डीए वृद्धि से केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों को कितना फायदा होगा?
बीते दिनों केन्द्र सरकार ने डीए और डीआर 17 फीसदी से बढ़ाकर 28 फीसदी कर दिया गया है। इससे 60 लाख पेंशनर्स और 52 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा।
कोविड-19 महामारी के कारण सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के डीए और पेंशनर्स के महंगाई राहत पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब इसे बहाल कर दिया गया है। यह 1 जुलाई 2021 से लागू होगा।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेस में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरकार ने डीए 17 फीसदी से बढ़ाकर 28 फीसदी करने का फैसला किया है।
इससे सरकारी खजाने पर हर साल 34,401 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। कोरोना की वजह से केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को एक जनवरी 2020, एक जुलाई 2020 और एक जनवरी 2021 को देय महंगाई भत्ते और महंगाई राहत की तीन किस्त पर रोक लगाई गई थी।
तीनों किस्त मिलने के बाद कुल डीए बढ़कर 28 फीसदी हो जाएगा जिसमें 1 जनवरी 2020 से फीसदी, 1 जुलाई 2020 से 4 फीसदी और 1 जनवरी 2021 से 4 फीसदी बढ़ोतरी शामिल है। इससे 50 लाख से अधिक कर्मचारियों और 60 लाख पेंशनर्स को फायदा पहुंचने की बात की जा रही है।
केंद्रीय कर्मचारियों को फिलहाल 17% डीए मिलता है। लेकिन, पिछली बकाया तीन किस्त को जोड़कर अब यह 28 फीसदी हो जाएगा।
जनवरी 2020 में डीए 4 फीसदी बढ़ा था, फिर जून 2020 में 3 फीसदी बढ़ा और जनवरी 2021 में यह 4 फीसदी बढ़ा है। अब इन तीनों किस्तों का भुगतान होना है।
पिछले साल, केंद्रीय कैबिनेट ने सरकारी कर्मचारियों के लिए डीए में बढ़ोतरी का ऐलान किया था लेकिन कोविड की वजह से इसे स्थगित कर दिया था।
कोविड-19 की वजह से वित्त मंत्रालय ने जून 2021 तक 50 लाख से अधिक केंद्र सरकार के कर्मचारियों और 60 लाख से अधिक पेंशनभोगियों के लिए महंगाई राहत डीआर में वृद्धि पर रोक लगाने पर सहमति व्यक्त की थी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर रवींद्र गोयल ने लिखा है किसरकार ने 1 जुलाई से सरकारी कर्मचारियों का डीए 28 प्रतिशत कर दिया। यह अलग बात है की आपदा में अवसर के विज्ञान के तहत केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों और पेंशन धारियों को तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये का पुराना बकाया देने से इंकार कर दिया है। यह पैसा सरकार ने कोविद नियंत्रण महायज्ञ में सरकारी बाबुओं की आहुति स्वरुप वसूल कर लिया है।
कोई यह पूछे की इस यज्ञ में आहुति धन्ना सेठों से क्यों नहीं ली जाती। इसी बात को शायर शम्सी मीनाई बहुत अच्छे से अभिव्यक्त करते हैं ।
वो बताते हैं की जब भी देश पर कोई आफत आती है तब साधारण लोगों से, गरीब लोगों से या सरकारी बाबुओं से ही क़ुरबानी की गुहार की जाती है। बड़े लोगों से, हुक्मरानों के करीबियों और दोस्तों से कोई मांग नहीं की जाती। उनकी तरफ नजर ही नहीं जाती। उनका एक कत-आ है
“दिलो दिमाग किसी का बदल गया होता
किसी ने ऐश की ज़ंजीर तोड़ दी होती
गरीब लोगों से कुर्बानियों की मांग तो है
किसी वज़ीर ने अपनी तनख्वाह छोड़ दी होती।”
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