होंडा कार्स इंडिया लि. लेकर आई कर्मचारियों के लिए वीआरएस स्कीम
होंडा कार्स इंडिया लिमिटेड ने अपने कर्मचारियों के लिए वीआरएस की योजना शुरू की है।
मौजूदा मंदी के हालात को देखते हुए कंपनी ने ये स्कीम शुरू की है और ये कंपनी के स्टाफ़ कर्मचारियों पर लागू होगी।
टाइम्स नाऊ की एक ख़बर के मुताबिक, इस स्कीम का फ़ायदा कार उत्पादन में लगे वर्करों को नहीं मिलेगा।
कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में लगभग सभी क्षेत्रों की हालत बहुत पतली है और इसका सबसे अधिक बुरा असर ऑटो सेक्टर पर पड़ा है। महामारी के कारण बिना सोचे समझे किए गए लॉकडाउन ने पहले से ही बिक्री और उत्पादन में कमी से जूझ रहे ऑटो सेक्टर के लिए नई मुसीबत ला दी है।
लॉकडाउन के पहले ही ऑटो सेक्टर में बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की जा रही थी और कहा जा रहा था ये सेक्टर मंदी की चपेट में पहले ही आ चुका है।
कंपनी की वीआरएस स्कीम के तहत 40 साल की उम्र पूरा कर चुके या कंपनी में पांच साल तक काम कर चुके ऑफ़िस स्टाफ़ इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
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24 जुलाई से आई स्कीम
अगर कर्मचारी वीआरएस का विकल्प चुनते हैं तो उन्हें संतोषजनक आर्थिक पैकेज और स्वास्थ्य से संबधित सुविधाएं दी जाएंगी।
कंपनी ने वादा किया है कि वालंटियरी रिटायरमेंट के बाद भी वैश्विक स्तर पर जानी मानी प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा उनकी मदद करेगी ताकि उनका आगे का भविष्य सुगम हो सके।
होंडा के अनुसार, वीआरएस कंपनी और कर्मचारी दोनों के हित में है।
एक बयान में कंपनी ने कहा है कि हमने ऑफ़िस एसोसिएट्स के लिए वीआरएस स्कीम लेकर आ रहे हैं। ये स्कीम कंपनी की दक्षता बढ़ाने के साथ साथ कर्मचारियों के लिए कुल सुविधाओं के मामले में लाभकारी है।
ये स्कीम 24 जुलाई 2020 से शुरू की गई है और ये सभी विभागों के लिए है।
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ऑटो सेक्टर में छंटनी
उल्लेखनीय है कि ऑटो सेक्टर के भारी मंदी की चपेट में आने के बाद बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है।
कई कंपनियों ने वीआरएस आदि के मार्फ़त अपने कर्मचारियों को कम कर रही हैं।
इसी तरह जयपुर में बोश कंपनी ने अपने यहां प्रोडक्शन में लगे मज़दूरों को 69 लाख रुपये का आर्थिक पैकेज देकर वीआरएस का ऑफ़र दिया है और क़रीब 500 मज़दूरों ने आवेदन भी किया है।
लेकिन वेंडर कंपनियों ने परमानेंट मज़दूरों को सीधे नौकरी से निकालना शुरू कर दिया और इसके लिए कोई आर्थिक पैकेज भी नहीं दे रही हैं। इन्हीं में एक है मानेसर की श्रीराम इंजीनियर्स, जहां 20-20 साल से काम कर रहे परमानेंट मज़दूरों को क़रीब दो दो लाख रुपये देकर घर भेज दिया गया।
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