कोरोनाः अमीरों से प्यार, मज़दूरों की उपेक्षा और मध्यमवर्ग की कमर तोड़ती नरेंद्र मोदी सरकार
नरेंद्र मोदी सरकार ने कोविड-19 संकट से लड़ने और इसके आर्थिक मार के सर्वाधिक शिकार मेहनतकश 13 करोड़ परिवारों की मदद के लिए संसाधनों की कमी की बात कर रही है और संसाधनों को जुटाने के नाम पर उसने 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों एवं 65 लाख पेंशनों के डीए में पर जून 2021 तक रोक लगा दी है।
सरकार का कहना है कि इससे 37 हजार 530 करोड़ की बचत होगी। केंद्रीय कर्मचारियों के साथ राज्य कर्मचारियों के डीए पर भी रोक लगाने की बात हो रही है और कहा जा रहा है कि यदि राज्य कर्मचारियों के डीए पर भी रोक लगा दी जाए, तो इससे कुल बचत 82 हजार 566 करोड़ रूपए की हो जाएगी।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यदि भूख, कुपोषण और अकाल की कगार पर खड़े भारत के 13 करोड़ परिवारों यानि करीब 52 करोड़ लोगों की सहायता करनी हो तो कम से कम उन्हें मुफ्त खाद्यान्न के साथ प्रति परिवार को 5000 रूपए की सहायता करनी होगी।
जिसका अर्थ है कि इस पर कुल खर्च 65 हज़ार करोड़ रुपये आएगा। यदि 3 महीने तक 5 हजार रूपया प्रति परिवार दिया जाए तो यह खर्चा 1 लाख 95 हजार करोड़ रुपया होगा।
10 लाख करोड़ की ज़रूरत
इसके साथ स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने, चिकित्सकों एवं कोरोना के खिलाफ संघर्ष कर रहे अन्य लोगों को पर्याप्त सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने तथा अन्य कामों के लिए अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि 7 से 10 लाख करोड़ रूपए की जरूरत पड़ सकती है।
प्रश्न यह उठता है कि केंद्र सरकार इस देश के मेहनतकश गरीब परिवारों को जो आर्थिक सहायता प्रदान करनी है और कोरोना संकट के लिए जितने संसाधनों की जरूरत है, उसका भार क्यों नौकरी पेशा मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग पर डाल रही है, जबकि उसके पास पहले से ही संसाधन जुटाने के अन्य उपाय भी हैं।
सबसे पहले कार्पोरेट टैक्स को लेते हैं, पिछले बजट से थोड़ा ही पहले केंद्र सरकार ने कार्पोरेट टैक्स में 1 लाख 50 हजार रूपए की कटौती की थी, क्यों नहीं केंद्र सरकार फिर से कार्पोरेट टैक्स लगा देती है।
फिर हम रिजर्ब बैंक द्वारा सरकार को लाभांश और सरप्लस मनी के रूप में उपलब्ध काराए गए 1 लाख 76 करोड़ रूपए को लेते हैं। इस रूपए का केंद्र सरकार ने क्या किया? यह रुपया कहां गया?
तीसरा केंद्र अमीरों पर अन्य टैक्स लगा कर आय जुटा सकती है, जिसका सुझाव भारतीय राजस्व सेवा( आईआरएस) एसोसिएशन के 50 युवा अधिकारियों ने दी।
इन अधिकारियों ने ‘राजकोषीय विकल्प और कोविड-19 महामारी के प्रति प्रतिक्रिया’ शीर्षक अपनी रिपोर्ट में अमीरों पर टैक्स लगाने के कुछ सुझाव दिए।
अमीरों पर टैक्स बढ़ाने का सुझाव
उनका पहला सुझाव यह था कि 1 करोड़ से अधिक रूपए की आय वाले लोगों के लिए आयकर की दर बढाकर 40 प्रतिशत कर दिया जाए। इस समय ऐसे लोगों पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर लगता है।
इन युवा अधिकारियों ने 5 करोड़ से अधिक वार्षिक आय वाले लोगों पर संपत्ति कर लगाने का सुझाव दिया। इसके साथ ही इन अधिकारियों ने 10 लाख से अधिक की कर योग्य आय वाले लोगों पर चार प्रतिशत की दर से कोविड-19 राहत उपकर लगाने का भी सुझाव दिया।
इन अधिकारियों की सलाह मानने की कौन कहे वित्त मंत्रालय ने इनके सुझावों को अनुशासनहीनता और सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन करार दिया और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की बात की।
इसके पहले कई अर्थशास्त्री गैर-जरूरी और टालने लायक परियोजनाओं को तुरंत रोक देने का सुझाव दे चुके हैं।
इस परियोजनाओं में करीब 1 लाख 10 करोड़ रूपए की बुलेट ट्रेन परियोजना और नए संसद एवं प्रधानमंत्री भवन के निर्माण ( विस्टा परियोजना) पर खर्च होने वाले 20 हजार करोड़ पर तुरंत रोक लगाने की मांग कर चुके है।
कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी सरकार को दिए अपने पांच सुझावों में इसे शामिल किया था।
मोदी सरकार ने विज्ञापनों पर पानी की तरह पैसा बहाया
जब केंद्र सरकार आर्थिक संसाधनों की कमी की बात कर रही है,तो क्यों नहीं मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई जा रही है।
अपने पहले कार्यकाल के पांच वर्षों में मोदी सरकार ने विज्ञापनों पर 5,726 करोड़ रूपए खर्च किए। अभी अंधाधुंध विज्ञापन दिए जा रहे हैं। जिस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।
पिछले वर्ष ( 2019) के आंकड़ों के अनुसार देश के सभी बिलिनयरी लोगों की कुल संपत्ति 560 लाख करोड़ थी। यदि इस पर 1 प्रतिशत का संपत्ति कर लगा दिया जाए देश को 5.6 लाख करोड़ की आय होगी।
इस देश में प्रति वर्ष करीब 5 प्रतिशत बिलिनियरी अपनी संपत्ति अपने वारिसों या अन्य को हस्तांतरित करते हैं। यदि इस पर 33 प्रतिशत विरासत कर लगा दिया जाए तो इससे 9.3 लाख करोड़ की आमदनी होगी।
यहां यह तथ्य बता देना जरूरी है कि पूंजीवाद के आदर्श मॉडल अमेरिका में विरासत टैक्स करीब 40 प्रतिशत है। जापान में 55 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 50 प्रतिशत है।
उपरोक्त उपायों पर केंद्र सरकार अमल करे, तो उसे आय और बचत के रूप में करीब 15 लाख करोड़ से अधिक रूपए प्राप्त हो सकते हैं। फिर केंद्र सरकार 37, 560 रूपए का बोझ क्यों केंद्र सरकार के 48 लाख कर्मचारियों और 65 लाख पेंशरों पर डाल कर उनकी आर्थिक कमर तोड़ना चाहती है।
डीए और पेंशन पर चलाई कैंची
48 लाख कर्मचारी एवं 65 लाख पेंशनर मिलाकर कुल संख्या 1 करोड़ 13 लाख होती है। हर कर्मचारी से कम से कम 4 लोग औसत पर सीधे जुड़े हुए हैं। इस प्रकार केंद्रीय कर्मचारियों का डीए बंद करने से करीब 4 करोड़ से अधिक परिवार प्रत्यक्ष तौर और अन्य बहुत सारे लोग अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होंगे।
मध्यवर्गीय केंद्रीय कर्मचारी अपनी आय का बड़ा हिस्सा ऐसी चीजों पर खर्च करते हैं,जिससे देश की अर्थव्यस्था को सीधा लाभ पहुंचता है,रोजगार सृजित होता है और कम आर्य वर्ग के लोगों की जेब में पैसा जाता है।
केंद्र सरकार अमीरों पर टैक्स लगाकर, गै-जरूरी एवं टालने योग्य परियोजनाओं को स्थगित कर और मीडिया को दिए जाने वाले सरकारी विज्ञापन पर रोक लगाकर कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक संसाधन आराम से जुटा सकती है।
सवाल पैसे की कमी का नहीं, हां नरेंद्र मोदी सरकार अपने कार्पोरेट मित्रों एवं अमीरों की धन को छूना भी नहीं चाहती है, जिन्होंने उन्हें विभिन्न चुनावों में जिताने के लिए अपनी तिजोरियां खोल दी थीं और अपनी मीडिया को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया था।
मोदी जी की सरकार मेहनतकशों को भूख, कुपोषण एवं अकाल का शिकार होने के लिए छोड़ सकती है, जरूरत पड़ने पर निम्न मध्यवर्ग और मध्यवर्ग की आर्थिक कमर तोड़ सकती है, लेकिन वह अमीरों के धन को टच भी नहीं कर सकती है।
यही मोदी सरकार की राष्ट्र भक्ति है और यही आरएएस के बसुधैव कुटुंबकम् का सच है।
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