कैसे यूपी के हालात ख़राब होने दिए गए, कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे एक डॉक्टर के अनुभव

कैसे यूपी के हालात ख़राब होने दिए गए, कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे एक डॉक्टर के अनुभव

क्या कोरोना की दूसरी लहर पहले से अधिक घातक है, क्या जिसे कोरोना हो गया है या वैक्सीन दी जा चुकी है, उसकी हालत उतनी ही सीरियस होती जितनी सामान्य लोगों की, क्या इलाज में दी जा रहीं दवाएं कारगर हैं?

देश में कोरोना के मौजूदा हालात को देखते हुए हर किसी के मन में ऐसे ही सवाल पैदा हो रहे हैं। चरमरा चुकी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के बीच इन सवालों को लिए मरीज दर दर भटकने के मजबूर हैं। लोगों में भारी डर और घबराहट है। ऐसे में यूपी के एक महत्वपूर्ण सरकारी अस्पताल के मेडिकल ऑफ़िसर से वर्कर्स यूनिटी ने बात की।

1000 कोविड मरीजों का इलाज कर चुके इस मेडिकल ऑफ़िसर ने नाम न छापने की शर्त पर वर्कर्स यूनिटी के सवालों का बहुत साफ़ साफ़ और आसान भाषा में समझाते हुए जवाब दिया। पढ़िये बातचीत के अंश-

प्रश्नः क्या वाकई लखनऊ के हालात बहुत खराब हैं?

उत्तरः हालांकि कोरोना से मरने वाले मरीजों की संख्या पहले से क़रीब दस गुना है। इसका मुख्य कारण है कि संक्रमितों की संख्या बढ़ने से मौतों की संख्या भी बढ़ गई है। संक्रमितों की तुलना में मरने वालों की संख्या से की जाए तो अनुपात वही है। मसलन पहले अगर 100 में से दो मरते थे तो आज भी ये अनुपात वैसा ही है। मुख्य समस्या ये है कि पहले से कहीं ज़्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं और ये सही बात है कि संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल रहा है। लखनऊ में शमशान की तस्वीरें जो वायरल हो रही हैं वो कोविड प्रोटोकॉल की वजह से अंतिमक्रिया में देरी के कारण हैं। इसकी वजह से शवों की लाइन लंबी हो गई है।

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प्रश्नः क्या यूपी में कोरोना टेस्ट नहीं हो रहा है?

उत्तरः ये बात सही है कि जितना भी सरकारी ढांचा है, उसमें कोविड-19 की टेस्टिंग में देर हो रही है। सैंपल लेने में हफ़्ते भर की वेटिंग चल रही है। और रिपोर्ट आने में चार पांच दिन लग जाता है। यानी अगर किसी को कोरोना के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं और वो पहले दिन से ही टेस्ट कराने की कोशिश करे तो रिपोर्ट आने तक 10 दिन ऐसे ही लग जाएगा। कुछ को छोड़कर प्राईवेट लैब्स में कोरोना टेस्टिंग बंद है। वहां भी टेस्टिंग के मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं। बीमारी में ऐसा कोई बड़ा बदलाव आ गया हो, ऐसा नहीं है। इसके लिए सरकार तैयार ही नहीं थी, और इससे निपटने में बेहद गैरज़िम्मेदाराना व्यवहार किया गया, उससे पूरा सिस्टम चरमरा गया है इस समय।

प्रश्नः कुछ लोग कोरोना को एक अफवाह से अधिक नहीं समझ रहे हैं। वैज्ञानिक नज़रिया क्या कहता है?

उत्तरः कोरोना एक वायरल इनफेक्शन के रूप में है और ये सही बात है। इसकी लहर जो आ रही है और कोरोना के तमाम म्युटैंट्स (किस्में) आ रहे हैं, इसमें कोई अफवाह नहीं है। अब समस्या वहां शुरू होती है जहां सरकार की ओर से इस बीमारी से निपटने का तरीका अपनाया जाता है। कोरोना की लहरें आगे भी आएंगी, ये बात सरकार को शुरू से ही पता था और है। सवाल उठता है कि इस हिसाब से सरकार को अपनी तैयारी करनी चाहिए थी, जोकि किया नहीं। लखनऊ का उदाहरण ले लीजिए, यहां एक साल से नया कुछ बना नहीं, जो पुराने अस्पताल हैं, उसमें भी एक नया बेड तक नहीं बढ़ाया गया। अब उस पुराने चरमराते सिस्टम पर बोझ बढ़ गया है। पिछली कोरोना लहर में डॉक्टर हर मरीज को देख पा रहे थे लेकिन इस बार तो डॉक्टर कुछ कर ही नहीं पा रहे हैं। अस्पताल में 24 घंटे फुल प्रेशर में ऑक्सीजन सप्लाई चहिए, वो है नहीं, दवाओं की किल्लत हो गई है, टेस्ट हो नहीं रहे हैं। वो देख रहा है कि मरीज़ का ऑक्सीजन लेवल 70% है, कुछ देर में 60, 50 हो जाएगा और 40 के नीचे जाते जाते उसे बचाया नहीं जा सकता। अब डॉक्टर करे तो क्या करे। ये कहना कि ये बीमारी कोई साजिश है, ये ग़लत है।

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प्रश्नः कोरोना मरीज जब गंभीर होता है तो क्या उपाय है बचाने के?

उत्तरः जब मरीज की हालत गंभीर होती है उसमें सबसे महत्वपूर्ण है ऑक्सीजन देना। अगर ऐसे मरीजों को तुरंत ऑक्सीजन मिल जाए और इनफेक्शन ख़त्म करने के कुछ इंजेक्शन मिल जाएं तो तीन चार दिन में वो ठीक हो सकता है। अगर फेफड़े में संक्रमण होता है तो यही तीन चार दिन गंभीर होते हैं, ठीक से देखभाल हो जाए तो इसके बाद शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता आ जाती है। अधिकांश मौतें पहले पांच दिन के अंदर ही हो जा रही हैं। जांच के लिए, अस्पताल में, दवाओं के लिए, अस्पताल में एंट्री के लिए लाइन ही लाइन लगी है। ऑक्सीजन के लिए अस्पतालों में छीना झपटी मची हुई है। अब डॉक्टर के ऊपर है कि वो 70% वाले को ऑक्सीजन दे कि 60% वाले को। अगर दूसरे वाले को ऑक्सीजन दिया जाए तो पहले वाले की हालत खराब होने लगती है।

प्रश्नः कोरना से बचाव में वैक्सीन कितनी कारगर है, कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों का क्या हाल है?

उत्तरः हालांकि अभी वैक्सीन के बारे में साइंटिफ़िक रिसर्च का काम बहुत बाकी है। लेकिन देखने में ये आया है कि वैक्सीन ले चुके लोगों पर कोरोना का प्रकोप उतना घातक नहीं है जितना सामान्य लोगों में है। यही बात पहले कोरोना से पीड़ित रहे लोगों के लिए भी है। इन पर कोरोना का उतना घातक हमला नहीं है। वो कोरोना संक्रमित भले हो रहे हों लेकिन उनकी हालत उतनी गंभीर नहीं हो रही है। वैक्सीन लगवाए मरीज भी आ रहे हैं लेकिन उनकी हालत उतनी गंभीर नहीं है। एक बात समझने की ज़रूत है कि वैक्सीन संक्रमण होने से नहीं बचा सकती है। उदाहरण के लिए टीबी की वैक्सीन लगने के बावजूद टीबी हो जाता है, लेकिन टीबी का उतना असर नहीं होता है। बीमारी कितना डैमेज करेगी ये वैक्सीन लगने और न लगने पर भी निर्भर करता है। बिना वैक्सीन के बीमार पड़ने पर स्थिति खरतनाक हो सकती है। यानी शरीर एक हद तक तैयार है बीमारी से लड़ने के लिए। जिसे कोरोना हो चुका है और वैक्सीन भी लगवा ली है, वो घातक लक्षणों से और बचा हुआ है। वैक्सीन लगवा लेने से कोई नुकसान नहीं है। लगभग सभी मेडिकलकर्मियों को पहले ही ये वैक्सीन लगाई जा चुकी है। मैने खुद दो शॉट लगवाए हैं।

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प्रश्नः अभी सरकार को सबसे पहले क्या करना चाहिए? 

उत्तरः सबसे पहले तो सरकार को ऑक्सीजन की सप्लाई और सरकारी अस्पतालों के ढांचे को तुरंत दुरुस्त करना चाहिए। टेस्ट की सुविधा को बढ़ाना होगा ताकि लक्षण आने के 24 घंटे के अंदर मरीज का इलाज शुरू हो सके। कम से कम ये सुनिश्चित करना चाहिए कि गंभीर हालात की ओर बढ़ रहे मरीजों को फौरन ऑक्सीजन वाले बेड मिल सकें।  दवाओं की आपूर्ति बढ़ानी होगी।

प्रश्नः रेमडेसिविर दवा क्या है और कोरोना के इलाज में ये कितना कारगर है?

उत्तरः ये दवा तो एचआईवी के इलाज में काम आती है लेकिन देखा ये गया है कि कोरोना के मरीजों पर इसका प्रभाव अच्छा रहा है। कोरोना के जो गंभीर मरीज़ हैं अगर उन्हें रेमडेसिविर की पूरी डोज़ लग जा रही है, तो उनके अच्छे होने के चांसेज़ बढ़ जा रहे हैं। वे जल्द रिकवर कर जा रहे हैं। इस दवा की आपूर्ति सरकारी अस्पतालों में हो ही नहीं पा रही। यहां तक कि लखनऊ समेत कहीं भी ये दवा नहीं मिल पा रही है। लोग इसकी जमाखोरी करने लगे हैं। अगर किसी को जुगाड़ से ये मिल रही है तो वो इसका स्टॉक जमा कर ले रहा है ताकि ज़रूरत पड़ने पर अपने परिजनों को दिया जा सके। सरकार को एक साल पहले जब ये पता था तो उसे इसका पर्याप्त बफर स्टॉक बना लेना चाहिए था जोकि अब है नहीं। इसका प्रोडक्शन उतना हो नहीं पा रहा है। आपूर्ति इसलिए बाधित है। यहां तक कि शरीर में बैक्टीरियल पैरासाइट को मारने वाले सामान्य आइवरमैक्टिन दवा की भी किल्लत हो गई है, जो कि इस बीमारी में थोड़ा बहुत कारगर है।

(स्पष्टीकरणः डॉक्टर एक सरकारी अस्पताल में कोरोना वॉर्ड के प्रमुख हैं। एमबीबीएस करने के बाद बीते दो दशक से मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं। बीते एक साल में 1000 से अधिक कोरोना मरीज़ों का इलाज कर चुके हैं। उनके अनुरोध पर उनकी पहचान ज़ाहिर नहीं की जा रही है।)

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Workers Unity Team

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