देश में कितने करोड़ प्रवासी मज़दूर वापस घर जाना चाहते हैं?
By सुशांत सिंह और अंचल मैगज़ीन, इंडियन एक्स्प्रेस
लॉकडाउन के चलते प्रवासी श्रमिक पलायन कर रहे हैं जो अपने गृह राज्यों तक पहुंचने के लिए कठिन संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में हमें समझना होगा कि ये प्रवासी मजदूर ज्यादातर कहां से आते हैं, वे कहाँ, किन सेक्टरों में काम करते हैं?
21 दिन के लाक डाउन की घोषणा के बाद प्रवासी कामगारों के शहरों से पलायन ने उन भारतीयों की भारी संख्या को सुर्खियों में ला दिया, जो अपने गृह राज्यों से बाहर रहते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या, 45.36 करोड़ या देश की जनसंख्या का 37% है।
इसमें अंतर-राज्य प्रवासियों (एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले) के साथ-साथ प्रत्येक राज्य के भीतर के प्रवासी भी शामिल हैं, जबकि हालिया पलायन मुख्य रूप से अंदरूनी प्रवासियों के वापस जाने के कारण हो रहा है।
सामान्य रूप से शुद्ध वार्षिक प्रवाह कामकाजी आबादी का लगभग 1 प्रतिशत होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, कामकाजी लोगों की आबादी 48.2 करोड़ थी।
इस आंकड़े के 2016 में 50 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है – आर्थिक सर्वेक्षण ने 2016 में प्रवासी कार्यबल की आबादी को मोटेतौर से 20 प्रतिशत या 10 करोड़ से अधिक आंका है।
एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन, 2020
जबकि देश में अंतरराज्यीय प्रवासियों का कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, फिर भी विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू द्वारा वर्ष 2020 के लिए अनुमान लगाए गए हैं।
उनके अनुमान, जो 2011 की जनगणना, एनएसएसओ सर्वेक्षण और आर्थिक सर्वेक्षण पर आधारित हैं, बताते हैं कि अंतर-राज्य प्रवासियों की कुल संख्या लगभग 65 मिलियन यानी 6.5 करोड़ है, और इनमें से 33 प्रतिशत प्रवासी वर्कर हैं।
प्रचलित अनुमानों के अनुसार, उनमें से 30 प्रतिशत मजदूर आकस्मिक यानी सीजनल मज़दूर हैं और अन्य 30 प्रतिशत नियमित मज़दूर लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं।
यदि आप सड़क के किनारे दुकानें लगाने वालों को भी जोड़ते हैं, जो एक और कमजोर समुदाय है, जिसे श्रमिकों के डेटा में शामिल नहीं किया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि 1.2 से 1.8 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अपने मूल राज्य को छोड़ कर अन्य राज्यों में रहते हैं और अपनी आय खोने का ख़तरा उनके सामने है।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) और अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन का अनुमान है कि भारत के बड़े शहरों की 29% आबादी दिहाड़ी मज़दूरों की है।
यह उन लोगों की संख्या है जो तार्किक रूप से अपने राज्यों में वापस जाना चाहते हैं।
प्रोफेसर कुंडू के अनुमान बताते हैं कि अंतर राज्य प्रवासियों की कुल संख्या का 25 प्रतिशत और 14 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार से है, इसके बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश का हिस्सा 6 प्रतिशत और 5 प्रतिशत है।
इसका मतलब यह हुआ कि लगभग 40-50 लाख लोग उत्तर प्रदेश और 18 से 28 लाख लोग बिहार वापस जाना चाहते हैं।
अन्य सात से 10 लाख लोग राजस्थान और छह से 9 लाख लोग मध्य प्रदेश वापस जाना चाहते हैं।
वे क्या कमाते हैं, अनुभव
सीएसडीएस द्वारा 2017 से 19 तक आयोजित ‘चुनावों के बीच राजनीति और समाज’ सर्वेक्षण के अनुसार, 22% दिहाड़ी और साप्ताहिक वेतन पाने वाले मजदूरों की कुल मासिक आमदनी 2,000 रुपये तक है।
32% मजदूरों की मासिक आमदनी 2,000 से 5,000 के बीच; 25% की 5,000 से 10,000 के बीच; 13% की आमदनी, 10,000 से 20,000 रुपये के बीच; और 8% की आमदनी, 20,000 रुपये से अधिक है।
हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान हुए एक सीएसडीएस सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 20% उत्तरदाताओं ने अपनी मासिक कुल आय 10,000 रुपये से कम बताया। बिहार और यूपी के प्रवासियों के बीच, यह कुछ ज्यादा क्रमशः 33% और 27% था।
वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तारिक थाचिल ने भारत में परिधीय प्रवासी आबादी पर काम किया है।
उनके शोध में पाया गया कि प्रवासी आबादी अपने गाँव-आधारित जातीय संबंधों को न तो पूरी तरह से बरकरार रखती है और न ही पूरी तरह से त्याग देती है, जो उनके आजीविका के स्रोत के छीन लिए जाने के बाद सैकड़ों किलोमीटर चलने की उनकी इच्छा में दिखाई देता है।
लखनऊ के 51 मार्केटप्लेस से लिए गए 2,400 सीजनल प्रवासियों के नमूने वाले एक बड़े सर्वेक्षण के आधार पर किए गए उनके शोध ने प्रवासियों के ग्रामीण जीवन के सापेक्ष उनके शहरी अनुभवों को आकार देने में पुलिस की पूर्व-ख्याति को रेखांकित किया।
उल्लेखनीय रूप से, सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं में से 33% ने शहर में पिछले एक वर्ष के भीतर व्यक्तिगत रूप से हिंसक पुलिस कार्रवाई का अनुभव किया, जबकि 5% से कम ही लोगों ने कभी अपने गांवों में ऐसा अनुभव किया था।
शहरों में हालत
लॉकडाउन के बाद अंतर-राज्यीय प्रवासी संकट दिल्ली, मुंबई और सूरत जैसे शहरों में अधिक महसूस किया गया था जो 2011 की जनगणना के आंकड़ों से लिया गया है।
आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर चिन्मय टुम्बे ने कहा कि दिल्ली में प्रवासन की दर 43% है, जिनमें से 88% अन्य राज्यों से आती हैं और 63% ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।
मुंबई में प्रवासन की दर 55% है, जिसमें से अन्य राज्यों से 46% और ग्रामीण क्षेत्रों से 52% प्रवासी आते हैं।
सूरत में, जो रविवार को प्रवासियों के एक समूह पर पुलिस कार्रवाई का गवाह बना, प्रवासन की दर 65% है, जिसमें से 50% प्रवासी अन्य राज्यों से और 76% ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।
प्रोफेसर तुम्बे ने यह भी नोट किया कि मूल राज्य के उन जिलों के बारे में जानकारी, जहां से ये श्रमिक आए हैं और लौट रहे हैं, वर्तमान नहीं है और यह 1990 के दशक के अनुमानों पर आधारित है।
उनके पेपर, ‘शहरीकरण, जनसांख्यिकी परिवर्तन और भारत में शहरों का विकास, 1870-2020’ में प्रमुख शहरों में प्रवासियों के स्रोत क्षेत्रों का डेटा 1990 के दशक का है, क्योंकि 2011 की जनगणना के आंकड़े अब तक जारी नहीं किए गए हैं।
यह आंकड़े उन जिलों की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें इन मजदूरों के अपने घरों को लौटने के कारण संभावित वायरस प्रसार के लिए उच्च अलर्ट पर होना चाहिए।
उदाहरण के लिए, तटीय ओडिशा के गंजम के बहुत सारे लोग गुजरात में काम करते हैं और प्रोफेसर तुम्बे ने देखा कि अतीत में ऐसे अनेक उदाहरण दर्ज हुए हैं जिनमें सूरत से होकर एड्स का संचरण शामिल है।
जैसा कि प्रोफेसर सिद्धार्थ चंद्रा के काम ने दर्शाया है, 1918 में इन्फ्लूएंजा का वायरस प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप में लड़ने वाले सैनिकों द्वारा भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों तक फ़ैल गया था।
वे जहाजों से बॉम्बे और मद्रास लौटे और फिर वायरस को अपने गांवों में ले गए, जिससे भारत में 1.8 करोड़ लोगों की मौत हुई।
2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में जिले-वार माइग्रेशन का डेटा बताता है कि देश के भीतर प्रवासियों का सबसे अधिक प्रवाह गुरुग्राम, दिल्ली और मुंबई जैसे शहर-जिलों के साथ ही साथ गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश); इंदौर, भोपाल (मध्य प्रदेश); बैंगलोर (कर्नाटक); तिरुवल्लुर, चेन्नई, कांचीपुरम, इरोड, कोयम्बटूर (तमिलनाडु) में भी देखा जाता है।
जिन जिलों से प्रवासी मजदूरों की सबसे अधिक आबादी बाहर जाती है उनमें शामिल हैं मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, कौशाम्बी, फैजाबाद और उत्तर प्रदेश के 33 अन्य जिले; उत्तरकाशी, चमोली, रुद्र प्रयाग, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चंपावत जिले उत्तराखंड के, राजस्थान के चूरू, झुंझुनू, पाली; बिहार के दरभंगा, गोपालगंज, सीवान, सारण, शेखपुरा, भोजपुर, बक्सर, जहानाबाद; झारखंड के धनबाद, लोहरदगा, गुमला; और महाराष्ट्र के रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग।
आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के तहत वर्किंग ग्रुप ऑन माइग्रेशन, 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जिलों से बाहर जाने वाली कुल पुरुष प्रवासी मजदूर आबादी का शीर्ष 25% मात्र 17 जिलों से है।
इन जिलों में यूपी के दस, बिहार के छह और ओडिशा का एक जिला शामिल है।
बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों से पलायन की दर सबसे ज़्यादा है।
आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि अपेक्षाकृत अधिक विकसित राज्य शुद्ध आव्रजन दर्शाते हुए सकारात्मक CMM मान ग्रहण कर लेते हैं: गोवा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक।
इन प्रवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा दिल्ली क्षेत्र में था, जिसमें 2015-16 में आधे से अधिक प्रवासी पहुंचे थे, जबकि कुल बाहर जाने वाले प्रवासियों में से आधे उत्तर प्रदेश और बिहार के हिस्से में आते हैं।
महाराष्ट्र, गोवा और तमिलनाडु प्रवासियों के मेजबान थे, जबकि झारखंड और मध्य प्रदेश प्रवासियों के स्रोत थे,”
वर्किंग ग्रुप ऑन माइग्रेशन की रिपोर्ट दिखाती है कि महिलाओं के लिए प्रवासी श्रमिकों की हिस्सेदारी सबसे अधिक निर्माण क्षेत्र में है (शहरी क्षेत्रों में 67 प्रतिशत, ग्रामीण क्षेत्रों में 73 प्रतिशत), जबकि सबसे अधिक पुरुष प्रवासी श्रमिक सार्वजनिक सेवाओं (परिवहन, डाक, सार्वजनिक प्रशासन सेवाएं) और आधुनिक सेवाओं (वित्तीय मध्यस्थता, अचल संपत्ति, रेन्टिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य) में कार्यरत हैं जिनका ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में से प्रत्येक में हिस्सा क्रमशः 16 प्रतिशत और 40 प्रतिशत है।
(ये कहानी इंडियन एक्स्प्रेस से साभार प्रकाशित की जा रही है। मूल अंग्रेज़ी का लेख यहां पढ़ें। इस कहानी का अनुवाद किया है ग्यानेंद्र ओझा ने।)
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