दलित और मज़दूर होने की सजा मिली है मुझेः नवदीप कौर

दलित और मज़दूर होने की सजा मिली है मुझेः नवदीप कौर

शुक्रवार शाम जेल से रिहा होने के बाद शनिवार को सिंघु बॉर्डर पहुंचीं दलित श्रमिक नेता नवदीप कौर ने वर्कर्स यूनिटी से बात करते हुए बताया कि दलित और मज़दूर होने के कारण उन्हें पुलिस की तमाम तरह की ज्यादतियों को झेलना पड़ा।

उन्होंने कहा, “मुझे इस बात के लिए सज़ा दी गई की मैंने मज़दूरों को उनके हक के लिए जागरुक किया। मैंने मज़दूरों को किसान आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की, उन्हें बताया की कैसे ये लड़ाई किसानों-मज़दूरों की सम्मिलित लड़ाई है।”

मालूम हो कि मज़दूर अधिकार संगठन के नवदीप कौर और शिव कुमार को पुलिस ने कंपनी मालिकों से जबरन उगाही का आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया था।

नवदीप ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि “लॉकडाउन के पहले काम करा के कुडंली इंडस्ट्रियल एरिया की कई कंपनियों ने मज़दूरों का पैसा नहीं दिया था। लॉकडाउन के बाद वापस लौटे मज़दूरों ने कंपनियों से  जब अपने बकाये वेतन की मांग कि तब कंपनी मालिकों की तरफ से आनाकानी की जाने लगी। यहां तक की मालिकों के निजी गुंडों द्वारा मज़दूरों के साथ मारपीट तक की जाने लगी।”

वो कहती हैं, “हमारे संगठन ने मज़दूरों के बकाये वेतन के लिए इस इलाके में अभियान चलाया और कई कंपनियों को मज़दूरों के बकाये वेतन को देने पर मजबूर कर दिया।”

नवदीप का कहना है कि ‘उनलोगों ने 300 मज़दूरों के 5 लाख रुपये से ज्यादा के बकाए वेतन दिलाए और अभी भी उनके पास ऐसे मज़दूरों की लंबी लिस्ट है जिनके मेहनताने कंपनी मालिक दबा कर बैठे हुए हैं।’

वर्कर्स यूनिटी के सवालों का जवाब देते हुए नवदीप ने बताया कि हमने मज़दूरों के बकाए वेतन को लेकर कंपनी मालिकों की शिकायत पुलिस से भी की।

उनका कहना है कि ‘पुलिस ने किसी भी तरह कारवाई नहीं की, लेकिन इसी पुलिस ने कंपनी मालिकों के साथ मिलकर मज़दूरों के वाजिब सवालों को उठाने के बावजूद हमें जेलों में भर दिया।

उन्होंने बताया कि मौजूदा सरकार कृषि बिल और नये लेबर कोड के जरिए हमारे नस्लों को गुलाम बना देना चाहती है।

वो कहती हैं, ‘आंदोलनों के जरिए हम इस सरकार के मंसूबों को पुरा नहीं होने देंगे। क़ृषि बिल के साथ-साथ लेबर कोड के खात्मे के लिये भी सब को मिलकर सामने आना होगा।’

45 दिनों के अपने जेल के अनुभव हमसे साझा करते हुए नौदीप ने बताया कि “पुलिस ने वहशीपन की सारी सीमाएं पार कर मुझे प्रताड़ित किया। पुरुष पुलिसकर्मियों ने मेरे साथ मारपीट की, प्राइवेट जगहों पर लात-घूसों से मारा गया। दो पुलिस कर्मी मेरे ऊपर चढ़ गए और एक सादे काग़ज पर हस्ताक्षर कराने की कोशिश की।”

दलित होने के नाते स्वतंत्र आयोगों ने भी इस मामले में हरियाणा पुलिस से जवाब तलब किए। नवदीप जबरन वसूली के साथ हिंसक भीड़ की अगुवाई करने, हथियार रखने, पुलिकर्मियों पर हमला करने जैसे संगीन मामले दर्ज किए गए थे।

नवदीप ने कहा कि गिरफ़्तार कर जब पुलिस उन्हें कुंडली थाने ले गई तो सैकड़ों मज़दूर उन्हें छुड़ाने वहां पहुंचे। लेकिन पुलिस ने उन्हें लाठीचार्ज कर भगा दिया। उसके बाद उन्हें दूसरी जगह ले जाया गया जहां मारपीट की गई। इस दौरान कोई महिला पुलिस मौजूद नहीं थी। रात में ही मजिस्ट्रेट से रिमांड लेने की औपचारिकता पूरी कर दूसरे दिन जेल भेज दिया गया।

पुलिस पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि नवदीप की गिरफ़्तारी सुबह 11 बजे हुई थी जबकि उन पर केस शाम पांच बजे दर्ज किया गया।

नवदीप ने बताया कि जेल भेजे जाने के बाद भी उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया गया और सिर्फ दो बार उनके घर वाले मिल पाए। चोट लगने के बावजूद उन्हें जेल में समुचित इलाज नहीं मिल पाया।

गौरतलब है कि जेल में पहली बार उनसे मिलने गईं उनकी बहन राजबीर कौर ने कहा था कि नवदीप के साथ पुलिस ने यौन उत्पीड़न किया है।

मालूम हो कि अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने भी  नवदीप कौर का पक्ष लेते हुए ट्विट किया था, जिसके बाद ये मामला और तूल पकड़ गया।

नवदीप ने उन संगठनों, ट्रेड यूनियनों और किसान मोर्चा का तहे दिल से शुक्रिया किया जिन्होनें उनके जेल से बाहर आने में मदद की और मज़दूरों के संघर्ष को सामने लाने की पूरी कोशिश की।

नवदीप के साथ मज़दूर अधिकार संगठन में काम करने वाले शिव कुमार को भी उनकी गिरफ़्तारी के एक हफ़्ते के अंदर पुलिस ने पकड़ लिया और आरोप है कि 15 दिन बाद गिरफ़्तारी दिखाई गई। अभी वो जेल में हैं और उन पर भी नवदीप कौर की तरह की मामले दर्ज किए गए हैं।

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Abhinav Kumar

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