एक हत्या को किस तरह बीजेपी और मीडिया ने सांप्रदायिक रंग दिया?

एक हत्या को किस तरह बीजेपी और मीडिया ने सांप्रदायिक रंग दिया?

By गिरीश मालवीय

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2019 में हत्या के प्रतिदिन औसतन 79 मामले दर्ज किए गए, 2019 में हत्या के कुल 28,918 मामले दर्ज किए गए।

आंकड़ों के अनुसार, हत्या के मामलों में से 9,516 मामलों में हत्या का उद्देश्य विवाद रहा और इसके बाद 3,833 मामलों में हत्या का कारण व्यक्तिगत रंजिश या दुश्मनी रहा और 2,573 मामलों में फायदा रहा।

यदि रोज रंजिश या विवाद को लेकर रोज देश मे 79 हत्याएं हो रही हैं तो यह कौन डिसाइड करता है कि कब और कौन सी हत्या को राजनीतिक मुद्दा बनाना है ?, किस हत्या पर न्यूज़ चैनल बहस आयोजित करेंगे किस पर नहीं?

सीधी बात है यह तय करती है राजनीति और सत्ता, ओर आजकल जिनके पास सत्ता है उन्हें सबसे अधिक सुहाती है हिंदू वर्सेस मुस्लिम हिंसा।

दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में बुधवार की रात हुए विवाद में हुई रिंकू शर्मा की हत्या हो गयी मीडिया के लिए यह कोई बड़ी खबर नहीं थी।

गुरुवार के दिन भर इस पर कोई बात नही हुई, शुक्रवार की सुबह साढ़े आठ बजे बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने मृतक का नाम लिखकर ट्वीट किया ‘जय श्री राम’।

दरअसल यह ट्रिगर था कि नेशनल लेवल पर आज कौन सा मुद्दा उठना चाहिए।

200 किसान की मौत किसान आंदोलन के दौरान हुई है कभी इन मौतों पर मीडिया ने अलग से चर्चा नहीं की पर जैसे ही रिंकू शर्मा की जघन्य हत्या की बात सामने आई मीडिया को अपना शिकार मिल गया। यह है एजेंडा सेटिंग।

पत्रकारिता के छात्रों को पढ़ाया जाता है कि एजेंडा सेटिंग थ्योरी क्या होती है !

एजेंडा सेटिंग की अवधारणा यह है कि मीडिया द्वारा मुद्दों का निर्माण किया जाता है। वह लोगों को बताता है कि आज कौन सा मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है तथा कौन सा मुद्दा गौण है।

वाल्टर लिपमैन ने 1922 में अपनी चर्चित पुस्तक ‘पब्लिक ओपिनियन’ में पहली बार यह सिद्धांत दिया कि “जनता वास्तविक जगत की घटनाओं पर नहीं, बल्कि उस मिथ्या छवि के आधार पर प्रतिक्रिया जाहिर करती है, जो हमारे मस्तिक में बनाई गई है। और मीडिया हमारे मस्तिष्क में ऐसी छवि बनाने तथा एक मिथ्या- परिवेश निर्मित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”

बाद में इस मैक्सवेल ई. मैकाम्ब एवं डोनाल्ड एलशा ने इस सिद्धांत को ओर परिष्कृत किया और बताया कि जनसंचार का एजेंडा निर्धारण काम है-  श्रोताओं की सोच शक्ति को निर्धारित करना।

मैक्सवेल ई. मैकाम्ब एवं डोनाल्ड एलशा के अनुसार मीडिया लोगों को यह बताने में उतना सफल नहीं होता कि ‘क्या सोचना है (what to think)’ लेकिन वह यह बताने में बहुत सफल है कि ‘किस बारे में सोचना है (what to think about) यह बहुत महत्वपूर्ण बात है।

इस प्रकार मीडिया ( आज के दौर में सोशल मीडिया भी ) जिन मुद्दों को प्राथमिकता देता है वही जनता की प्राथमिकतायें बन जाती है।

आजकल मीडिया पूरी तरह से एजेंडा सेटिंग का ही कार्य कर रहा है और ट्विटर जैसी साइट्स के कारण यह कार्य अब ओर आसान हो गया है जो आईटी सेल द्वारा किसी हैशटैग को टॉप ट्रेंड करवा दीजिए हो गया एजें सेट।

वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Abhinav Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.