हैं इतने सारे मुकदमों में आज तक एक भी केस उनका झूठा साबित नहीं हुआ है।

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Workers Unity Team

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