खोरी गांव पर संयुक्त राष्ट्र ने सुप्रीम कोर्ट को सिखाया मानवाधिकार का पाठ, कहा- तुरंत बंद हो 1 लाख लोगों को बेघर करने की कार्रवाई
हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित खोरी गांव में बीते तीन दिनों से घरों को गिराने की कार्यवाही पर कड़ा रुख़ अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने भारत के सुप्रीम कोर्ट को आड़े हाथों लिया है और भारत सरकार से तोड़फोड़ की कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाने को कहा है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार से कहा है कि वो एक लाख लोगों की सामूहिक बेदखली को तुरंत रोके, जोकि इसी हफ़्ते मानसून के बीच ये कार्यवाही शुरू की गई थी।
एक बयान में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने कहा, “हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वह बेघर लोगों को घर दिलाने और उसे हासिल करने के अपने ही लक्ष्यों और कानूनों का पालन करे।”
बयान के अनुसार, “भारत सरकार ने 2022 तक बेघर स्थिति के पूर्णतया उन्मूलन का लक्ष्य रखा है जबकि दूसरी तरफ़ वो खुद एक लाख लोगों को बेघर कर रही है जिनमें अधिकांश अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आते हैं।”
बयान में कहा गया है, “यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि निवासियों को महामारी के दौरान सुरक्षित रखा जाए। वे पहले ही कोरोना महामारी की चपेट में आ चुके हैं, और बेदखली का आदेश उन्हें अधिक ख़तरे में डाल देगा और क़रीब 20,000 बच्चों की ज़िंदगी मुश्किल में डाल देगा। इनमें से कई बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हो सकते हैं। इसके अलावा 5,000 गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएं हैं जिनके लिए ये मुसीबत का पहाड़ टूटने जैसा होगा।”
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक्सपर्ट कमेटी ने लिखा है कि ये लोग हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित खोरी गांव में रहते हैं। इसे 1992 में संरक्षित वन के रूप में नामित किया गया था, जबकि यहां कोई जंगल नहीं था।
इससे पहले सितंबर 2020 और इसी साल अप्रैल में दो चरणों में 2,000 घरों को ढहा दिया गया। इस बेदखली को चुनौती देने वाले निवासियों को सुप्रीम कोर्ट से भी अंतिम समय में गंभीर झटका लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई तक पूरे गांव को उजाड़ने का आदेश दिया।
यूएन एक्सपर्ट ने कहा है कि “हम बेहद चिंतित हैं कि भारत का सुप्रीम कोर्ट, जिसने अतीत में लोगों के आवास अधिकारों की रक्षा की है, वो अब बेदखली की अगुवाई कर रहा है जिसका परिणाम भारी संख्या में लोगों का आंतरिक विस्थापन और यहां तक कि बेघर की स्थिति होगी।
यूएन एक्सपर्ट ने कहा है, “सुप्रीम कोर्ट की भूमिका क़ानून का संरक्षण करने और उन्हें मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानकों की रोशनी में व्याख्यायित करना है, उन्हें नज़रअंदाज़ करना नहीं है। इस मामले में अन्य घरेलू क़ानूनी प्रावधानों के अलावा भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 की मूल भावना और उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया।”
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने कहा है कि “महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने निवासियों के आजीविका कमाने के हालातों को मुश्किल बना दिया है और अब वे बेदखली के कारण मनोवैज्ञानिक रूप से पीड़ित हो रहे हैं।”
विशेषज्ञों के अनुसार, “बेदखली से कई सप्ताह पहले यहां पानी और बिजली की सप्लाई काट दी गई थी। विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और निवासियों का कहना है कि उन्हें पुलिस ने पीटा और मनमाने ढंग से हिरासत में लिया है। यहां शांतिपूर्ण सभा के अधिकार के प्रयोग के खिलाफ मनमाने आदेश भी दिए गए हैं।”
यूएन एक्सपर्ट्स ने कहा है, “हम भारत सरकार से खोरी गांव को ढहाने की अपनी योजनाओं की तत्काल समीक्षा करने और निवास को नियमित करने पर विचार करने का आह्वान करते हैं ताकि किसी को बेघर न किया जा सके। और बिना पर्याप्त और समय से मुआवजे के जबरन बेदखली न की जाए।”
उन्होंने भारत से, जो वर्तमान में मानवाधिकार परिषद का सदस्य है, आग्रह किया कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसकी नीतियां और व्यवहार पुनर्वास, बेदखली और आंतरिक पलायन को नियंत्रित करने वाले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का अनुपालन करते हैं, खासकर सरकार की अपनी ज़मीन पर।
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने कहा है कि “ये ख़ास ध्यान देने वाली बात है कि इस तरह की सामूहिक बेदखली का कार्यवाही महामारी के दौरान नहीं की जाती है।”
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)