मोदी चाहें तो भारतीय रेलवे सिर्फ दो दिन में 4.5 करोड़ मज़दूरों को उनके घर पहुंचा सकती है
By मुकेश असीम
गूगल कीजिए तो पता लगेगा कि भारतीय रेलवे एक दिन में 19,000 पैसेंजर गाड़ियों को संचालित करने की क्षमता रखती है।
कोरोना की वजह से सोशल डिसटेंसिंग का पालन करते हुए हर गाड़ी में कुल 2,080 सवारियों की जगह 1,200 सवारियों की अनुमति है।
अभी सारी गाड़ियाँ यार्ड में खड़ी हैं ज़्यादातर डीज़ल से चलती हैं और कुछ बिजली से। डीज़ल इस समय दुनियाँ में सरकारों को सबसे सस्ती दर पर उपलब्ध है (टैक्स के बिना)।
चूँकि गाड़ियाँ चल नहीं रहीं तो कमाई शून्य है पर मेन्टेनेंस और खर्चे (कर्मचारियों का वेतन आदि) बरकरार हैं।
यदि रेलवे को मोदीजी प्रवासी मज़दूरों को घर वापसी के काम में पूरी क्षमता से लगाएँ तो रेलवे दो दिन में (48 घंटों में) दो बार में साढ़े चार करोड़ मज़दूरों को उनके घर छोड़ सकती हैं।
यानी अगर चार दिन चले तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 10 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचा सकती है।
और सैकड़ों की तादाद में सड़कों पटरियों और धूप में कीट पतंगों की तरह मरते हमारे देश के सबसे उपेक्षित नागरिकों से देश मानवतावादी व्यवहार कर सकता है।
इस देश ने मोदीजी के समय में ही अब तक पॉच लाख करोड़ रुपयों का धन्नासेठों का डुबोया हुआ बैंक क़र्ज़ माफ किया है। यह देश 20,000 करोड़ खर्च करके नई संसद बनवा रहा है।
साढ़े आठ हज़ार करोड़ रुपये में पीएम प्रेसिडेंट वाइस प्रेसिडेंट के लिये हवाई जहाज़ मंगा चुका है।
गुजरात और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने हाल ही में दो दो सौ करोड़ रुपये के नये जहाज़ खुद के गगनविहार के लिये ख़रीदे हैं।
सांसदों ने अपनी तनख़्वाह और भत्तों में सैकड़ों करोड़ रुपये की वृद्धि की है।
क्या ऐसा होगा? गर नहीं तो आप क्या करेंगे? क्या कर रहे हैं?
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