संकट की घड़ी में साथ न दिया तो इंसानियत खत्म समझो – नज़रिया

संकट की घड़ी में साथ न दिया तो इंसानियत खत्म समझो –  नज़रिया

By चंद्रशेखर जोशी

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के डमडे गांव के गरीब घर का संजू दिल्ली में किसी ढाबे में काम करता था। लाकडाउन के बाद उसे ढाबा मालिक ने निकाल दिया। बताते हैं कि वह ढाबे में सोता था। उसके पास रुपए नहीं थे।

15 दिन तक वह सड़क किनारे रात-दिन बिताता रहा और बीमार पड़ गया। उसे साथ वालों ने भी अपने कमरे में शरण नहीं दी। एक दिन गंभीर हालत में वह नाली में पड़ा मिला। सोशल मीडिया पर वायरल उसकी तस्वीर जब गांव वालों ने देखी तो एक समाजसेवी आगे आए। उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री समेत कई नेताओं को ट्वीट किया पर कहीं से कोई मदद नहीं मिली।

आखिरकार उन्होंने युवक की मां से संपर्क किया और कुछ मदद अपनी तरफ से दी। युवक के चाचा और छोटे भाई ने कई दिनों बाद उसे दिल्ली की सूनी सड़कों पर तलाशा और अस्पताल ले गए, पर अस्पतालों ने भी भर्ती करने से मना कर दिया। फिलहाल कुछ लोगों की पहल पर उसे गंभीर हालत में दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती किया गया है। चिकित्सक उसकी हालत नाजुक बता रहे हैं।

अहमदाबाद शहर की एक कालोनी का युवक नौकरी करने स्पेन गया था, कोराना से उसकी मौत हो गई। मां-बाप घर में चार दिन तक रोते-बिलखते बेसुध पड़े रहे, कालोनी का काई व्यक्ति उनसे मिलने नहीं गया। बाद में एक परिवार हिम्मत जुटा कर घर गया और बुजुर्ग दंपति को ढांढस बंधाया।

…शहरों में सामान्य बीमारी से मरने वालों की चिता के लिए लकड़ी ले जाने या कब्र खोदने के लिए भी लोग कम पड़ रहे हैं। अर्थी को कंधा देने के लिए भी कोई तैयार नहीं। शव यात्रा के कई खौफनाक मामले अभी लोगों की नजरों से ओझल हैं। सरकार विदेश से आए शव भी लेने को तैयार नहीं।

महानगरों में नौकरी करने वाले सैकड़ों लोग बमुश्किल अपने घर पहुंचे। इन्हें बहुत बुरी नजर से देखा जा रहा है। कई बार तो बाहर से आने वालों को ताने दिए जाते हैं। दूर शहरों से यदि कोई गांव के परिचितों को फोन करे तो उत्तर मिलता है भाई साहब आप वहीं रहिए, गांव अभी मत आना। हम लोग तो जैसे-तैसे रह रहे हैं। तुम लोग आ गए तो बीमारी भी साथ लाओगे, यहां इलाज की भी कोई व्यवस्था नहीं है। गांवों में कई लोग तो परिचितों के फोन उठाने से भी कतराने लगे हैं।

.बीमारी सामाजिक रिश्ते खत्म कर देगी, ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है। भूख, महामारी से सरकारें नहीं समाज ही लड़ता है। पुराने जमाने में भयावह महामारी से भी लोगों ने हौसले के साथ पार पाया था, जीत के लिए आपसी सहयोग ही जरूरी है। हर व्यक्ति को वायरस समझ रिश्तों में दूरियां बढ़ गईं तो मानव समाज जानवरों से भी बुरा हो जाएगा।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)

ashish saxena