100 साल पहले स्पेनिश फ्लू की विश्व महामारी के कुछ समय बाद ही हुआ था जलियांवाला हत्याकांड
By आशीष सक्सेना
जो हालात आज कोरोना वायरस के चलते हैं, उससे कहीं ज्यादा मुसीबत 100 साल पहले दुनिया और भारत ने झेली। इसके बावजूद उन्होंने आजादी के सपनों को मरने नहीं दिया। जायज के हक के लिए वे घरों से तब भी निकले और आवाज उठाने की कीमत चुकाई। वहीं, शासक उनके खून के प्यासे तब भी बने रहे, जब करोड़ों लोग विश्व महामारी में मारे जा रहे थे।
जलियांवाला कांड दिया जिंदगी के न ठहरने का प्रमाण
आज जलियांवाला हत्याकांड की बरसी है। सौ साल गुजर चुके हैं और हम फिर वैसे ही हालात हैं एक बार फिर। आज दुनिया ठहरी सी दिखाई दे रहे है, लेकिन जिंदगी कभी रुकती नहीं। तब भी नहीं रुकी थी जब स्पेनिश फ्लू का प्रकोप पूरी दुनिया में फैला। तब आज के मुकाबले न दुनिया की आबादी थी और न भारत की। भारत तब केवल 30 करोड़ लोग रहते थे।
दो सप्ताह में मर चुके थे पांच करोड़ लोग
फ्लू ने दुनिया के 50 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। केवल दो सप्ताह में ही पांच करोड़ लोग मारे गए। वह भी उन हालात में जब दुनिया में साम्राज्यावादी शक्तियों ने विश्वयुद्ध से पहले ही सबकुछ तबाह कर दिया था। इसके बावजूद शासकों ने अपने मंसूबों को रुकने नहीं दिया। वे अपने गुलाम देशों को निचोड़ लेने पर आमादा थे।
एक करोड़ लोग खोकर भी जुटा भारत
इन्हीं हालात में भारत भी फंसा था, यहां की गरीब-बदहाल जनता फंसी थी। तब अस्पताल, दवा और टीकों की सुविधा भी नहीं थी। मान-सम्मान से लेकर जान तक दांव पर लगे थे। इसी बीच स्पेनिश फ्लू ने पांव पसारे और सैकड़ों लोग रोज मरने लगे। भारत में तब एक करोड़ से ज्यादा लोग फ्लू की भेंट चढ़ गए।
शासकों को नहीं आया रहम
वहीं, अंग्रेज शासकों ने रौलट एक्ट लाने की तैयारी की। इस नए कानून के खिलाफ फ्लू से जूझ रही जनता, खासतौर पर मजदूरों ने मोर्चा खोला। जनता के गुस्से का आलम ये हो गया कि बंबई की हड़ताल और उसके असर में दर्जनों जगह हड़तालों ने अंग्रेजों को डरा दिया। उन्होंने कई इलाकों को सेना के हवाले कर दिया, जिनमें पंजाब भी था। इसके बावजूद वे हौसलों को तोड़ नहीं पा रहे थे।
डायर का हिसाब किया चुकता
ऐसे ही समय में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में लोग जमा हुए थे, जिन्हें जनरल डायर ने बेरहमी से गोलियों से भुनवा दिया। इस खून का गम नौजवानों के दिल में घर कर गया।
ऐसे ही नौजवानों में से एक उधम सिंह ने उसका हिसाब चुकता करने को बरसों इंतजार किया और लंदन जाकर जनरल डायर के साथ रहे ओ डायर को ठीक उसी समय मारा, जिस समय जलियांवाला कांड की गोली चली थी।
आज भी चुप्पी से नहीं चलेगा काम
आज ये देखने और सोचने का ही नहीं, बोलने-कहने का वक्त है। जब पूरी दुनिया कोराना वायरस के खतरे से कांप रही है, शासक क्या कर रहे हैं? वे शेयर बाजार से लेकर देशों की संप्रभुता और संसाधनों पर कुंडली मारने की जुगत भिड़ा रहे हैं।
वे नई संपदा हासिल करने के लिए योजनाओं पर काम कर रहे हैं। वे सिर्फ वैक्सीन या दवा के नाम पर निवेश कर रहे हैं। वे इस बहाने लोगों को भीख मांगने को मजबूर कर रहे हैं।
वे सिर्फ डर दिखाकर आज भी हर आवाज को कुचलने की कोशिश में जुटे हैं। वे नस्ल, जाति और संपद्राय की आग को भड़काने से बाज नहीं आ रहे।
वे हर जगह बैठकर तमाशा देख रहे हैं, दुनिया को बहकाते हैं। वे अमरीका, चीन, इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, पाकिस्तान, ईरान, अफ्रीका, सब जगह बैठकर यही कर रहे हैं।
वे मजदूरों को उस मजबूरी में धकेलने की साजिशों में मशगूल हैं, जिससे वे उन अधिकारों की मांग भी न कर सकें, जो उनके पूर्वज मजदूरों ने अपने रक्त का बलिदान देकर 100 साल पहले हासिल कर लिए।
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