वादा किया था बरेली में टैक्सटाइल पार्क का, झुमके पर आ गए
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By आशीष सक्सेना
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी श्रम व रोजगार मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाल रहे संतोष गंगवार भले ही कामगारों और नियोक्ताओं ‘संतुष्ट’ हो जाने का ‘संवाद’ कर रहे हों, लेकिन वे शायद खुद 60 लाख रुपये के झुमके को उपलब्धि मानकर संतोष कर रहे हैं।
इसकी कीमत को लेकर भी अलग-अलग बातें हो रही हैं। बहरहाल, कीमत से ज्यादा इसकी अहमियत के चर्चे हैं। ये वही झुमके की यादगार है, जिसका जिक्र ‘मेरा साया’ फिल्म में 54 साल पहले किया गया…बरेली के बाजार में….।
वही उत्तरप्रदेश का बरेली, जहां से संतोष गंगवार 2019 के लोकसभा चुनाव में आठवीं बार सांसद चुनकर अहम मंत्रालय की कमान संभाल रहे हैं।
दिल्ली-लखनऊ हाइवे के जीरो प्वाइंट पर बरेली विकास प्राधिकरण की ‘कोशिशों’ से लोकार्पण करने वाले केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री संतोष गंगवार खासे गदगद हैं।
उनके आधिकारिक फेसबुक पेज पर लोकार्पण की तस्वीरें इस ‘ऐतिहासिक क्षण’ का उल्लेख करती दिखाई दे रही हैं। किसी अखबार की कतरन भी है, जिसमें बताया गया है कि ये शहरवासियों का सपना था, जिसे पूरा कर दिया गया।
जरी नगरी से झुमका सिटी तक सफर
ये शहरवासियों का सपना कब था? इसका जवाब बीडीए और केंद्रीय मंत्री शायद कभी नहीं दे पाएंगे। सिर्फ इसलिए कि बरेली शहर की शहरियत और उन्नति में झुमके का कोई योगदान नहीं रहा। सिवाय इसके कि ‘झुमका गिरा रहे बरेली के बाजार में’ गाना मशहूर है।
इस गाने के दम पर शहर की किसी जरूरत या किसी भी तरह के विकास का कोई तालमेल का संयोग भी नहीं रहा। झुमके के नाम पर महिला श्रृंगार के कारोबार का भी नहीं।
शहर के तमाम नागरिक ‘जरी नगरी’ को ‘झुमका सिटी’ बनाने की कवायद को बेतुका बता रहे हैं। उनका कहना है, अगर किसी फिल्म में बरेली का नाम आने भर से लाखों रुपये के फिजूल प्रोजेक्ट शुरू किए जा सकते हैं तो ‘कजरा मुहब्बत वाला’ गाने में भी बरेली का नाम है।
‘सोने की सींक बरेली का सुरमा’ पंक्ति वाले ढेरों लोकगीत हैं। सुरमा वास्तविकता में यहां का मशहूर कारोबार है। बरेली के खास मांझे का रिश्ता गुजरात से प्रधानमंत्री मोदी तक जोड़ चुके हैं। जरी-जरदोजी के कारोबार के दम पर तो बरेली को स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल किया गया।
पहले केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार के ओहदे के हिसाब से बरेली के लोगों के सपने की बात करें। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में पेट्रोलियम गैस राज्यमंत्री रहे।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पहले उनको टैक्सटाइल मिनिस्ट्री दी गई। कुछ समय वित्त राज्यमंत्री भी रहे और फिर केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री बने।
ड्रीम प्रोजेक्ट का क्या हुआ?
उनके सांसद क्षेत्र में कपड़ा मंत्री होने के समय का कथित ड्रीम प्रोजेक्ट टैक्सटाइल पार्क कहां तक पहुंचा, किसी को भी नहीं पता। अब तो इसका मीडिया में भी जिक्र नहीं आता और न ही उनकी जुबान पर।
इस पार्क में दर्जनों फैक्ट्रियां लगना थीं, जिनमें हजारों लोगों को रोजगार मिलना था। मजे की बात है, ये उसी क्षेत्र में विकसित होना था, जहां ‘झुमके’ का लोकार्पण करने वे आए।
इस झुमके के सामने से बरेली-लखनऊ के लिए बाईपास है, जिसे बड़ा बाईपास भी कहा जाता है। इस बाईपास के लिए ‘रोजी-रोटी’ जमीन देने वाले 500 किसानों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है। ये किसान केंद्रीय मंत्री के गांव ट्यूलिया के आसपास के गांवों के ही हैं।
पिछले कार्यकाल में मंत्री जी ने आईटी पार्क बनवाने की ‘कोशिश’ भी की। अब ये आईटी पार्क का ‘पॉलिटिकल सॉफ्टवेयर’ कहां लापता है, कोई नहीं जानता। बरेली एयरपोर्ट, जिसका लोकार्पण बिना हवाईजहाज के ही लोकसभा चुनाव आचार संहिता लगने से कुछ घंटे पहले किया, उस हवाईपट्टी के ऊपर फिलहाल तक चिडिय़ां ही उड़ रहीं हैं।
ऐसा तब है, जब युवाओं को रोजगार मुहैया कराने की जगह ‘नाकारा’ बताने का बयान भी दे चुके हैं। बेशक उनकी सादगी के तमाम लोग कायल हैं, लेकिन निहायत निजी मिजाज से शहर या सांसद क्षेत्र की तरक्की का कोई लेना-देना नहीं है।
श्रमिक नेताओं की खरी-खोटी
ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन कमेटी के प्रदेश महामंत्री राकेश मिश्र का कहना है कि केंद्रीय के कार्यकाल में तय अवधि रोजगार ‘फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट’ और 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदलने, ट्रेड यूनियन संशोधन बिल से मजदूरों की न सिर्फ जुबान पर ताला डालने की कोशिश की गई है, बल्कि एफटीई से युवाओं के भविष्य के रोजगार के ख्वाब को चकनाचूर किया गया है।
श्रमिक नेता सतीश कुमार का कहना है कि महज लाखों रुपये ‘एक नकली झुमके’ से देश और युवाओं-मजदूरों की तकदीर का उपहास उड़ाने का प्रयास ही कहा जा सकता है। प्राचीन पांचाल महाजनपद या आजादी के आंदोलन में रुहेलखंड के इतिहास को दिखाने का भी नजरिया नहीं अपनाया गया, जबकि झुमका पर्यटकों को रिझाने का आइटम बताया जा रहा है।
सोने की कीमत से आगे दौड़ा झुमका
बीडीए यानी बरेली विकास प्राधिकरण की ये ‘मुंगेरी योजना’ भी खासे संकल्प वाली निकली। एकमात्र प्राधिकरण, जिसने देश के महत्वपूर्ण सैन्य हवाईअड्डे ‘त्रिशूल एयरबेस’ की परवाह नहीं की और चारों ओर कॉलोनियां बनवा दीं, बनवा भी रहा है।
पांच साल पहले ‘खुराफाती तरीके’ से बनाए गए झुमका प्रोजेक्ट का अब तक ध्यान रहा, बाकी विकास का बिल्कुल नहीं। इस बीच सरकार बदली, कई उपाध्यक्ष और सचिव भी बदल गए, झुमके की कीमत भी बाजार के सोने के भाव से बढ़ गई, लेकिन मजाल थी कि प्रोजेक्ट आंखों से ओझल हो जाता।
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