कर्नाटक की सबसे पुरानी कपड़ा कंपनी ने 1300 कर्मचारियों को निकाला

कर्नाटक की सबसे पुरानी कपड़ा कंपनी ने 1300 कर्मचारियों को निकाला

कर्नाटक के मंड्या ज़िले के श्रीरंगापट्टनम स्थित गोकुलदास एक्सपोर्ट्स कंपनी ने अपनी एक इकाई ‘यूरो क्लॉथिंग कंपनी-2’ कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के चलते बंद कर दी है। इसके बाद से कर्मचारी कंपनी के बाहर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

कोरोना महामारी के बीच कर्नाटक में सबसे पुरानी कपड़ा निर्माता कंपनी गोकुलदास एक्सपोर्ट्स लिमिटेड ने अपने 1300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। कर्मचारी इसके विरोध में फैक्ट्री के सामने लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

टीएनलेबर के मुताबिक, कर्नाटक के मंड्या ज़िले के श्रीरंगपट्टनम स्थित सबसे पुरानी गोकुलदास कंपनी की एक यूनिट- ‘यूरो क्लॉथिंग कंपनी-2’ कोरोना संकट के चलते बंद हो गई है। कंपनी ने यहां काम करने वाले 1300 कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का फैसला किया है।

इस कंपनी से जीएपी, एचएंडएम, रीबॉक, एडिडास समेत दुनिया के कई जाने-माने ब्रांड्स को कपड़ा भेजा जाता था। नौकरी से निकाल देने के बाद कर्मचारी लगातार फैक्ट्री के सामने धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।

कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। कर्मचारियों की नौकरी बचाने के लिए मजदूर संघ ने भी हस्तक्षेप किया।

गारमेंट एंड वर्कर्स यूनियन की जिला अध्यक्ष आर। प्रतिभा ने कहा, ‘श्रीरंगपट्टनम की इस फैक्ट्री से 1300 कर्मचारियों को निकाल दिया गया है। कई लोग पिछले 10 सालों से इस कंपनी में काम कर रहे थे। गोकुलदास कर्नाटक के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है।’

हालांकि स्थानीय विधायक आर। श्रीकांतय्या ने कर्मचारियों को आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, ‘इस फैक्ट्री में काम करने वाले और आसपास रहने वालों को किस तरह से फायदा हो इस बारे में मैं अधिकारियों से बात करूंगा। इसके अलावा फैक्ट्री के प्रबंधन से भी बात करूंगा।’

कर्मचारी प्रबंधन पर आरोप लगा रहे हैं कि ऑर्डर न मिलने और घाटे की बात करके उनकी छंटनी की जा रही है।

बेंगलुरु में गारमेंट्स महिला कर्मिकरा मुन्नड़े (जीएमकेएम) और अल्टरनेटिव लॉ फोरम (एएलएफ) द्वारा तैयार एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, कपड़ा कारखानों के 63 प्रतिशत श्रमिकों को अप्रैल महीने का वेतन नहीं मिला है और बाकी के कर्मचारियों को उनके वेतन का 30-50 प्रतिशत का भुगतान किया गया। इसका मतलब है कि उन्हें सिर्फ तीन हजार से पांच हजार रुपये के बीच भुगतान किया गया है।

(द वायर से साभार।)

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Workers Unity Team