जनता कर्फ्यू एक ढोंग, इसकी आड़ में मोदी सरकार छिपा रही अपनी नाकामी

जनता कर्फ्यू एक ढोंग, इसकी आड़ में मोदी सरकार छिपा रही अपनी नाकामी

By मुनीष कुमार

कोरोना वायरस शीशे पर 4 दिन, स्टील पर 3 दिन, पोलोथिन पर 16 घंटे व तांबे पर 3 घंटे तक जीवित रहता है।

ऐसे में इस बात का दावा करना कोरी मूर्खता से ज्यादा कुछ नहीँ है कि 22 मार्च को जनता के 14 घंटे के कर्फ्यू के बाद कोरोना की चेन टूट जायेगी।

दुनियाभर में अब तक 2.87 लाख कोरोना संक्रमण के मामले दर्ज किये गये हैं। जिसमें लगभग 12 हजार मौतें हो चुकी हैं।

भारत में अब तक तीन सौ से ऊपर कोरोना मरीज दर्ज हो चुके हैं। इनमें मृतकों की संख्या 5 बताई जा रही है।

मोदी सरकार के इन जनता कर्फ्यू व ताली पीटने जैसे नीम हकीमी नुस्खाें से कोरोना खत्म होने वाला नहीं है।

कोरोना के मामलेमें दक्षिण कोरिया का उदाहरण महत्त्वपूर्ण है। वहां कोरोना पर काबू पाने के लिये कोरोना संदिग्ध मरीजों की बड़े पैमाने पर जांच करवाई गयी।

वहां पर औसत 10 लाख लोगों में 4,881 लोगों की जांच की गयी। जिनमें कोरोना पोजिटिव पाया गया उन्हें तन्हाई में रखने की व्यवस्था की गयी।

corona stats
राष्ट्रीय सहारा से साभार।
सिर्फ 62 जगह जांच की सुविधा

कोरिया में 8,799 कोरोना संक्रमित लोगों में 102 मौतों की ख़बर है। जो कि 1% के आसपास है।

वहीँ इटली में 10 लाख लोगों में मात्र 1421 लोगों की ही जांच करायी गयी। वहां पर 47,021 कोरोना संक्रमित में से 4032 लगभग 9% लोगों की जान चली गयी।

कोरोना संक्रमण पर काबू पाने में जांच कर मरीज को ठीक होने तक तन्हाई में रखना अब तक बेहद कारगर साबित हुआ है।

भारत में 10 लाख लोगों में मात्र 6.8 लोगों की ही कोरोना जांच करायी गयी है, जिसे बढ़ाकर कोरिया के बराबर लाने की कोई न तो बात हो रही है और न ही सरकार इसकी तैयारी कर रही है।

जनता से ताली बजवाने की जगह देश में कोरोना जांचों की संख्या व इसका दायरा बढ़ाने का इंतजाम किया जाना चाहिए।

अभी देश में मात्र 62 जगहों पर ही कोरोना जांच की सुविधा है।

corona virus testing and readiness

स्वास्थ्य ढांचे में बदलाव की ज़रूरत

जांच की संख्या व दायरा बढ़ाने से कोरोना के मरीजों का बड़ी संख्या में पता लगाकर उन्हें तन्हाई में रख पाना संभव होगा।

इसके लिये देश के स्वास्थ्य ढांचे में परिवर्तन जरुरी है।

परन्तु कोरोना की जांच को निजी लैब के लिये भी खोलने की तैयारी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कर ली है।

प्राइवेट लैब संचालकों की सरकार के साथ हुई वार्ता में कोरोना जांच के लिये 5 हजार रुपये शुल्क निर्धारित किया गया है।

इस शुल्‍क को देने की क्षमता इस देश के मजदूर-किसानों व आम आदमी में नहीँ है।

narendra modi

जितने मरेंगे, मुनाफ़ा उतना बढ़ेगा

लोग देश में कोरोना से मरेंगे और निजी क्षेत्र मुनाफ़ा बटोरेगा! ये कैसी सोच है।

इससे लग रहा है कि मोदीजी को देश की जनता से ज्यादा चिंता पूंजीपतियों के मुनाफे की सता रही है।

कोरोना से निपटने के लिये देश के सभी निजी अस्पताल व लैब का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें जनहित में लगाना देश की प्राथमिक ज़रूरत है।

देशवासियों को इसकी मांग सरकार से करनी चाहिए। इस सबके बगैर कोरोना से लड़ पाना बेहद मुश्किल नज़र आ रहा है।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)

Workers Unity Team