21 नहीं, 30 साल पीछे हो रहा भारत, छिन जाएंगी 52 प्रतिशत नौकरियां
पिछले दिनों दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का पालन न होने पर भारत के 21 साल पीछे चले जाने की चेतावनी दी थी। लेकिन अब नई स्थिति में लॉकडाउन लागू होने के बाद भी संकेत डरावने मिल रहे हैं।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के ऑनलाइन सर्वेक्षण में बताया गया है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद 52 प्रतिशत नौकरियां खत्म होने के आसार हैं। ऑनलाइन सर्वे स्नैप पोल में कंपनियों के 200 कार्यकारी अधिकारियों ने भाग लिया।
उनका कहना है कि मांग घटने से लाभ बेहद घट गया है। लॉकडाउन के नुकसान के चलते 47 प्रतिशत कंपनियों में 15 प्रतिशत की नौकरी खत्म होने की आशंका है, जबकि 32 प्रतिशत कंपनियों में 15 से 30 प्रतिशत की नौकरियों को समाप्त किया जा सकता है।
इसका असर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर भी पड़ेगा। अनुमान है कि लॉकडाउन के अंतराल में ही 120 अरब डॉलर का नुकसान होगा, जो जीडीपी का चार प्रतिशत है।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने भी भारत की आर्थिक विकास वृद्धि दर को घटाकर दो प्रतिशत कर दिया है, जो कि 30 साल का न्यूनतम हो सकता है।
इस पूरे मामले से ये साफ है कि बड़ी संख्या में जो कामगार देहात की ओर रुख कर चुके हैं, उनमें से बहुत बड़ी तादाद अब शायद नहीं लौट पाएगी। अगर वे फिर भी रोजगार की तलाश में पहुंचेगे तो मारामारी के बीच उनको बहुत कम वेतन पर काम करने को मजबूर होना पड़ेगा। बड़ी संख्या भूख और लाचारी से सामना करेगी।
अर्थव्यवस्था के तीस साल पीछे होने का मतलब ये भी है कि उस दौर में भारत फिर दाखिल होगा, जब देश-विदेशी कंपनियों के लिए पहले से कहीं ज्यादा छूट होगी, उनके लिए सरकार उदार नहीं अति उदारता का रुख अपनाएगी।
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